सतयुगी वातावरण ऐसे बनता है।

September 2000

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सतयुगी विशेषताओं से युक्त परिस्थितियों को मनीषीगण ‘यूटोपिया’ भर मानते और उसके मूर्तिमान होने को संदेह की नजरों से देखते हैं पर जिस दिशा में महाकाल का संकल्प उभर चुका हो, वह भला अधूरा कैसे रह सकता है।

चिनगारी से अग्नि प्रकट होती और भयंकर अग्निकाँड रचती है। वैसे ही श्रेष्ठता की सीधी परिधि आज भले ही तुच्छ और उपेक्षणीय लगे, पर कल यदि उसका विस्तार संपूर्ण धरित्री पर हो जाए, तो उसे आश्चर्यजनक नहीं माना जाना चाहिए, कारण कि तिल भर का बीज ही विशाल वट वृक्ष को जन्म देता है। उसी प्रकार घरों से शुरू होने वाली उदात्तता जब एक विराट् परिवार का रूप ले सकती है, तो कोई कारण नहीं कि उस महानता से तद्नुरूप समाज, राष्ट्र और विश्व का अभ्युदय न हो सके। इसका उदाहरण हमें गुजरात के एक गाँव में देखने को मिलता है।

‘राजसमधियारा’ नामक इस गाँव में जाने से ऐसा प्रतीत होता है, जैसे हम किसी सतयुगी वातावरण में आ गए हों। जैसा कि नाम (समाधि) से प्रकट होता है, यहाँ के ग्रामीण समान और श्रेष्ठ बुद्धि वाले हैं। वहाँ घरों में कभी ताले नहीं लगते। चोरी तो एक दुर्लभ घटना के समान है। पिछले दो दशक के मात्र एक चोरी हुई है। कुटेवों से सब मुक्त है। यहाँ के निवासी न शराबी, जुआरी है, न किसी अन्य प्रकार के दुर्व्यसन के शिकार ही। ईमानदारी मानो चेतना के कण-कण में घुली हुई है। परिश्रमपूर्वक धन कमाना और पसीने की कमाई खाना यहाँ का आदर्श है। कामचोरी, हरामखोरी तो उन्हें स्पर्श तक नहीं कर पाई है। सेवा-सहायता को वे अपना धर्म मानते हैं। निराकार ईश्वर की आराधना में ग्रामीण अपना समय लगाते हैं या नहीं, यह तो नहीं मालूम, पर विराट् ब्रह्म की सेवा में किसी प्रकार की कमी नहीं रहने देता। पूछने पर कहते हैं यही उन्हें बचपन से सिखाया और बताया जाता है।

वैसे तो वे ग्रामीण है, समय की रफ्तार के साथ-साथ चलना उन्हें आता है। अपनी प्रगति और प्रगतिशीलता के प्रति वह कितने जागरुक है, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब देश की संसद में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण हेतु बहस चल रही थी, उसे काफी पूर्व ही वहाँ की ग्राम पंचायत में महिलाओं को प्रतिनिधित्व मिला हुआ था।

उनका पर्यावरण का सजग प्रहरी कहा जा सकता है। वे इस बात से अनभिज्ञ नहीं कि आज पर्यावरण की दुर्दशा क्यों और कैसे हुई है। उन्हें यह भी मालूम है कि पेड़ और पर्यावरण के बीच परस्पर क्या संबंध है और वृक्षों के कटने और घटने से दुनिया को उसका दुष्परिणाम किस रूप में भुगतना पड़ रहा है। इस कारण से वहाँ प्रत्येक परिवार को कम-से-कम पाँच पेड़ अपने घर के आस-पास लगाना अनिवार्य है।

स्वास्थ्य और सफाई के बीच किसी स्तर का संबंध है, यह उन्हें बताने की आवश्यकता नहीं। ग्रामवासी उस कहावत से भलीभाँति परिचित है, जिसमें कहा गया है कि ‘स्वच्छता स्वास्थ की जननी है।’ यह उनका आदर्श वाक्य ही नहीं, वरन् वह इसके हिसाब से आचरण भी करते हैं। गलियों, नालियों, घर, मुहल्लों, की सफाई में वे सदा मुस्तैद रहते हैं।

शिक्षा का महत्व उनके लिए कम नहीं। वहाँ हर बालक को विद्यालय जाना अनिवार्य है। वे मताधिकार के प्रयोग के प्रति भी सजग हैं। वहाँ यह नियम कड़ाई से लागू है कि मताधिकार प्राप्त हर वयस्क प्रत्येक चुनाव में वोट डाले, किसी कीमत पर भी उसकी उपेक्षा न करें।

पंचायत राज का वह गाँव सुँदर उदाहरण है। उसका अपना दंड विधान और न्यायप्रणाली है। किसी अपराध की स्थिति में पुलिस थाने जाने की जरूरत नहीं पड़ती। पंचायत उसका निपटारा स्वयं करती है।

पिछले दिनों जब पड़ोसी गाँव सूखे की भीषण चपेट में थे, तो वहाँ पानी का कोई अभाव नहीं था। ऐसा समुचित जल-प्रबन्ध और आत्मनिर्भरता की दिशा में बढ़ते कदम से ही संभव हो सका।

वे इस संपूर्ण उपलब्धि का श्रेय राजकोट जिले के इस गाँव के सरपंच हरदेव सिंह जाडेजा को देते हैं। इससे एक बात स्पष्ट है कि मार्गदर्शक यदि सुलझे हुए विचारों वाला, न्यायप्रिय और उच्च आदर्शों की प्रतिमूर्ति हो, तो कही का भी कायाकल्प होते देर नहीं लगती।

सतयुगी वातावरण श्रेष्ठ चिंतन और उत्कृष्ट आचरण से बनता है। वह समय विशेष का मोहताज नहीं उसे हम कभी और कहाँ भी विनिर्मित कर सकते हैं, इससे दो मत नहीं।


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