वसन्त (kahani)

June 1998

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“वसन्त इतना न हँसो, जानते नहीं हो तुम। मैं तुम्हारा पतझड़ तुम्हारे आगे खड़ा हूँ। “

“जानता हूँ पतझड़!’ बसन्त बोल-तुम मेरा नाश कर दोगे पर तुम यह नहीं जानते कि दुबारा फिर आऊँगा, तब मेरा स्वागत नई कोपलें, नये पल्लव, नये फूल कर रहे होंगे और तब मैं और भी वेग से संसार का सौंदर्य बढ़ा रहा होऊँगा।”


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