विचारों की दौलत

March 1997

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रियासत काफी छोटी थी। लेकिन वहाँ के खलीफा महमूद की कर्तव्य-परायणता ने उसे धन-धान्य से समृद्ध कर रखा था। एक रात वह सोने चला तो उसने अलमारी के पीछे छिपे व्यक्ति को देखा।

महमूद ने उस व्यक्ति को पकड़ कर बाहर खींचा । वह कोई चोर था । पकड़े जाने के कारण थर-थर काँप रहा था । महमूद ने उसे अपने पास बैठाया और कहा - “तुम घबराओ मत । मेरे रहते कोई तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता । जो मैं पूछता हूँ उसका सही-सही जवाब दो। तुम यहाँ चोरी करने आए थे?”

“जी हाँ हुजूर मैं इसी बदनियत से यहाँ आया था ।” चोर ने कहा ।

“कुछ हाथ लगा?” महमूद ने पूछा ।

“जी नहीं मैं अभी-अभी यहाँ आया हूँ।” चोर ने जबाब दिया ।

महमूद ने चोर को गौर से देखा । वह किसी अच्छे घराने का शरीफ युवक लगता था। महमूद ने सवाल किया, “तुम किसी अच्छे घराने के लगते हो, इस गंदे काम को कब से करना शुरू किया ?” खलीफा के इस हमदर्दी पूर्ण व्यवहार से चोर रो पड़ा । रोते हुए उसने जो दास्तान सुनायी, वह बेहद दर्दनाक थी । उसके अनुसार उसका पिता बगदाद का व्यापारी था, उनके पास ढेरों सम्पत्ति थी। किन्तु उनके मरने के बाद उनके दोस्तों ने उनकी सम्पत्ति हड़प ली और उसे तथा उसकी माँ को बेघर कर दिया। अपनी बीमार माँ के लिये वह पैसों का बन्दोबस्त चाहता था। जिसके लिए मजबूरन उसे चोरी का रास्ता अख़्तियार करना पड़ा और पहली बार में ही पकड़ा गया। चोर की बताई सभी बातें सच थी। खलीफा चोर के पिता को निजी तौर पर जानता था सारी कहानी सुनकर उसका दिल भर आया। उसने चोरी करने आए नौजवान की पीठ सहलाते हुए कहा - बेटे मालिक अपने बन्दों को कभी

- कभी मुसीबत में डालकर इम्तहान लेता है। हमें मुसीबतों में भी

नेक नियति से काम लेना चाहिए। अल्लाह बड़ा कारसाज है, उसके रहम नर भरोसा रखो और मेहनत करते हुए ईमान के रास्ते पर चलो । इतना कहकर उसने अपनी तिजोरी से तीन सौ दीनारें निकालकर उस नौजवान को दे दिए । तीन सौ दीनारें उसके लिए काफी थीं । कम में ही माँ का इलाज हो गया । बाकी रकम लेकर वह महमूद के पास वापस करने लिए आया । महमूद ने बाकी रकम रकम लेने से मना कर दिया और----------- अपनी माँ का पेट भरना ।”

नौजवान को महमूद का यह विचार अच्छा । उसने बतायी गयी जगह पर फलों की दुकान खोल ली । धीरे-धीरे दुकान चल निकली । कुछ दिनों बाद उसने फलों की धन्धा बन्द करके सूखे मेवे का व्यापार शुरू किया । इसी बीच उसकी माँ मर गयी । लेकिन तब तक कारोबार में काफी तरक्की हो जाने के कारण वह पास की एक बड़ी रियासत में रहने लगा ।

इस घटना को चौदह वर्ष बीत गये । खलीफा महमूद बूढ़ा हो चला था उसके लड़के थे नहीं जो काम सँभालते । काम न सँभल पाने कारण रियासत उसके हाथ से निकल गयी थी । हवेली और कुछ जमा पूँजी के सिवाय उसके पास कुछ नहीं बचा । उधर कभी चोरी करने आया व्यापारी वह नौजवान मुल्क का बहुत बड़ा व्यापारी बन गया था । उसका व्यापार पास के कई मुल्कों तक फैल चुका था लोग उसे सेठ हासीम अली के नाम से जानने लगे थे ।

खलीफा जो अपने बुढ़ापे के कारण ठीक तरह से चल भी नहीं पा रहा था । उसकी एकमात्र बेटी फातिमा विवाह के योग्य हो चुकी थी । महमूद का अब वह मान-सम्मान नहीं रह गया था अतः बेटी के विवाह के लिए धन जुटाने के लिए उसे कठिनाई हो रही थी । बड़ी मुश्किल से उसने बीस हजार दीनारें इकट्ठा की थीं लेकिन इतने में विवाह नहीं हो पा रहा था । अपनी चिन्ता का कोई हल न देखकर अन्ततः बूढ़े महमूद ने अपना खानदानी हीरा बेचने का फैसला किया और लाठी टेकता हुआ जौहरी के घर की ओर चल पड़ा ।

अभी उसने हवेली के मुख्य दरवाजे पर कदम रखा ही था कि चौक पड़ा । करीब 35-40 साल का एक आकर्षक व्यक्ति चमचमाते कपड़ों में उसके सामने खड़ा था । उसके पीछे सैकड़ों हाथियों का जत्था जुलूस की शक्ल में था । महमूद ने आँखें मिचमिचाते हुए पूछा - “कौन हो मियाँ ? मेरे ख्याल में यहाँ के हाकिम से मिलना चाहते हो । भाई उसकी हवेली तो उस रास्ते पर है ।”

“मैं आपसे मिलने आया हूँ चचा जान । आपने मुझे पहचाना नहीं । मैं हाशिम हूँ आपका हाशिम ।”

“अरे हाशिम तुम यहाँ । कैसे आना हुआ बेटे ? तुम तो बड़े आदमी हो गये हो ।” कहते हुए महमूद की आँखें छलक आईं ।

चचा मुझे मालूम हुआ कि आप फातिमा बहन की शादी करने जा रहे हैं । उसी के लिए कुछ उपहार लाया हूँ।” इतना कहकर हाशिम ने अपने नौकरों को घोड़ों और हाथियों पर लदे सामान को हवेली के आँगन में रखने का हुक्म दिया ।

महमूद जो खुशी के आँसू रोक नहीं पा रहा था बोला - “अरे! बेटे यह सब इतना ?” यह सब आपके द्वारा दिये गये अच्छे विचार का फल है । आपकी सलाह मानकर मैं मेहनत और ईमानदारी की राह पर चला और आज इस मुकाम पर हूँ । यह मैं अपने निजी अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ कि अच्छे विचारों को अपनाने और उस पर चलने का सबब और कुछ नहीं । मैंने तो सिर्फ एक अच्छे विचार को अपनाया । जो अपनी जिन्दगी में कई अच्छे विचारों को अमल में लाते होंगे, वे तो पीर फकीर तक बन जाते होंगे ।”

“ ठीक कहते हो बेटे, अच्छे विचारों से बढ़कर इस दुनिया में कुछ नहीं । जो इन पर अमल करते हैं, उनको दुनियावी दौलत से लेकर रूहानी सुकून तक सब कुछ हासिल हो जाता है । अल्लाह के नूर का नजारा भी उनके लिए मुश्किल नहीं ।” यही बात पूरी करते हुए महमूद ने उसे गले से लगा लिया ।


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