रात का गहरा सन्नाटा सब ओर व्याप्त था । घने अंधेरे की काली चादर ने सबको अपने में ढ़क लिया था । पेड़-पौधे-पशु-पक्षी राह-पगडण्डियाँ सब अपने को इसी आवरण में छिपाये थे । वे सभी पशोपेश में थे, उन्हें समझ में नहीं आ रहा था किस ओर कदम बढ़ायें । वे सब अंधेरे में एक दूसरे की चमकती आँखों में यदा कदा ताक लेते और फिर सोच में पड़ जाते । इस अंधकार ने उनमें से किसी को अपनी सारी कोशिशों के बावजूद रास्ता सूझ नहीं पड़ रहा था ।
ये सभी सैनिक थे भारतीय सैनिक । संख्या में 25-30 रहें होंगे । उनकी टुकड़ी के नायक के पास उस क्षेत्र का एक नक्शा जरूर था । मगर इस समय उससे किसी तरह की कोई सहायता नहीं मिल पा रही थी । उन्हें अपना हर कदम भली-भाँति सोच समझकर आगे बढ़ाना था । कोई भी गलत कदम जानलेवा साबित हो सकता था । यह युद्ध का समय था । पाकिस्तानी सेनाएँ जान-बूझकर भारतीय क्षेत्र में अशाँति फैलाने की कोशिश काफी अर्से से करने लगी थीं और अब तो उन्होंने बाकायदा लड़ाई भी छेड़ दी थी । हमारी सीमाओं के रणबांकुरा प्रहरी उनका मुँह तोड़ जवाब दे रहे थे ।
स्ना की इस टुकड़ी की नियुक्ति जम्मू-कश्मीर में थी । आज इसे 15-20 मील दूर चौकी पर पहुँचना था और वह भी रातों-रात ताकि दुश्मन को उसकी योजना और अभियान का पता न चल सके । अपने वायरलैस सेट पर कमाण्डर पोस्ट से उनका सम्पर्क लगातार बना था । टुकड़ी के चालक ने वरिष्ठ अधिकारियों को अपनी समस्याओं से अवगत करा दिया था । वरिष्ठ अधिकारी भी ऐसे में क्या करते ? घनी अंधेरी सन्नाटे भरी रात ऊपर से पिछली रात हुआ हिमपात । कहीं कुछ नहीं सूझ पड़ रहा था । उधर कड़ाके की ठंड अपने तेवर दिखा रही थी । तेज बर्फीली हवा रात के भयावह सन्नाटे को चीरती हुई उन सब की पसलियों को भेद रही थी । जिस किसी तरह उन सबने सावधानी पूर्वक एक ओर कदम बढ़ाये । लेकिन कुछ ही देर जाने पर वह रास्ता भी बन्द हो गया ।
तब तो इस कड़ाके की सर्दी में भी सबके चेहरे पसीने से भीग गये । वे अपनी पिछली चौकी काफी पीछे छोड़ चुके थे और आगे चारों ओर बर्फ ही बर्फ दिखाई दे रही थी । टुकड़ी के नायक ने अपनी घड़ी पर नजर डाली । तीन बज रहे थे, सुबह के तीन यानि कुछ ही घण्टों के बाद सुबह हो जायेगी और वे इस समय पूरी तरह खुले में थे । हर तरह से असुरक्षित सुबह के उजाले में रास्ता मिलने की संभावना कम और दुश्मन के हमले की संभावना ज्यादा थी । सुबह का प्रकाश उनके लिए रक्तपात का संदेश ला सकता था ।
वो सैनिक थे जाँबाज सैनिक ! उनमें से किसी को अपने मरने का खौफ नहीं था । अफसोस था, तो इस बात का कि यदि दुश्मन की गश्त देती टुकड़ी आस पास हुई तो उनसे मुठभेड़ निश्चित थी और इस मुठभेड़ का मतलब था कि सारी योजना धूल में मिल जायेगी । सारे किये धरे पर पानी फिर जायेगा । किसी भी कीमत पर उन्हें रात के अंधेरे में ही अगली चौकी तक पहुँचना था । पर कैसे ? समस्या यही थी ।
टुकड़ी के नायक के माथे पर चिंता की रेखायें गहरी और घनी होने लगी । साथी सैनिक भी परेशान हो उठे थे । भयावह अंधेरे में, बर्फीली हवाओं के थपेड़ों को सहते हुए एक स्थान से दूसरे स्थान पर गहरे सोच में डूबे हुए 25-30 निर्भीक सैनिक ।
तभी वायरलैस सेट ने अपना संकेत देना शुरू किया । टुकड़ी के चालक ने रिसीवर अपने कान में लगाया । उधर कमाण्डर पोस्ट से पूछा जा रहा था, “तुम लोग कब तक चौकी पहुँचोगे ? जल्दी करो अब सुबह होने में ज्यादा देर नहीं ।”
टुकड़ी के नायक ने अपनी परिस्थितियों के बारे में बताया । उधर से चेतावनी भरा संदेश आया, परिस्थितियाँ कुछ भी हों पर तुम लोग ध्यान रखो, “सोल्जर्स् नेवर क्विट टिल डेथ”, यानि की सैनिक मरने तक अपने कदम पीछे नहीं हटाते । तुम सब रास्ता ढूँढ़ो और आगे बढ़ो । अपने कमाण्डर का संदेश सुनकर टुकड़ी नायक ने एक फौजी के से विश्वास भरे लहजे में कहा - सर सुबह से पहले हम जरूर चौकी पहुँच जायेंगे ।
कहने को तो उसने कह दिया, पर असलियत तो कुछ और ही होने जा रही थी । तभी सारे सिपाही, टुकड़ी का नायक, साँस थाम चौकन्ने हो गये । उस निर्जन इलाके में कोई फौजी आ रहा था अकेला । सैनिक ने कदमों की आहट से उसे पहचान लिया कि जरूर वह कोई फौजी ही है ।
लेकिन इस तरह वह अकेला क्यों ?
क्या पता, हो सकता है कि दुश्मन का कोई भटका हुआ सिपाही हो ? ऐसे अनगिनत सवाल एक साथ ही एक ही पल कौंध रहे थे ।
सभी सावधान हो गये । हरेक ने अपने अपने हथियार सँभाल लिये । कदमों की आहट लगातार तेज होती जा रही थी । आने वाले का कदम उन्हीं की ओर बढ़ रहा था । अब तक यह साफ हो चुका था कि आने वाला जो कोई भी है उन्हीं की ओर आ रहा है ।
अब तो साँस लेना भी मुसीबत को बुलावा भेजना था । वे सब किसी तरह अपनी उपस्थिति का आभास नहीं होने देना चाहते थे । लेकिन करें भी तो क्या ? आने वाला उनके पास तक पहुँच चुका था । अब वह आकृति उनके समीप आ चुकी थी ।
वह अकेला था उसके साथ और कोई नहीं था ।
दूसरे शब्दों में उससे कोई तत्कालिक भय की बात नहीं थी ।
वह एक और वे पच्चीस थे । तभी टुकड़ी के नायक ने अपनी टार्च की तेज रोशनी उस पर फेंकी । अब तो टुकड़ी के चालक ने ही नहीं, सभी ने उसे देखा, उसके सामने अपनी ही सेना का एक कैप्टन खड़ा है । आकर्षक चेहरा, सुगठित शरीर । उसके खड़े होने के अन्दाज में एक अदम्य आत्मविश्वास एवं गहरी सौम्यता झलक रही थी ।
अभी टुकड़ी का नायक कुछ बोल पाता, कि वह आगन्तुक कैप्टन कहने लगा, आगे का रास्ता बेहद खतरनाक है और हिमपात की वजह से सब छिप गया है । आप लोग मेरे साथ आइये, मैं आपको रास्ता दिखा दूँगा अगली चौकी तक ही तो जाना है आपको ।
टुकड़ी के नायक ने थोड़ा आश्वस्त होते हुए जवाब दिया कि हम सब इन कश्मीर की पहाड़ियों में लगभग खो से गये हैं सुबह होने से पहले हम सबको हर हाल में अपनी चौकी तक पहुँचना है । लेकिन करें क्या ? कोई रास्ता ही नहीं सूझ पड़ता । चारों तरफ बर्फ और भयानक अंधेरा है । नायक की बात समाप्त होने के पहले ही आगन्तुक कैप्टन ने कहा, हाँ मुझे मालूम है कि कल एक्शन हुआ था, लेकिन दुश्मन को तो जबरदस्त क्षति हुई । अपनी सारी ओछी चालों के बावजूद वह कामयाब न हो सका । फिर भी उस चौकी को सैनिकों की बेहद जरूरत थी । बड़ा अच्छा हुआ, आप लोग आ गये । उस कैप्टन ने खुश होते हुए कहा । फिर पल भर रुक कर बोला, आप लोग मेरे पीछे पीछे आइये । इधर कई रोज से मैं इधर की पोस्टिंग पर था । इसलिए इस इलाके का चप्पा-चप्पा मेरा छाना हुआ है ।
वह आगे बढ़ने लगा । उसके पीछे नायक के कदम पड़ रहे थे । सैनिक अपने नायक का अनुगमन कर रहे थे ।
कैप्टन उससे बातें करने लगा । उसने बताना शुरू किया कि कल दुश्मन ने किस तरह भीषण गोलाबारी की । कई लोग मारे गये । दोनों ओर हेवी कैज्युल्टी हुई । खुशी की बात इतनी ही रही कि वे तमाम कोशिशों के बाद भी अपनी चौकी छीनने में कामयाब नहीं रहे । फिर उसने नायक से सवाल किया, क्या आपने कभी कोई मृतात्मा देखी है ?
नायक का दिमाग उस समय तरह-तरह के ख्यालों में उलझा था । उसे समय पर चौकी पहुँचने की फिक्र लगी थी । कल की योजनाएँ बनानी थीं । पता नहीं सुबह से क्या होने लगे । हो सकता है सूरज उगते ही गोलाबारी शुरू हो जाये । वह अपनी इन्हीं चिंताओं में डूब उतर रहा था । कभी-कभी उसे अपने आगे चल रहे युवा कैप्टन का ख्याल भी घेर लेता, आखिर कौन है यह ? पता नहीं किस यूनिट का इंचार्ज है, अभी तक इसने अपना नाम तक नहीं बताया ? यहाँ बीहड़ में अकेला भटकने क्यों आया है ? वह उससे सारे सवाल पूछने वाला ही था कि कैप्टन ने फिर से अपना वही सवाल दोहराया क्या आपने कभी किसी मृतात्मा को देखा है ?
कैप्टन कहने लगा, मृतात्माएँ होती हैं और हर मृतात्मा बुरी नहीं होती । अनेक मृतात्माएँ तो संकट में पड़े आपत्तिग्रस्त लोगों की सहायता भी करती हैं ।
एक पल के लिए नायक चौंक उठा, आपत्तिग्रस्त लोगों की मृतात्माओं द्वारा सहायता ।
एक सवाल मन में कौंध रहा था । कही यह भी कोई मरा हुआ आदमी तो नहीं ? फिर उसे अपने इस अनजाने व्यक्ति के बारे में ऐसे विचार पर ग्लानि होती है । उसने अपने बातचीत का विषय बदलने की कोशिश की तथा उसके नाम और यूनिट के बारे में पूछा ।
कैप्टन जवाब टाल गया । कहने लगा कि अब तो आपकी चौकी भी पास आ गयी है । पौ फटने में ज्यादा देर नहीं । चौकी पहुँचने पर आपको सब पता चल जायेगा ।
और सचमुच कुछ ही कदमों के बाद चौकी आ गयी थी । सुबह की झुटपुटे की अभ्यस्त निगाहें उन्हें देख पा रही थीं । एक भारी वजन उनके सिर से उतर गया । तभी कैप्टन ने चौकी की तरफ इशारा करते हुए कहा, लो आप लोग सही सलामत समय पर पहुँच गये, बड़ी खुशी हुई, जाइये ।
लेकिन आप भी तो हम लोगों के साथ चलेंगे, टुकड़ी के नायक ने कहा । नहीं, माफ कीजिए । थोड़ा जरूरी काम है अभी चौकी पर नहीं पहुँच सकूँगा । नायक कुछ ओर कह पाता कि कैप्टन मुड़कर एक ओर जाने लगा । नायक समेत उसे सारे सिपाही लौटते देख निहारने लगे । कई सवाल उन सब के मन में थे, तभी अचानक उन सब की नजर कैप्टन की पीठ पर पड़ी, अब तक सुबह के प्रकाश में सब कुछ साफ साफ झलक रहा था । उन्होंने देखा कि ठण्ड से बचाव के लिए पहनी गयी जरसी में एक बड़ा सा छेद था मानो गोली लगी हो । छेद के आस पास का हिस्सा काला सा पड़ गया था । संभवतः जलने या गोली के घाव के कारण बहे खून के जमने से ।
टुकड़ी का नायक यह सब देखकर अवाक् था । उसके बाकी साथी भी भौचक्के थे । तभी अचानक नायक को कुछ देर पहले कही गयी कैप्टन की बात याद आई कि सभी मृतात्माएँ बुरी नहीं होतीं, वे आपत्तिग्रस्त लोगों की मदद करती हैं । तो क्या! ये कैप्टन भी ..............। आगे वह कुछ सोच न सका ।
थोड़ी देर उसी जगह खड़े होने के बाद वे सब चौकी के अन्दर चले गये । जहाँ कमाण्डर उनका इन्तजार कर रहा था । जब इन लोगों ने रात का सारा घटनाक्रम सुनाया तो वह चौंक पड़ा । नहीं, ऐसा नहीं हो सकता । फिर उसने कैप्टन के विषय में परिचय देते हुए संक्षेप में बताया कि अभी कल के एक्शन में उसे पीठ पर गोली लगी थी । उसे बचाया न जा सका । कल शाम को हम लोगों ने उसकी अन्त्येष्टि सम्पन्न की है ।
यह सुनकर नायक की आवाज रुंध गयी, गला भर्रा आया । बोला सर सर उसने मुझसे कहा भी था कि चौकी पर पहुँचने के बाद पता चल जायेगा । ठीक वही हुआ ।
थोड़ी देर रुक कर उसने पूछा - सर यह संभव है क्या ? मेरी तो अभी कुछ समझ में नहीं आ रहा है । क्या मृतात्माएँ भी हमारी सहायता करती हैं । पहले तो मैं भी विश्वास नहीं करता था, कमाण्डर बोला, लेकिन पिछली रात जो हुआ उसे बाद शक की कोई गुँजाइश नहीं रही । निश्चित पुण्यात्माएँ मरने के बाद भी अपनी सेवा सहायता की वृति नहीं छोड़तीं । देश के लिए अपना बलिदान देने वाला कैप्टन निश्चय ही पुण्यात्मा था । कमाण्डर के इस कथन के साथ ही सभी के सिर उसके सम्मान में झुक गये ।