शांति और स्वास्थ्य अब मनुष्य पाएगा रंगों में

April 1999

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रंगों की अपनी निराली दुनिया है। हर व्यक्ति का अपना मनपसंद रंग होता है। जीवन के प्रायः सभी क्षेत्रों में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका एवं विशिष्ट प्रभाव है। अब तो चिकित्सा एवं मनोविज्ञान के क्षेत्रों में भी रंगों का प्रयोग किया जाने लगा है। मनपसंद रंग जहाँ मानवीय विकारों को दूर कर मन में शांति, प्रसन्नता आदि अनेक भावों को जाग्रत करता है, वहीं बेमेल रंग के प्रभाव घातक सिद्ध हो सकते हैं। निश्चित रूप से व्यक्ति की मनःस्थिति पर रंगों के गहरे और सीधे प्रभाव घातक सिद्ध हो सकते हैं। निश्चित रूप से व्यक्ति की मनःस्थिति पर रंगों के गहरे और सीधे प्रभाव पड़ते हैं। इससे मनुष्य की कार्यक्षमता भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहती। रंगों की पसंद के आधार पर मानवीय प्रकृति का समग्र एवं सार्थक विश्लेषण संभव है। इस आधार पर इन्हें व्यक्तित्व की परछाई के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

किसी भी तरह से जानना चाहे, परिणाम यही निकलेगा कि रंगों की धार्मिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक महत्ता अक्षुण्ण है। वास्तविकता यही है कि इनका मनुष्य जीवन के साथ अटूट संबंध है। प्रकृति तो हमेशा से ही अपने को सब कहीं सुँदर एवं मनोहारी रंगों के माध्यम से अभिव्यक्त करती रही है। व्यक्ति और समाज ही नहीं, राष्ट्र भी इनसे प्रभावित होते हैं। अपने देश में ‘भगवा’ रंग एक विशेष जीवनपद्धति का परिचायक रहा है। मिश्र, यूनान और रोम के लोग अपने देवताओं को एक विशिष्ट रंग के माध्यम से पूजते थे। मिश्र के लोग लाल रंग को विशेष महत्व देते हैं। चीन में प्रेमीयुगल एक-दूसरे के प्रति आकर्षण पैदा करने के लिए रंगों का विशेष ध्यान रखते हैं। चीनी लड़कियाँ इसमें कुशल होती हैं। वे अपने साथी को आकर्षित करने के लिए रंगों के प्रभाव का उपयोग करती हैं।

रंगों का वैज्ञानिक विश्लेषण बड़ा रोचक है। विज्ञान तो रंग के अस्तित्व को ही नहीं मानता है। वान के अनुसार रंग प्रकाश-तरंगों के आधार पर ही विनिर्मित होते हैं। अतएव रंग एवं प्रकाश-तरंग में अन्योन्याश्रित संबंध है। सभी रंगों का अभाव काला एवं सबका मिश्रण श्वेत रंग है। चिकित्सा क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की फ्रीक्वेंसी वाली प्रकाश किरणों से विशिष्ट रंग का निर्माण किया जाता है एवं विशेष तकनीक द्वारा रोगोपचार किया जाता है। इसका उपयोग माँस-पेशियों की पीड़ा दूर करने, नेत्र का इलाज करने आदि में बहुतायत रूप से किया जा रहा है। नीला प्रकाश पेट के कैंसर में, आँखों के रोगों और स्त्रियों के गुप्त रोगों के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है। लाल प्रकाश रक्तवृद्धि तथा जिगर तथा दिल की बीमारी के लिए एवं बैंगनी प्रकाश गंजापन दूर करने में काम लिया जाता रहा है।

रंग-परीक्षण शारीरिक रोग के साथ ही मानसिक विकास को दूर करने में सहायक होता है। शरीर की त्वचा का रंग देखकर रोगों की पहचान हो सकती है। नीली और बैंगनी त्वचा रक्त में ऑक्सीजन की कमी को दर्शाती है। इस प्रकार का व्यक्ति हृदय एवं फेफड़े के रोग से ग्रसित होता है। अत्यधिक लाल त्वचा बताती है कि ऑक्सीजन का विषाक्त प्रहार शरीर पर हो चुका है। पीली त्वचा v+6 द्योतक है। रंगों के इस परीक्षण द्वारा रोगों की पूर्व अवस्था का पता लगाकर इनके निवारण हेतु आवश्यक उपाय किया जा सकता है। इतना ही नहीं रंगों का हमारे अवचेतन मस्तिष्क एवं मनोभावों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। दिल्ली में हुए एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि काले रंग की गाड़ियाँ दूसरे रंग की गाड़ियों की अपेक्षा अधिक दुर्घटनाग्रस्त होती है। इसी प्रकार की एक रिपोर्ट स्वीडन के रंग विशेषज्ञ सिगवर्ड विवर्ग भी दी थी। लगभग 31000 मोटर दुर्घटनाओं के अध्ययन के पश्चात वह इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि दुर्घटनाग्रस्त कारों में काले रंग की कारों की संख्या 33.4 प्रतिशत थी।

प्रकृति में जितने भी रंग हैं वे चूर्ण, द्रव, तैलीय और वाष्पित रूप में उपलब्ध हैं। अब तो हर रंग की प्रतिकृति तैयार कर ली गयी है। इस प्रकार रंगों की संख्या लाखों में पहुँच गई है। वैसे मुख्य रूप से मूल रंग तीन ही हैं। परंतु विज्ञानवेत्ता प्रकृति में आठ रंगों का विवरण देते हैं। सूर्य-किरणों में सात रंगों का सम्मिश्रण होता है। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण रंग लाल है। लाल रंग उग्रपेम, उग्र विचार एवं तीव्र भावुकता का प्रतीक है। इससे शक्ति और स्फूर्ति प्राप्त होती है। यह रंग पसंद करने वाले व्यक्ति अनुकूल परिणाम तथा सफलता प्राप्ति में विश्वास रखते हैं। संघर्षों से जूझना, चुनौतियों को स्वीकारना, नेतृत्व करना,शोध एवं अन्वेषण की मनोवृत्ति लाल रंग की पसंद से जुड़ी है। ऐसे व्यक्ति अपने विषय में जागरूक एवं स्वतंत्र निर्णय लेने वाले होते हैं। अपनी इच्छाशक्ति का सामना अपने बलबूते करने के पक्षधर होते हैं। जो व्यक्ति लाल रंग को अपने जीवन में सर्वाधिक प्राथमिकता प्रदान करते हैं, उनमें सामूहिक नेतृत्व, सृजनशीलता, विकासोन्मुखता आदि गुणों की बहुलता होती है।

लाल रंग नाड़ी को गति प्रदान करता हैं स्वैच्छिक मांसपेशियों, जननेंद्रियों पर इस रंग का आधिपत्य माना जाता है। यह रंग सर्दी की बीमारियों के लिए फायदेमंद होता है एवं उन्हें ऊष्मा प्रदान करता है। चर्म रोगों के लिए यह लाभकारी है। जन्मजात उदासीनता और परिवेष्जनित कुँठा एवं निराशा से पीड़ित व्यक्तियों को यह रंग मानसिक ऊर्जा प्रदान करता है। इस रंग को अपनाने से शारीरिक दुर्बलता एवं हृदय संबंधी विकास आदि दोषों का भी निराकरण होता है। आजकल तो कलरडिस्क का प्रचलन चल पड़ा है, जिससे क्रोमोलेंस के माध्यम से प्रतिबिंबित किरणों द्वारा प्रत्येक बीमारी को ठीक करने के प्रयास किए जा रहे हैं। इस विधि से लाल रंग का प्रयोग काफी उपयोगी सिद्ध हो रहा है।

नीला रंग शांत, शुद्ध, सात्विक, स्नेह एवं वैराग्य का द्योतक माना जाता है। यह रंग कहीं-कहीं तामसिक विचारों के रूप में भी प्रदर्शित होता है। वैसे सामान्यतया इस रंग में सत्य, प्रेम, त्याग, समर्पण, अनुराग, गहराई, विश्वास आदि भाव निहित हैं। यह जीवन के स्थिर मूल्यों का प्रतिनिधित्व करता है। गहरे नीले रंग को शांति की पूर्णता का प्रतीक माना जाता है। इस रंग को अपने जीवन में प्राथमिकता देने वाले व्यक्तियों में विचारों एवं भावनाओं का अच्छा संबंध एवं विकास होता है। इस रंग से रीढ़ की हड्डी, आमाशय अथवा किसी भी अंग का प्रदाह शांत होता है। यह रंग व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकता जैसे, शारीरिक विश्राँति मानसिक संतुष्टि आदि की पूर्ति करता है। इस रंग की कमी से व्यक्तित्व में विश्वास, सद्भावना एवं सहयोग की वृतित में कमी आती है।

हरा रंग बौद्धिक क्षमताओं को सक्रिय कर मानसिकशांति प्रदान करता है। हालाँकि गहरे हरे रंग को शक, ईर्ष्या, द्वेष व क्रियाशीलता से जोड़ा जाता है। हरा रंग अगर मटमैला हो जाए, तो मन के विचारों को दूषित कर देता है। इसी वजह से इसे द्वैत रंग यानि दो विचारों वाला रंग कहा गया है। विश्राम व थकान, ताजगी एवं चंचलता, स्फूर्ति और आराम दोनों का अद्भुत संगम इस रंग में देखा जा सकता है। यह रंग महत्वाकाँक्षी भाव को जनम देता है। ऐसा व्यक्ति चाहता है कि समाज में उसका विशिष्ट स्थान हो। संघर्षों, विरोधों व प्रतिरोधों के बावजूद वह अपने लक्ष्यप्राप्ति हेतु प्रयत्नशील रहता है। चिकित्सीय दृष्टि से इस रंग को पसंद करने वालों को प्रायः गैस्ट्रिक अल्सर तथा पाचन संबंधी अनेकानेक बीमारियों की संभावना बनी रहती है। यद्यपि हरा रंग चर्मरोगों, शारीरिक जख्मों एवं मानसिक अवसाद में आश्चर्यजनक ढंग से आराम पहुँचाता है। इसकी कमी उद्विग्नता एवं अशांति को बढ़ावा देती है। कभी-कभी तो इसकी कमी से शारीरिक दुर्बलता पैदा हो जाती है। ऐसे व्यक्ति पर छिद्रान्वेषी और दूसरों की आलोचना जैसे मनोविकार से ग्रसित हो जाते हैं। कई व्यक्तियों में इसका प्रभाव का भाव भर देता है, जिससे व्यक्तियों में हीनता घर कर जाती है।

पीला रंग प्रकृति में सूर्य के प्रकाश के रूप में दृष्टिगोचर होता है। यह रंग आकाँक्षाओं की पूर्ति हेतु किए गए श्रम का संकेतक है। जहाँ हरे रंग में समृद्धि है वहीं पीले रंग में विश्राम। इस रंग की भावनात्मक संतुष्टि चंचल व संवेगी आशाओं में समाहित है। लक्ष्यसिद्धि की अदम्य इच्छा एवं तीव्र वैचारिक क्षमता इस रंग के प्रभाव से प्राप्त होती है। इस रंग को पसंद करने वाले व्यक्तियों में सुख-शांति की इच्छा प्रबल होती है। ये सूक्ष्मदृष्टि संपन्न एवं जागरूक होते हैं। स्वभाव से मिलनसार तथा हर परिस्थिति में अपने में अपने अनुकूल समाधान तलाशने में माहिर होते हैं। पीला रंग यकृत के सभी रोगों को नियंत्रित करता है। यह महिलाओं के लिए भी लाभकारी होता है। हालाँकि पीला रंग शुद्ध रूप में ही अपने गुणों का प्रभाव डालता है अन्यथा यह निष्ठुरता, कायरता तथा दुर्बुद्धिजन्य मनोरोगों को जन्म देता है।

बैंगनी रंग लाल व नीले दो मौलिक रंगों का मिश्रण है। यह अतिभावुकता का द्योतक है। अतः भावुक व्यक्ति इस असंतोष आदि भावों को जीता जा सकता है। रंग चिकित्सकों की मान्यता है कि महिलाएँ गर्भावस्था के दौरान बैंगनी रंग के प्रति विशेष लगाव महसूस करती हैं। यह लगाव उन महिलाओं में अधिक होता है, जो भावनात्मक दृष्टिकोण से स्वयं सुरक्षित अनुभव करती हैं। भूरा रंग एकता की भावना, ईमानदारी, अच्छाई, भलाई एवं उच्च भावना के साथ सहयोग का भाव जगाता है। चिकित्सा के क्षेत्र में भूरे रंग को अच्छा नहीं माना जाता है। यह रंग रक्त विकार, दुर्दशा एवं अस्वस्थता का संकेत करता है। गहरे भूरे रंग को अत्यधिक पसंद करने वाले लोग शारीरिक रूप से अस्वस्थ पाए जाते हैं। धूसर, मटमैला रंग गंभीरता, विनम्रता, सौजन्यता तथा लज्जा के साथ-साथ कर्मठ क्रियाशीलता का प्रतीक है, परंतु इस रंग की सबसे बड़ी विशेषता है कि बाहरी उत्प्रेरक के अभाव में यह निर्बल हो जाता है।

श्वेत रंग में शांत स्वभाव, सादगी, उच्चविचार, तेजस्विता और सात्विकता आदि उत्कृष्ट गुण समाहित होते हैं। इस रंग में सभी सातों रंगों का सम्मिश्रण होता है, अतः यह अत्यंत लाभप्रद होता है। सफेद कपड़े पहनकर प्रातःकाल धूप में टहलने से सर्दी-जुकाम में फायदा होता है, काला रंग शोक का द्योतक है। यह शोक-दुख जैसे भावों को जगाने वाला, पलायनवादी, स्वार्थी आत्मकेंद्रित एवं अंतर्मुखी बनाता है। यह रंग निराशा एवं पतन को भी दर्शाता है। यह विस्तार एवं विकास के एकदम विपरीत है। यद्यपि इस रंग को अन्य अच्छे और स्वच्छ रंगों से मिला देने पर यह व्यवहार-कुशलता का रूप अपना लेता है।

जर्मनी के विख्यात डॉक्टर मैक्सलूषर ने अपनी पुस्तक ‘द लूषर कलर टेस्ट’ में रंगों के विभिन्न गुणों एवं प्रभावों का विस्तृत वर्णन किया है। उनके अनुसार नीला रंग पूर्णषाँति का, हरा राजसी ठाठ और निरंकुश प्रवृत्ति का, लाल शक्ति और स्फूर्ति का तथा पीला संतुष्टि की भावना का द्योतक है। उनका कहना है कि जीवन को सरस एवं सुँदर बनाने के लिए मनोनुकूल एवं उत्तम रंगों का चयन करना चाहिए। जेरी रोड्स और स्यूथेम ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘द कलर्स ऑफ योर माइंड’ में भी रंगों के प्रभाव का उल्लेख किया है। इनके अनुसार विभिन्न रंगों से प्रभावित होने वाले सामाजिक व्यक्तित्व का समूह भिन्न-भिन्न प्रकार का होता है। गहरे नीले और गहरे लाल रंग को पसंद करने वालों में इंजीनियर, बैंक क्लर्क, प्रयोगशाला कर्मचारी, एकाउंटेंट आदि आते हैं। हल्के नीले एवं हल्के लाल रंग को सेल्समैन, शिक्षक, नर्स एवं सामाजिक कार्यकर्ता पसंद करते हैं।

हल्के लाल और गहरे लाल रंग का चुनाव करने वालों में कलाकार, संगीतकार, गहरे लाल रंग का चुनाव करने वालों में कलाकार, संगीतकार, डॉक्टर, माली आर्कीटेक्ट, रिपोर्टर, बायोग्राफर, पुलिस एवं वकील आते हैं। हल्के लाल एवं गहरे रंग को विज्ञापन कॉपीराइटर, बैरिस्टर, पत्रकार तथा उपन्यासकार पसंद करते हैं। मार्केटिंग मैनेजर, कंपनी डायरेक्टर एवं कवि हल्के हरे और हल्के लाल रंग को प्राथमिकता देते हैं। इस प्रकार उपर्युक्त रंगों का सम्मिश्रण अधिक प्रभावी एवं लाभप्रद देखा गया। इन रंगों के बीच एक मनोवैज्ञानिक संतुलन पैदा होता है। एक अन्य परीक्षण में बेमेल रंगों का सम्मिश्रण लिया गया तथा इसका सर्वेक्षण किया गया। ये रंग हैं, गहरा नीला एवं गहरा हरा, हल्का नीला एवं हल्का हरा, गहरा लाल तथा गहरा हरा, गहरा लीला तथा हल्का हरा। समाज के 90 प्रतिशत लोगों ने उसके सम्मिश्रण को नापसंद कर दिया। भलीप्रकार प्रयोग-परीक्षण करने पर यह निष्कर्ष निकला कि एक निश्चित रंगों का और सही अनुपात में किया गया मिश्रण ही मन को प्रभावित कर सकता है अन्यथा बेमेल रंग मानसिक रूप से कष्टप्रद ही साबित होते हैं। रंगों का चयन भी एक प्रकार की कला है।

ध्वनि प्रदूषण को रोकने में भी रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। इस ओर सोवियत ध्वनि विशेषज्ञों ने गहनशोध-अनुसंधान किया है। उनके अनुसार विभिन्न रंगों के ध्वनि-अवरोधक गुणों में विशेष अंतर परिलक्षित होता है-हल्का हरा एवं नीला रंग ध्वनि के सबसे उपयुक्त अवरोधक हैं। अत्यधिक प्रदूषण वाले क्षेत्रों के पास वाले कमरों को हल्के हरे और हल्के नीले रंग से पुतवाकर काफी राहत महसूस की गई। रंगों के प्रभाव दृश्य के अलावा सूक्ष्म भी हैं। इनका विश्लेषण यदि सही ढंग से किया जा सके, तो जीवन के विविध क्षेत्रों में वरदान साबित हो सकते हैं। सही और उपयुक्त रंगों का निर्धारण अनेक मनोरोगों से मुक्ति दिला सकता है। अतः जीवन को सुखी, स्वस्थ, शांत और प्रसन्न रखने के लिए मनपसंद रंगों का चुनाव करना चाहिए।


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