सुदामा बगल में दबी चावल की पोटली देना नहीं चाहते थे, सकुचा रहे थे, पर उनने उस दुराव को बलपूर्वक छीना और चावल देने की उदारता परखने के बाद ही द्वारिकापुरी को सुदामापुरी में रूपान्तरित किया। भक्त और भगवान के मध्यवर्ती इतिहास की परम्परा यही रही है। पात्रता जाँचने के उपरान्त ही किसी को कुछ महत्वपूर्ण मिली है। जो आँखें मटकाते, आँसू बहाते, रामधुन की ताली बजाकर बड़े-बड़े उपहार पाना चाहते है, उनकी अनुदारता खाली हाथ ही लौटती है। भगवान को ठगा नहीं जा सकता है। वे गोपियों तक से छाछ प्राप्त किए बिना अपने अनुग्रह का परिचय नहीं देते थे। जो गोवर्धन उठाने में सहायता करने की हिम्मत जुटा सके, वही कृष्ण के सच्चे सखाओं में गिने जा सके।
यह समय युगपरिवर्तन जैसे महत्वपूर्ण कार्य का है। इसे आदर्शवादी कठोर सैनिकों के लिए परीक्षा की घड़ी कहा जाए, तो इसमें कुछ भी अत्युक्ति नहीं समझी जानी चाहिए। पुराना कचरा हटाता है और उसके स्थान पर नवीनता के उत्साह भरे सरंजाम जुटते है। यह महान परिवर्तन की-महाक्रान्ति की वेला है। इसमें कायर, लोभी, डरपोक और भांड़ आदि जहाँ-तहाँ छिपे हों, तो उनकी ओर घृणा, तिरस्कार की दृष्टि डालते हुए उन्हें अनदेखा भी किया जा सकता है। यहाँ तो प्रसंग हथियारों से सुसज्जित सेना का चल रहा है। वे ही यदि समय की महत्ता आवश्यकता को न समझते हुए जहाँ-तहाँ मटरगस्ती करते फिरेंगे और समय पर हथियार न पाने के कारण समूची सेना के परास्त होना पड़े तो ऐसे व्यक्तियों पर ही हर किसी का रोष ही बरसेगा, जिनने आपात स्थिति में भी प्रमाद बरता और अपना तथा अपने देश के गौरव को मटियामेट करे रख दिया।
-सूक्ष्मीकरण एवं उज्ज्वल भविष्य का अवतरण-1 (वा.क्र. 28)