आशाएँ (kahani)

April 1999

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एक गरीब-सा दिखने वाला व्यक्ति सराय में ठहरा। मैले कुचैले वस्त्र देखकर सराय के व्यवस्थापक ने कोने में एक कमरा दे दिया। नौकरों ने भी उससे बिछावन के बारे में बातें पूछी न गरम पानी, न साबुन जैसा कि अन्यों के लिए प्रबंध करते थे वैसा कुछ नहीं किया- यह सोचकर कि उससे क्या मिलने वाला है। प्रातः जब वह चलने लगा तो उसने नौकरों को उपहार स्वरूप दस-दस मुद्राएँ भेंट की। यह देखकर बेचारे अवाक् रह गये। उतना तो अमीर आगन्तुक भी सेवा सुश्रूषा करने पर नहीं करते।वह आदमी तो सबको मात कर गया, बिना सेवा के वह इतना दे गया। उस रात वे सो नहीं सके। बार बार यही याद आता रहा-बड़ी भूल हो गयी। यदि उसकी सेवा अमीर आगंतुकों की भाँति की गयी होती तो पता नहीं वह क्या और कुछ देता। महीने भर बाद वही गरीब उस सराय में ठहरा। अबकी बार प्रारम्भ से ही उसका स्वागत किया गया। नहाने- धोने, खाने -पीने, की व्यवस्थित व्यवस्था की गई।प्रातः जाते समय सब इसी आशा में थे कि आज बड़ी पुरस्कार राशि मिलने वाली है। किन्तु उसने जेब में हाथ डाला और सबके हाथ में एक-एक पैसा रखता गया। अबकी बार सबको बड़ी हैरानी हुई, यह जरूर कोई सनकी है। लोगों ने पूछा जब आपकी उपेक्षा की गयी तब आप ने बड़ी राशि पुरस्कार में दी, अब सेवा करने पर एक पैसा। वह बोला- मैं कोई पागल हूँ, जो ऐसी भूल करूंगा। यह एक पैसा पहले ठहरने का पुरस्कार है और जो पहले दी थी उसे अब की मानकर चले। नौकर आज रात को भी नहीं सो सके, क्योंकि व्यक्ति उपेक्षाएँ, आशाएँ बाँध कर जीता है। कुछ न करने पर यदि बड़ा पुरस्कार मिल जाय, तो खुशी के कारण नींद गायब और यदि उचित करने पर उचित पुरस्कार न मिले तो दुख से नींद गायब।


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