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September 2000

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अध्यात्म में ‘शार्टकट’ नहीं

अध्यात्म में शार्टकट खोजने की जल्दी किसी को भी नहीं करनी चाहिए। सिर पर हाथ रखकर कुँडलिनी जगाने वाले, आंखें बंद करके भगवान् का दर्शन कराने वाले, मंत्र-तंत्र के बदले ऋद्धि-सिद्धियाँ प्राप्त कराने वाले, रिश्वत, खुशामद से देवताओं का बरगलाने, फुसलाने की तिकड़म में जितनी जल्दी समाप्त हो सकें, उतना ही उत्तम है। इनमें जालसाजी के अतिरिक्त वास्तविकता का नामोनिशान भी नहीं है।

(वाङ्मय-28, पृ. 1.11)


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