नरेन्द्र अपने मित्रों के साथ एक पेड़ पर चढ़कर खेल रहे थे। पेड़ का स्वामी उधर से निकला, तो उसे इस बात की चिंता हुई कि ये बच्चे बार-बार नीचे चढ़ते-उतरते हैं, कहीं ऐसा न हो कि असावधानी के कारण कोई गिर जाए और उसके चोट लग जाए। उस व्यक्ति को एक तरकीब सूझी। उसने उन बच्चों के अगुआ नरेन्द्र से कहा, “देखा बेटे! तुम्हें शायद मालूम नहीं है, इस पर एक भूत रहता है, जो बच्चे उस भूत को परेशान करते हैं, वह उनके हाथ-पैर तोड़ देता है। अतः मेरी सलाह यह है कि तुम सब नीचे ही खेलो।”
भूत का नाम सुनते ही नरेन्द्र के सब साथी एक-एक कर खिसक गए। नरेन्द्र अकेला ही उस पेड़ पर खड़ा रहा और साहस के साथ बोला, “प्यारे मित्रों! यह सच्चा झूठ बोलते हैं, देखो मैं तुम लोगों के सामने अकेला इस पेड़ पर खड़ा हूँ, यदि भूत हो तो मेरे सामने आए, मैं उसका समाना करने के लिए तैयार हूँ।” भूत नहीं आया, परंतु बच्चे के इसी साहस और दृढ़ता ने उसे अवश्य बढ़ाया-इतना बढ़ाया कि स्वामी विवेकानन्द के नाम से उसने न केवल स्वयं यश कमाया वरन् भारतमाता को भी धन्य कर दिया।