गोवंश-समृद्धि की व्यावहारिक रूपरेखा-गौशाला

June 1998

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आर्षकालीन महामानवों ने गाय को माता कहकर वन्दनीय माना है। इस महत्ता का प्रतिपादन अथर्ववेद ने धेनुः सदनम रयीणाम के रूप में किया है। ऋग्वेद में इसे रुद्रों की माता, वसुओं की पुत्री और आदित्यों की भगिनी का गौर दिया गया है। यजुर्वेद में इसके महत्व की व्याख्या करते हुए कहा गया है-

ब्रह्म सूर्यसमं ज्योतिर्द्यौः समुद्रसमं सरः। इन्द्रः पृथिव्यै वर्षीयान् गोस्तु मात्रा न विद्यते॥

अर्थात्-ज्ञान के लिए सूर्य की उपमा है, द्युलोक के लिए समुद्र का उदाहरण है। पृथ्वी बहुत बड़ी है, तो भी इन्द्र उससे अधिक समर्थ एवं शक्तिशाली हैं। परन्तु ऐतरेय ब्राह्मण ने तो गाय को प्रेम एवं सौंदर्य का प्रतीक गाना है। इसके अनुसार-सर्वस्य वै गावः प्रेमाणं सर्वस्य चारुतां गताः। महाभारतकार ने गौ स्तुति करे हुए लिखा है-

गावः श्रेष्ठाः पवित्राश्चपावनंह्येतदुत्तमम् ऋतेदधिघृतेनेहनयज्ञः संप्रवर्तने॥ गावो लक्षम्याः सदामूलंगोषुपाप्मानविद्यते मातरः सर्वभूतानाँ गावः सर्वसुखप्रदाः॥

अर्थात्-गौएँ सर्वश्रेष्ठ पवित्र, पूजनीय और संसार भर में उत्तम है। इनके घी, दूध, दही और गव्य के बिना संसार में यज्ञ सम्पन्न नहीं होते। गौ में सदैव लक्ष्मी निवास करती है। गौ जहाँ रहती रहती है, वहाँ पाप निवास नहीं करते। ये प्राणिमात्र को सुख-सम्पदा से विभूषित करती हैं।

अन्य शास्त्रों में भी मुक्तकण्ठ से गौ महिमा का उल्लेख किया गया है। एक स्थान पर कहा है-गवोयज्ञस्यहिफलंगोषुयज्ञाः प्रतिष्ठिताः। इसी तरह एतद् वै विश्वरूपं सर्वरूपम् गोरूपम् कहकर इसका महत्व बताया है। गायो विश्वस्य मातरः कहकर भी शास्त्रों ने इसे अलंकृत किया है। स्कन्दपुराण, भविष्यपुराण, पद्मपुराण, अग्निपुराण, वृहद्धर्मपुराण, विष्णुपुराण, विष्णुधर्मोत्तरपुराण के अनेक स्थान पर गोवंश की रक्षा और गोदुग्ध की विशेषताओं का वर्णन मिलता है। गौ के दुग्ध, घृत, गोबर एवं गौमूत्र का उपयोग औषधियों तथा यज्ञों के विधि-विधान में बताया जाता रहा है। इसलिए यदि यह कहा जाए कि गौ की महत्ता से भारतीय धर्मशास्त्र ओत−प्रोत है-तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। ,

संसार भर के समुन्नत और प्रगतिशील कहे जाने वाले देशों में भारतीय शास्त्रों के उपर्युक्त कथन को चरितार्थ होते देखा जा सकता है। अमेरिका, डेनमार्क अथवा स्विट्जरलैंड कोई भी प्रगतिशील देश हो, सभी गाय का समुचित पालन करते हैं। अमृतोपम दूध, धी, मक्खन से भरपूर लाभ उठाते हैं। वहाँ न लक्ष्मी का अभाव है, न बल-पौरुष की कमी।

गोदुग्ध के सर्वोत्तम होने की बात संसार भर में एकमत से स्वीकार की जाती है। महर्षि सुश्रुत के शब्दों में, गाय का दुग्ध पवित्र, स्नायुवर्धक, शक्ति, ओज तथा शुक्राणु संवर्धक है। इसमें रोगनिवारण की अद्भुत शक्ति है। यह सर्वांगपूर्ण आहार है। पाश्चात्य जगत के आहार विशेषज्ञ शेरमैन का भी यही दावा है कि गाय का दूध सर्वोत्तम और पूर्ण आहार है। इसमें वे सभी शक्तिवर्धक तत्व विद्यमान हैं, जो मनुष्य के लिए आवश्यक हैं। उन्होंने इसका प्रयोग अलग-अलग चूहों पर करके देखा। पाँच सप्ताह तक एक चूहे का मात्र गोदुग्ध पर, दूसरे को अन्न पर रखा गया। गोदुग्ध लेने वाले चूहे का वजन पाँच सप्ताह में अन्न आहार खाने वाले से डेढ़ गुना हो गया, जबकि अन्न अहारी सुस्त पड़ा रहता एवं दुग्ध आहार करने वाला अपेक्षाकृत अधिक चुस्त हो गया।

इसी प्रकार के विचार बर्नियर ने व्यक्त किए हैं कि संसार की सुदृढ़ और बहादुर जातियों का सर्वोत्तम आहार गोदुग्ध ही रहा है। क्योंकि इससे दीर्घ आयु और निरोगता आसानी से प्राप्त की जा सकती है। पाश्चात्य जगत के जितने भी इतिहासकार हुए हैं, वे एकमत से स्वीकार करते हैं कि भर में बसी जाति संसार भर की सर्वश्रेष्ठ, वीर और साहसी जाति थी। जिसका मुख्य धन्धा पशु-पालन कृषिकर्म एवं मुख्य आहार गोदुग्ध था।

सुविख्यात विज्ञानवेत्ता डॉ. एस. ए. पीपल्स ने अपने दीर्घकालीन शोध-प्रयत्नों प्रयोग-परीक्षणों के उपरान्त यही निष्कर्ष दिया कि मनुष्य की प्रकृति के लिए गाय का दूध ही सबसे निरापद एवं पौष्टिक सम्पूर्ण आहार है। इसमें सभी जीवनदायी तत्व पाए जाते हैं। यदि कोई आहार न भी लिया जाए और केवल गाय के दूध का ही सेवन किया जाए, तो व्यक्ति न केवल स्वस्थ, पुष्ट और सशक्त जीवन व्यतीत कर सकता है, वरन् उसका स्वभाव भी मानवोचित गुणों से ओत-प्रोत हो सकता है।

उन्होंने अपने अध्ययन में यह पाया कि यदि गाएँ कोई विषैला पदार्थ खा जाती हैं, तो भी उसका कोई प्रभाव उनके दूध में नहीं आता। उसके शरीर में सामान्य विषों को पचा जाने की अद्भुत क्षमता है। अन्य स्तनधारी जीवन यदि विषाक्त आहार ग्रहण करते है, तो उनके शरीर में वह विष जमा होता रहता है और मृत्यु का कारण बनता है। अधिक मात्रा में खा लिए जाने पर तो एक ही बार में मृत्यु हो जाती है। न्यूयार्क की विज्ञान अकादमी की बैठक में अन्य वैज्ञानिकों ने भी उनके इस मत की पुष्टि की।

दूध की उत्कृष्टता चिकनाई के भाग से मापने की भारी भ्रान्ति भारतीय जनमानस में घर कर गयी है और इसी भुलावे में आकर गौर के स्थान पर भैंस पालन का प्रचलन आरम्भ हो गया है, जिससे भारत की आर्थिक दशा और स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। चिकनाई को ही लिया जाए, तब तो दूध की अपेक्षा मूँगफली, तिल, सरसों आदि में भी पर्याप्त चिकनाई उपलब्ध हो जाती है, किन्तु गाय के दूध में प्राप्त चिकनाई इस प्रकार संतुलित है कि मनुष्य शरीर को अनुकूल पाचनक्रिया में सहायक तथा शारीरिक कल-पुर्जों के लिए उत्तम स्निग्धता तथा सम्बल प्रदान करती है।

दूध का महत्व चिकनाई से न होकर खनिज लवणों से है। जिनकी मात्रा, उपयुक्तता एवं श्रेष्ठता के आधार पर वैज्ञानिकों का स्पष्ट मत है कि गाय के दूध में 12 प्रकार के एमिनो एसिड, 11 प्रकार के फैटी एसिड, 6 प्रकार के विटामिन, 7 प्रकार के किण्व, 24 प्रकार के फास्फोरस यौगिक, 11 प्रकार के नाइट्रोजन तत्व उपलब्ध हैं। गाय के दूध में मुख्य एन्जाइम इस प्रकार पाए जाते हैं- पेरिक्सडेज, रिडक्टेज, लाइपेज, प्रोटिएज, लैक्टेज, फास्फेटेज, अलिनेज़, गैटालेज। दूध में पाए जाने वाले खनिजों में कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा-ताँबा आयोडीन, मैंगनीज, फ्लोरीन, सिलीकॉन आदि मुख्य हैं। गोदुग्ध में विटामिन ए-1 कैरोटिन डी. ई., टेकोफेराल, विटामिन बी-1, बी-2 रिवोफ्लेविन, बी-3, बी-4 तथा विटामिन-सी (एसकाॅर्विक एसिड) के रूप में पाए जाते हैं।

गाय के दूध की अनेकों विशेषताएँ में से एक विशेषता यह भी है कि जब अन्य स्रोतों से प्राप्त प्रोटीन कठिनाई से हजम होती हैं, वहीं गाय के दूध से प्राप्त 97 प्रतिशत प्रोटीन भाग पाचन-संस्थान पचा लेता है। दूसरी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि शरीर में उत्पन्न होने वाला यूरिक एसिड जो मूत्र में जलन, दाह और बदबू उत्पन्न करता है, गोदुग्ध सेवन से अधिक मात्रा में नहीं बना पता और शमन होता रहता है। इसमें एक विशेषता यह भी है कि यह रेडियोधर्मिता के प्रभावों से सर्वथा मुक्त है।

इन्हीं विशेषताओं के कारण आयुर्वेद ग्रन्थों में गोदुग्ध को नित्य सेवन करने योग्य महौषधि माना है। इसके गुणों की चर्चा करते हुए धन्वन्तरि, निघण्टु, सुवर्णादि वर्ग में कहा गया है-

पथ्यं रसायनं बल्यं हृद्यं मेधयं गववाँ पयः। आयुष्यं पुस्त्वं कृद्धात रक्तपित्तविकार नुत॥

अर्थात्- गोदुग्ध समस्त रोगों की अवस्था में पथ्यसेवन के लिए रसायन बलकारक, हृदयदौर्बल्य में लाभकारी, बुद्धि, आयु-वीर्यवर्द्धक वात, पित्त, रक्त विकारनाशक है। वैद्यक शास्त्र के अनुसार, इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि जब रोगी को सभी प्रकार के खाद्य पदार्थ सेवन की मनाही कर दी जाती है, तब भी चिकित्सक उसे गोदुग्ध का सत्परामर्श देकर स्वास्थ्य लाभ कराते हैं।

चरक संहिता के अनुसार, गोदुग्ध, मधुर, मृदु, बहल, श्लक्षण, पच्छिल, गुरु, मन्द, प्रसन्न गुणों वाला है। ओज के भी यही लक्षण हैं। सुश्रुत संहिता में गोदुग्ध को मलशोधक, पाचक, चिकना, वीर्योत्पादक, बल, आयु, प्राणसंवर्द्धक, अस्थिसंघ को सुदृढ़ सुनियोजित रखने वाला उत्तम रसायन बताया है, जो वात, पित्त विकारों का भी शमन करता है। सुश्रुत ने प्रवरं-जीवनीयां क्षीरमुक्तं रसायनम्-कहकर इसे जीवनीय माना है। इसके सेवन से ज्वर, भ्रम, मूर्छा, थकावट, तृष्णा, दाह, गुल्म, अफरा, रक्तपित्त, अतिसार, उदररोग, शूल, बवासीर और व्रण जैसे भयंकर रोग दूर हो जाते हैं।

गोदुग्ध से बने हुए पदार्थ भी अनेक रोगों का शमन करते हैं। भावप्रकाश के अनुसार, उक्तं दध्नामशेषाणाँ मध्ये गव्यं गुणाधिकम्॥ अर्थात् सब प्रकार के दहियों में गौदधि सबसे अधिक गुणकारी है। यह उत्तम बलकारक, पाक में स्वादिष्ट, पवित्र, दीपन, स्निग्ध, पौष्टिक और वातनाशक होता है। गाय के मट्ठा को त्रिदोषनाशक सब प्रकार के पथ्यों में उत्तम माना गया है। यह बवासीर और उदर-विकारनाशक है। गाय के मक्खन को अर्दित ओर कास को नष्ट करने वाला एवं बालकों के लिए अमृत तुल्य लाभकारी माना गया है। इसी प्रकार गोघृत कान्ति और स्मृतिदायक, बलकारक, वात-कफनाशक श्रमनिवारक, पित्तनाशक एवं शरीर को स्थिर रखने वाला माना गया है।

पोषण और स्वास्थ्य की दृष्टि से अद्वितीय गोदुग्ध एवं दुग्ध से बने पदार्थों के कारण गाय की महत्ता असंदिग्ध है ही, आर्थिक दृष्टि से भी वह कम उपयोगी नहीं है। यदि गोवंश की रक्षा नहीं की जा सकी, तो बैलों के बिना खेती हमारे कृषि प्रधान देश में किस प्रकार होगी? बैलों को हटाकर ट्रैक्टरों के सहारे भारत का गरीब किसान अपनी छोटी जोतों की खेती कैसे कर सकेगा? उन्हें जुटाने के लिए धन कहाँ से लायेगा? फिर छोटे गाँवों में उन्हें चलाने वाले ड्राइवर एवं सुधारने वाले कारीगर कहाँ से उपलब्ध होंगे? ये सब किसी तरह मिल भी जाएँ, तो फिर इन ट्रैक्टरों के लिए आज की परिस्थितियों में डीज़ल कहाँ से आएगा? वे ट्रैक्टर गोबर तो देंगे नहीं, फिर खाद की आवश्यकता कैसे पूरी होगी? इन सब तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए इसी निष्कर्ष पर पहुँचना पड़ता है कि कृषि, अर्थ-व्यवस्था स्वास्थ्य-रक्षा एवं धार्मिक, साँस्कृतिक हर दृष्टि से गाय को संरक्षण मिलना ही चाहिए।

इस संबन्ध में शान्तिकुञ्ज ने सर्वप्रथम पहल करते हुए गौशाला स्थापित करने का निश्चय किया है। यह गौशाला उसी भूखंड के एक भाग में होगी, जिसे अभी हाल में ही लिया गया है। गौरक्षा के बारे में बहुत कहा और लिखा जाता है। आन्दोलन एवं चर्चाएँ भी कम नहीं होती। परन्तु सार्थक कदम उठाने वाले विरले होते हैं। शान्तिकुञ्ज के संस्थापकों एवं उनके परिजनों का विश्वास कहने में नहीं करने में अधिक रहा है। इसी पूर्व प्रचलित नीति के अनुसार, यह कदम उठाया गया है, ताकि गायत्री परिवार के सदस्य गंगा, गीता, गायत्री के साथ ही गौर का भी महत्व समझें और इस साँस्कृतिक प्रतीक को प्रत्येक घर में सम्मानजनक एवं श्रद्धापूरित स्थान मिल सके।


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