प्रख्यात विभूति-हातिम परदेश जाने लगे तो अपनी पत्नी से पूछ बैठे-तुम्हारे लिए खाने-पीने का कितना सामान रख जाऊँ?”
“जितनी मेरी आयु हो।” -कहकर पत्नी हँस पड़ी।
“तुम्हारी आयु जानना मेरे बूते की बात नहीं।”
“तब तो मेरी रोटी का इन्तजाम भी आपके बूते से बाहर है। यह काम जिसका है, उसी को करने दीजिए।”
पत्नी की ईश्वर आस्था पर मुग्ध होकर हातिम परदेश चले गये। तब एक पड़ोसिन ने पूछा-बेटी हातिम तेरे लिए क्या इन्तजाम कर गये हैं?”
हातिम की पत्नी ने कहा-माँ मेरे पति क्या इन्तजाम करेंगे? वे तो खाने वाले थे। खाना देने वाला तो अब भी यहीं है।”
ईश्वर-विश्वासी को किसी का आश्रय आवश्यक नहीं रहता।