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April 1999

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हम निश्चित रूप से इन दिनों विषम परिस्थितियों के बीच रह रहे हैं। पौराणिक विवेचन के अनुसार इसे असुरता के हाथों देवत्व का पराभव होना कहा जा सकता है। कभी हिरण्याक्ष, हिरण्यकश्यप, वृत्तासुर, भस्मासुर आदि ने आतंक उत्पन्न किए थे और देवताओं को खदेड़ दिया था। आलंकारिक रूप से किया गया वह वर्णन आज की परिस्थितियों के साथ पूरी तरह तालमेल खाता है। रावण और कंस कल की परिस्थितियों के साथ आज के वातावरण की तुलना करते हैं, तो पुनरावृत्ति स्पष्ट परिलक्षित होती है। इन दिनों शासक वर्ग का ही आतंक था, पर आज तो राजा-रंग, धनी-निर्धन, शिक्षित-अशिक्षित सभी एक राह पर चल रहे हैं। छद्म और अनाचार ही सबका इष्टदेव बन चला है। नीति और मर्यादा का पक्ष दिनों-दिन दुर्बल होता जाता है। उपाय दो ही हैं-एक यह कि शुतुरमुर्ग की तरह आँखें बंद करके भवितव्यता के सामने सिर झुका दिया जाए, जो होना है उसे होने दिया जाए। दूसरा यह कि जो सामर्थ्य के अंतर्गत है, उसे करने में कुछ न उठा रखा जाए। -पं. श्रीराम शर्मा आचार्य (वाङ्मय ‘क्र. 28 पृष्ठ 1.14)


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