एक व्यक्ति अपने बूढ़े अशक्त पिता को मिट्टी के बरतन में तिरस्कारपूर्वक भोजन दिया करता था। उस व्यक्ति का एक छोटा-सा बच्चा भी था। उसने अपने खेलने के स्थान पर टूटे-फूटे मिट्टी के बरतन जमा करने शुरू कर दिए। पिता ने इसका कारण पूछा तो बच्चे ने कहा, आप और माताजी जब बूढ़े होंगे, तब मुझे भी तो इसी तरह टूटे बरतनों में आप लोगों को भोजन देना पड़ेगा, सो अभी से बरतन इकट्ठे कर रहा हूँ। उस व्यक्ति की आँखें खुली और सम्मानपूर्वक माता-पिता को भोजन देन आरंभ कर दिया, ताकि बुढ़ापे में उसे भी वैसा ही असम्मान न सहना पड़े।
जो पुरुष या स्त्रियाँ अपने आश्रितजनों के साथ उपेक्षा अथवा अपमान का व्यवहार किया करते हैं या बड़ी आयु के वृद्ध व्यक्तियों को निकम्मा समझकर उनके प्रति दुर्व्यवहार करते हैं, उनको भी अंत में दुःखदायी परिणाम सहन करना पड़ता है।