सामान्य लोकसेवी (Kahani)

March 1997

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एक धर्माचार्य को इस बात पर बड़ा घमण्ड था कि उनकी देश देशान्तरों में काफी ख्याति है, बहुत बड़ा समुदाय और अपार सम्पत्ति है, वैभव है, शास्त्र कंठस्थ हैं। उन्हें पूरा भरोसा था कि मरने के बाद देवता स्वर्ग में अगवानी करेंगे। स्वर्ग से परमात्मा उन्हें खुद ही लेने आयेंगे। एक दिन धर्माचार्य को नींद में एक सपना आया कि वह मरकर स्वर्ग के दरवाजे पर पहुँच गये हैं। किन्तु यह देखकर वह बड़े हैरान थे कि स्वर्ग के द्वार पर न कोई स्वागत के लिए पहुँचा है, न परमात्मा ही आये हैं। सब तरफ सन्नाटा देखकर वे सकते में आ गये।

सोचा कि एक बार फिर दरवाजा खटखटाया जाये। इस बार कोशिश करने पर एक खिड़की खुली, कोई झाँका। धर्माचार्य को ऐसा लगा कि जैसे सूरज उग आया हो। धर्माचार्य घबराकर आड़ में छिपकर कहने लगे परमपिता आप जरा पीछे हट जाइये मैं आपका प्रकाश सहन नहीं कर पा रहा हूँ।

इस पर उसे उत्तर मिला, क्षमा करें मैं तो यहाँ का द्वारपाल हूँ। परमेश्वर और मेरे बीच तो लाखों योजन का फासला है। मुझे तो दर्शनों का अभी तक अवसर नहीं मिला है। गुरुदेव यह सुनकर घबराये। फिर भी उन्होंने छिपे-छिपे ही कहा - आप परमेश्वर तक सूचना पहुँचा दे कि धरती से अमुक धर्मगुरु आया है। धरती पर मेरी बड़ी ख्याति थी। मेरा नाम उन्होंने जरूर सुना होगा।

द्वारपाल ने कहा - क्षमा करें, पहले तो आप यह बताइये कि आप किस धरती से आये हैं ? अब तो धर्मगुरु चौंके और बोले - क्या मतलब किस पृथ्वी से ? अरे, तुम इतना भी नहीं जानते वहाँ तो मेरे करोड़ों अनुयायी रहते हैं।

यह सुनकर द्वारपाल ने मुश्किल से अपनी हँसी रोकते हुए कहा - तब तो आपका ज्ञान बहुत अल्प है। ब्रह्माण्ड में अनेकों पृथ्वी हैं। आप अपनी पृथ्वी का नम्बर बताइये।

अब तो धर्मगुरु संकट में पड़ गये। वह तो सोच रहे थे कि वैभव और ख्याति की जानकारी निश्चित ही परमात्मा को होगी। तभी द्वारपाल ने पुनः कहा चलो पृथ्वी का सही नम्बर याद नहीं तो आकाशगंगा और अपने सौरमण्डल का ही नाम बता दो ताकि रिकार्ड देखकर पता लगाया जा सके कि आप कहाँ से आये हैं ?

यह सुनकर धर्माचार्य की विस्मय और परेशानी बढ़ती ही जा रही थी। वह सोचने लगा कि जीवन भर आपाधापी करने, प्रशंसा बटोरने, अनुयायियों की संख्या बढ़ाने में ही लगा रहा। अपनी तुच्छता को ही अपनी महानता समझता रहा। कभी परमात्मा के विराट स्वरूप की कल्पना तक नहीं की। इस सोच विचार में घबराहट से उसकी नींद खुल गयी। नींद खुलने पर लगा कि वह पहली बार जाग्रत हुआ है, क्योंकि उसने अब सामान्य लोकसेवी बनने की ठान ली थी।


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