स्वप्न भी आनुवंशिक होते हैं क्या? इस संबंध में मनोविज्ञान सर्वथा मौन है, पर यंत्र-तंत्र प्रकाश में आने वाले प्रसंग इस बात के प्रमाण है कि ऐसा होता है।
यहाँ जिन सपनों की चर्चा की जा रही है, वे सामान्य स्तर के औसत स्वप्न नहीं है। उन्हें असाधारण कहना ही उचित होगा। साधारण स्वप्न तो वे है, जो हर मनुष्य को दीखते हैं, बल्कि यों कहना चाहिए कि वह मस्तिष्क की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, जिसमें जाग्रत् स्थिति में आदमी द्वारा एकत्रित जानकारियों में से जो सोद्देश्य और सार्थक होती है, उन्हें रखकर शेष को चित्र-विचित्र दृश्यों के माध्यम से निकला बाहर कर दिया जाता है। ऐसे स्वप्न प्रायः आध-अधूरे, असंबद्ध एवं औंधे-सीधे दृश्यों से युक्त होते हैं, जिनका न तो कोई मतलब होता है, न प्रत्यक्ष जीवन से कोई संबंध ही।
पर कई लोग ऐसे भी होते हैं, जिनके सपने अक्सर सच साबित होते हैं। इस संबंध में स्वप्न-विद्या के आचार्यों का कथन है कि जब रात्रि के चतुर्थ प्रहर में बाह्य वातावरण ही हलचलें एकदम नीरव होती है, तो अनेक बार प्रकृति-प्रवाह की सूक्ष्म तरंगें मानवी मस्तिष्क की पकड़ में आ जाती हैं। उस समय मस्तिष्क भी अपेक्षाकृत अधिक शाँत और स्थिर होता है। इस स्थिति में कई अवसरों पर अदृश्य के गर्भ में पकने वाले घटनाक्रमों की झलक-झाँकी इतनी स्पष्ट और सुसंबद्ध रूप में होती है, मानो सब कुछ आँखों, के सामने घटित हो रहा हो। ऐसे स्वप्न इष्ट-मित्रों, निकट संबंधियों, स्वयं एवं सामाजिक, राष्ट्रीय अथवा प्राकृतिक आपदा से संबंधित हो सकते हैं। इन्हें देखने वालों में एक विचित्र बात यह पाई गई है कि कई प्रसंगों में यह विशेषता उनकी संतति में भी ज्यों-की-त्यों देखी जाती है अर्थात् उनके देखे स्वप्न भी उसी तरह सच साबित होते हैं, जैसे उनके अभिभावकों के । स्वप्नशास्त्रियों ने ऐसे सपनों को ‘वंशानुगत स्वप्न’ कहा है।
पिछले दिनों ऐसे कई प्रसंग प्रकाश में आए है। एक जोरहट, आसाम का है। वहाँ एक रसगोत्रा परिवार रहता है। उसके मुखिया महिपाल रसगोत्रा है। वे आसाम विद्युत बोर्ड में साधारण कर्मचारी हैं। उनके तीन संतानें हैं, दो लड़के, एक लड़की। तीनों की उम्र 18 वर्ष से ऊपर है। महिपाल ने जब से होश संभाला, उन्हें यह बराबर अनुभव होता रहा कि उनके सपने अक्सर सच होते हैं, पर इस ओर उन्होंने विशेष ध्यान नहीं दिया और इसे सामान्य एवं महत्वहीन समझकर विस्मृत कर दिया, किन्तु जब उनके दोनों लड़कों और लड़की ने भी यही बात कहीं, तो वे गंभीर हो गए। सोचने लगे कि आखिर यह कैसे संभव है कि अवचेतन मन की कोई विशेषता पैत्रागत हो जाए और पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ती जाए?
उन्हें याद आया कि बचपन में उनके पिता भी इसी प्रकार की बाते करते थे, पर तब वे किशोर थे और उनके लिए यह कोई असाधारण बात नहीं थी। प्राणिविज्ञान से स्नातक तक होने के नाते वह यह तो जानते थे कि शारीरिक-मानसिक विशिष्टताएँ माता-पिता से बच्चों में जाती है और फिर वहाँ से उनकी संतानों में, पर हर बालक में जनक-जननी का प्रत्येक गुण प्रकट ही हो, यह आवश्यक नहीं। अनेक बार वह अप्रकट रूप में मौजूद रहता और दूसरी पीढ़ी में जाकर ही अभिव्यक्त हो पाता है, परन्तु वहाँ तो स्थिति ही दूसरी थी। वे किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाए और इसे विधि की व्यवस्था समझकर शाँत हो गए।
दूसरी घटना ब्लोमशोलम, नावें के सी.जे. ड्रेकेनबर्ग से संबंधित है। वहाँ चार पीढ़ियों से इस तरह के सपनों का क्रम जारी है। इसकी शुरुआत वर्तमान पीढ़ी के परदादा वाले चरण से हुई। पाँचवीं पीढ़ी या उसके आगे के चरणों में वह वंशानुगत हो पाता है अथवा नहीं, यह अध्ययनकर्ता मनोवैज्ञानिकों के लिए जिज्ञासा का विषय है। वे इस बात की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि उक्त परिवार के चौथी पीढ़ी के दो युवकों-फाइंस और फ्लेवियर की शादी कब होती है, ताकि यह जान सकें वह क्रम भंग हुआ या अविच्छिन्न रूप से अब भी जारी है।
उच्चस्तरीय स्वप्न अन्य गुणों की तरह ही यदि पैत्रागत हों, तो इससे एक ही निष्कर्ष निकाला जाना चाहिए कि ईश्वरीय विभूतियाँ भी वंशानुगत होती है। आज भले ही यह विवाद का विषय हो, पर कल निर्विवाद सत्य के रूप में उभरेगा, यह सुनिश्चित है।