लालबहादुर शास्त्री बड़े हँसमुख और मिलनसार स्वभाव के थे। लेकिन जब वे लोकसेवा मण्डल के सदस्य बने, तो अचानक वे बहुत ज्यादा संकोची हो गए। वह कतई नहीं चाहते थे कि उनका नाम अखबारों में छपे और लोग उनकी प्रशंसा करें। एक दिन उनके एक मित्र ने उनसे पूछा-आपको अखबारों में अपना नाम छपवाने में इतना परहेज क्यों है?”
शास्त्री जी कुछ पल सोचकर बोले, ”लाला लाजपत राय ने मुझे लोकसेवा मण्डल के कार्य की दीक्षा देते हुए कहा था, ‘लालबहादुर, ताजमहल में दो प्रकार के पत्थर लगे हैं। एक बढ़िया संगमरमर है, जिसकी चमक सारी दुनिया देखती है और सराहती है। दूसरा पत्थर ताजमहल की नींव में लगा है, जो सदा अँधेरे में रहता है। लेकिन ताजमहल की सारी चमक एवं खूबसूरती उसी पर टिकी है।’ लालाजी के ये शब्द मुझे हर समय याद रहते हैं और मैं नींव का पत्थर ही बने रहना चाहता हूँ। “