मैं निश्चिन्त हूँ (Kahani)

April 1999

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सुकरात मरने लगे तो किसी ने पूछा कि आप घबरा तो नहीं रहे?सुकरात ने कहा घबराना काहे का। जैसा आस्तिक कहते है कि आत्मा है, तो घबराने की कोई जरूरत ही नहीं और यदि नास्तिक ठीक है कि आत्मा मर जाती है पर जन्मती ही नहीं, तो फिर झंझट मिटी। फिर घबराने वाला ही न रहेगा। इसलिए मेरे तो दोनों हाथों में लड्डू हैं। मैं निश्चिन्त हूँ। मुझे भरोसा है। घबराते वे है जिसे किसी की बात पर न भरोसा हो, न विश्वास , उन्हीं की नैया डगमगाती है।


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