बांटने का सुख (Kahani)

June 1998

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प्यासा मनुष्य अथाह समुद्र की ओर यह सोचकर दौड़ा कि महासागर से जी भर अपनी प्यास बुझाऊँगा। वह किनारे पहुँचा और अंजलि भरकर जल मुँह में डाला, किन्तु तत्काल ही बाहर निकाल दिया।

प्यासा असमंजस में पड़कर सोचने लगा कि सरिता सागर से छोटी है, किन्तु उसका पानी मीठा है। सागर सरिता से बहुत बड़ा है, पर उसका पानी खारा है।

कुछ देर बाद उसे दूर से आती एक आवाज सुनाई दी-सरिता जो पाती है, उसका अधिकाँश बाँटती रहती है, किंतु सागर बस कुछ अपने में ही भरे रखता है दूसरों के काम न आने वाले स्वार्थी का सार यों ही निःसार होकर निष्फल चला जाता है।” आदमी समुद्र के तट से प्यासा लौटने के साथ एक बहुमूल्य ज्ञान भी लेता गया जिसने उसकी आत्मा तक को तृप्त कर दिया।


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