बचपन और युवावस्था पार किये बिना कोई वृद्ध नहीं हो सकता। ठीक उसी तरह कोई व्यक्ति कर्तव्यनिष्ठ एवं समाजनिष्ठ हुए बिना ईश्वरनिष्ठ नहीं हो सकता। मन बहलाव वाली भक्ति की बात दूसरी है। पर यदि हम वस्तुतः ईश्वर तत्व तक पहुँचना चाहते हैं तो पवित्र जीवन और सेवा धर्म की टाँगों की सहायता से ही इस महान यात्रा को पूरा किया जा सकता है।