रामकृष्ण परमहंस की प्रशंसा में केशव चंद्रसेन ने एक लेख छपवाया। रामकृष्ण परमहंस को जब यह बात मालूम हुई तो वे बहुत नाराज हुए और बोले-”हमें यश की अपेक्षा चरित्र को निर्मल बनाने की बात सोचनी चाहिए। चरित्रवान और नैतिक पुरुषों का यश तो फूलों की सुगंध की तरह फैलता है।