राष्ट्र की राजधानी में एक अधविशिष्ट आध्यात्मिक सामूहिक प्रयोग

September 2000

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‘विभूति ज्ञान यज्ञ’! जिज्ञासा मन में उठती है कि इसकी चर्चा शास्त्रों में कहाँ है, किसने की है व इसका उद्देश्य क्या है? गायत्री परिवार अखिल विश्व में फैला है। इसने निर्णय लेकर अपनी गुरुसत्ता के निर्देशों पर इसे राजधानी नई दिल्ली में प्रायः एक लाख लोगों की उपस्थिति में संपन्न करने का सोचा है, तो निश्चित ही उसके पीछे कोई विशिष्ट उद्देश्य रहा होगा। इसका क्या कोई वैज्ञानिक आधार है? यदि है तो क्या है। तीन घंट में संपन्न होने वाले इस महा प्रयोग से दिल्ली महानगरी राज्य एवं भारत राष्ट्र के जन-जन पर इसका क्या प्रभाव होगा यह जानने की इच्छा है? इस प्रकार की कई चर्चाएँ सामने आई। आगामी माह आठ अक्टूबर रविवार की वेला में नवरात्रि संपन्न होने के ठीक अगले दिन यह विराट् समागम नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में संध्या 5 से 9 बजे होने जा रहा है। परिजनों के अनेकानेक मनुहार पत्र भी आ रहे हैं, नित्य आते चले जा रहे हैं। कई व्यक्ति विभूतियों को लेकर आना चाहते हैं। कुछ सहज इस विराट् समागम में हिस्सा लेने आ रहे हैं, कुछ विशेष प्राप्ति-उपलब्धि हेतु आना चाह रहे हैं।

आइए! पहले इन जिज्ञासाओं का समाधान करें। विभूति योग की चर्चा भगवान् कृष्ण ने गीता के दशम अध्याय में की है। विभूति योग नामक इस दसवें अध्याय में भगवान् श्रीकृष्ण के श्रीमुख से उस विराट् भगवत्तत्व का वर्णन आया है, जो उनके अंश रूप में सर्वत्र कण-कण में विद्यमान है। भगवान् कहते है-

एताँ विभूतिं योगं च मम यो वेत्ति तत्त्वतः।

सोऽविकम्पेन योगेन युज्यते नात्र संषयः॥

“जो पुरुष मेरी इस परमैर्ष्वय रूप विभूति को और योग शक्ति को तत्व से जानता है, वह निश्चल भक्ति योग से युक्त हो जाता है, इसमें कोई संशय नहीं है।” भगवान् ने अर्जुन की जिज्ञासा के समाधान हेतु अपनी योगशक्ति व विभूति को विस्तार से बीसवें श्लोक से बयालीसवें श्लोक में वर्णित किया है। इसी में भगवान् ने स्वयं को समस्त विद्याओं में आत्मिकी-अध्यात्म विद्या के रूप में, छंदों में गायत्री मंत्र के रूप में, समस्त जीवों में उनकी जीवनी शक्ति के रूप में तथा समस्त ऐश्वर्य-काँति-युक्तियुक्त वस्तुओं में उनके अंश के रूप में उपस्थित बताया है। इसे विभूति योग के मर्म को जो भी जान ले, वही समझ सकता है, समाज में ईश्वरीय तत्व जनमानस में प्रतिभावानों के रूप में जहाँ भी विद्यमान हैं, उसे उभारना-परिष्कृत कर समाज-राष्ट्र के नवनिर्माण के लिए सामने लाना ही अपने इस नई दिल्ली के विराट् समागम का लक्ष्य है।

‘ज्ञान यज्ञ’ शब्द की चर्चा भी भगवान् ने गीता में ही चौथे अध्याय में तैंतीसवें श्लोक में की है। वासुदेव श्रीकृष्ण कहते हैं, “हे परंतप अर्जुन! द्रव्यमय यज्ञ की अपेक्षा ज्ञान यज्ञ अत्यंत श्रेष्ठ है।” (श्रेयान्द्रव्यमयाद्यज्ञाजानयज्ञः परंतप) इस ज्ञान यज्ञ की महत्ता बताते हुए भगवान् कहते हैं कि ज्ञान के समान पवित्र इस धरती पर कुछ भी नहीं। इस ज्ञानरूपी नौका में बैठकर पाप-समुद्र से मनुष्य भलीभांति तर सकता है। ज्ञान रूपी अग्नि संपूर्ण कमी को भस्म कर देते हैं एवं यह ज्ञान मात्र संयमी-साधना में लगे श्रद्धावान् मनुष्य को ही प्राप्त होता है।

आज के तर्क प्रधान-बौद्धिकता प्रधान युग में इतनी लंबी व्याख्या अनिवार्य हो जाती है। यज्ञ शब्द की जब भी कहीं चर्चा चलती है, तो जनमानस जो अभी भी मध्य युग की विकृतियों से भरी परंपराओं से घिरा पड़ा है, इससे अधिक कुछ नहीं सच जाता कि जैसे अन्य स्वाहा प्रधान यज्ञ होते हैं, ऐसा ही कुछ यह भी है। जब ‘विभूति ज्ञान यज्ञ’ नाम लिया जाता है, तो इसका परिपूर्ण अर्थ बनता है, भगवान् की एकेश्वर्यवान् विभूति जो समाज में प्रतिभाओं के रूप में बिखरी पड़ी है, के द्वारा श्रद्धाभाव से उस ज्ञान की चर्चा, उस ज्ञान गंगा में अवगाहन, जो सारी विश्व-वसुधा को आज की विडंबना भरी परिस्थितियों से उबार सके। राष्ट्र भर से चुने हुए प्रायः एक लाख प्राणवान् जीवंत प्रतिभावान् जब एक उद्देश्य के लिए एकत्र होंगे एवं राष्ट्र को अपनी सामर्थ्य-प्रभाव-साधन एवं समय-संपदा का एक अंश देने के लिए व्रत लेंगे साथ में अगणित प्राणवानों की, जो उस आयोजन में सूक्ष्म रूप में भागीदारी कर रहे होंगे, वहाँ भी होंगे इस यज्ञ में मानसिक रूप से जुड़े होंगे, तो यह विश्वास किया जाना चाहिए कि इसके फलितार्थ अद्भुत होंगे।

इस विभूति ज्ञान यज्ञ के साथ समस्त उपस्थित एवं श्रोता-दर्शकों (टेलीविजन-संचार संप्रेषण तंत्र-ऑल इंडिया रेडियो- बी॰बी॰सी॰- ब्रोडकास्टिंग) द्वारा एक विलक्षण प्रार्थना प्रयोग में भागीदारी भी संपन्न होगी, जिसमें एक विराट् दीपयज्ञ स्टेडियम के प्राँगण में ही नहीं, जन-जन के घरों में शक्ति पीठों में, प्रज्ञामंडलों में, देवालयों में एक साथ संपन्न होगा। एक ही समय होने वाले प्रयोग-उपचार व मनन्वित मनःशक्ति का अद्भुत परिणाम होता है। दीप यज्ञ परमपूज्य गुरुदेव के द्वारा प्रणीत एक समूह-मन के जागरण का दिव्य प्रयोग है, जो उनने 1397-99 में अपनी जीवनावधि के अंतिम दो-तीन वर्षा में जन-जन के सम्मुख रखा। चेतना के विस्फोट से लेकर एक मन से की गई उज्ज्वल भविष्य की, सबके लिए सद्बुद्धि की प्रार्थना का चमत्कार सभी इन दीप यज्ञ प्रधान आयोजनों में देख चुके हैं ऐसा ही एक प्रयोग आठ अक्टूबर को संध्या विशिष्ट अभ्यागतों की उपस्थिति में सात बजकर बीस मिनट से आठ बजे तक संपन्न होगा एवं उसमें सारे विश्व की भागीदारी होगी।

नई दिल्ली भारतवर्ष की राजधानी ही नहीं, निर्णायक केंद्र स्थली भी है। भारत का दिल दिल्ली को कहा जाता है। दिल की धड़कन यदि सही चलें, हृदय यदि समर्थ पंप के रूप में क्रियाशील हो, तो सारा शरीर स्वस्थ रहेगा। राष्ट्र की इस हृदय स्थली में इस प्रयोग को किए जाने के पीछे मूल चिंतन यही है कि यदि राजधानी जहाँ सारा प्रशासकीय तंत्र, प्रतिभाओं का तंत्र, राष्ट्र की सर्वोच्च साँसद विद्यमान है, से यह प्रयोग आरंभ होगा, तो सबल-सशक्त नाड़ियों से इसका विधेयात्मक प्रवाह सारे विश्व को एक नई ऊर्जा देगा। इतनी बड़ी-बड़ी रैली दिल्ली में होती रहती हैं, पर उनका परिणाम नहीं निकलता। सभी भाषणबाजी, घोषणाओं में समाप्त हो जाती हैं। अपना यह महायज्ञ कोई रैली नहीं, अखिल विश्व गायत्री परिवार के व्यक्ति-परिवार -समाज निर्माण की दिशा में किए गए सफलतम प्रयोगों की जन-जन को जानकारी कराने हेतु प्रतिभाओं को, विभूतियों को उनके कर्तव्यों की याद दिलाने हेतु एवं नवयुग के आगमन का तुमुलनाद करने का लक्ष्य लेकर एक विराट् आध्यात्मिक प्रयोग है, जो कि महापुरश्चरण (बारह वर्षीय युगसंधि अनुष्ठान) की महापूर्णाहुति की वेला में किया जा रहा है। सभी जानते हैं कि महापूर्णाहुति पाँच चरणों में विभाजित की गई थी। तीन चरणों के संपन्न होते-होते सारे राष्ट्र का व विश्व भर का बड़े गहन स्तर का मंथन संपन्न हुआ है एवं विभिन्न स्तर के प्रतिभावान् संकल्पित हो सामने आए हैं। लक्ष्य है दो लाख प्रतिभावानों के द्वारा दो करोड़ व्यक्तियों का राष्ट्र के साँस्कृतिक नवजागरण हेतु नियोजन। इन्हीं प्रतिभावानों का एक छोटा-सा अंश दिल्ली में भागीदारी करेगा, शेष अपने यहाँ रहकर अथवा केंद्र में समयदान देते हुए चतुर्थ चरण के सृजन संकल्प विभूति महायज्ञ (पुरुषमेध महायज्ञ-सौत्रामणी प्रयोग) की तैयारी के साथ जुटे रहेंगे।

समन्वित जनसमूह की संकल्प शक्ति का अद्भुत प्रभाव होता है। विधेयात्मक चिंतन से भरे प्रतिभावानों के मन मिलकर एक विराट् मन बन जाते हैं। जब इस विराट् मन (कलेक्टिव माइंड) के द्वारा शब्द शक्ति का प्रयोग किया जाता है, संकल्पों के साथ जुड़कर कुछ उद्घोषणा की जाती है, तो उसका प्रभाव उस स्थान विशेष नहीं, सारी धरती पर पड़ता है, इस महायज्ञ में भी पड़ने जा रहा है। भारतवर्ष के सारे विश्व का सिरमौर बनने की भविष्य वाणियाँ उस प्रयोग के बाद निश्चित ही सफल होती दिखाई देंगी, ऐसा हमारा विश्वास है।

यह विराट् आध्यात्मिक सामूहिक प्रयोग धर्म -संप्रदायों, राजनीतिक पार्टियों, वर्ग-भेदों से परे एक आयोजन है। इसका लक्ष्य है, विभिन्न विभूतिसंपन्नों (नेतृत्व क्षमता-भाव संवेदना -विचारणा-कला-अर्थ आदि) को अपनी गरिमामय कर्तव्यों का बोध कराकर उन्हें नवसृजन के किसी उल्लेखनीय कार्य में नियोजित कर देना। यह सारा आयोजन दीखता तो शाँतिकुँज हरिद्वार से संचालित है, किंतु इसमें योजना एवं शक्ति ईश्वर की, मार्गदर्शन एवं संरक्षण ऋषियों का तथा पुरुषार्थ व सहकार सभी प्रतिभावानों-श्रेष्ठ मनुष्यों का है। परमपूज्य गुरुदेव पं॰ श्रीराम शर्मा आचार्य इसके संरक्षक-प्रणेता- प्रवर्तक हैं।

इस आयोजन के द्वारा प्रज्ञा के जागरण-गायत्री के चिंतन में समावेश से नवयुग का एक आधार खड़ा किया जाएगा। आत्म शक्ति जागेगी, तो युगशक्ति निषेचित ही अवतरित होगी। यह आयोजन सभी को यह बोध कराएगा कि सहकार की ताकत सरकार से बड़ी होती है। राष्ट्र का साँस्कृतिक जागरण विभूतियों की सृजनात्मक कार्यों में भागीदारी द्वारा संभव है। यह आशावादी उमंगें जगें, उसके लिए सात आँदोलनों को गति देने के लिए विशिष्ट कार्यक्रम इस महायज्ञ में सभी को दिए जाएँगे। राष्ट्र के प्रधान, धर्मतंत्र के धर्मगुरुओं एवं समाज के जाग्रत् मनीषी तंत्र की उपस्थिति में हो रहा यह विराट् धर्मानुष्ठान दक्षिण दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में सायं 5 बजे आरंभ होकर दीपयज्ञ के साथ 9 बजे समाप्त होगा। ‘न भूँतो न भविष्यति’ जैसे इस प्रयोग में भागीदारी हेतु सभी को भावभरा आमंत्रण है।


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