एक व्यक्ति, एक साथ, एक ही समय दो स्थानों पर

March 1997

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

जिसने सुना उसी ने दाँतों तले उँगली दबा ली। हरेक की जबान पर एक ही सवाल था, आखिर ऐसा किस तरह ? एक ही समय एक ही व्यक्ति दो स्थानों पर उपस्थित और वह भी एक स्थान से सैकड़ों मील दूर दूसरे स्थान पर।

शुरुआत में ज्यादातर लोगों को इस बात पर हँसी आई। लेकिन जब किसी और के कथन उसकी अनुभूतियों को बदलने लगे, तो शक की गुँजाइश न रही। धीरे-धीरे पत्रकार और बुद्धिजीवी आकृष्ट होने लगे। उन्होंने अपने तरह से सच्चाई को परखने की कोशिश की और उसे खरा पाया। अब तो उसके अपने देश और बाहर के देशों के वैज्ञानिकों के हतप्रभ होने की बारी थी। विज्ञान की दुनिया के लिए ऐसा होना किसी तरह से संभव न था। अब तक के अन्वेषण अनुसंधान की परम्पराएँ ऐसा कुछ भी नहीं खोज सकी थी जिसके आधार पर इस घटना की व्याख्या की जा सके।

परीक्षण आवश्यक माना जाने लगा। सभी ने यह जिम्मेदारी औण्टेरियो इन्स्टीट्यूट के निर्देशक डॉ. मार्टिन स्पेन्सर को सौंपी। यह वर्ष 1937 का समय था। इस समय डॉ. स्पेन्सर की ख्याति एक प्रख्यात मनोवेत्ता के रूप में विश्वव्यापी हो चुकी थी। शुरुआत में उन्होंने किसी भी दावे को मानने से इनकार करते हुए कहा, ऐसा दावा करने वाला जरूर कोई ठग है। वह अपने बारे में इस तरह की बातें प्रचारित करके मुफ्त की ख्याति पाना चाहता है, हो सकता है उसका इरादा कुछ धनी-मानी अंध विश्वासी लोगों को ठगने का हो।

लेकिन जब इस जमाने के प्रतिष्ठित बुद्धिजीवियों ने उन्हें अपने अनुभव बतायें और लुईस राजर्स के दावे से अपनी सहमति जाहिर की तो वह वैज्ञानिक जाँच पड़ताल के लिए तैयार हो गये। लुईस राजर्स का जन्म इंग्लैण्ड में हुआ था। तीन साल की उम्र में वह कनाडा चला आया। सन 1931 में वह टोरोण्टो में जाकर बस गया। वहाँ वह कतिपय ऐसे लोगों के साथ काम करने लगा जो मृत आत्माओं के सूक्ष्म शरीरों से संबंध स्थापित करते थे। धीरे-धीरे उसे इस बात में आनन्द आने लगा। स्वयं भी वह मृत आत्माओं का आह्वान करने लगा और सूक्ष्म दुनिया लोक लोकान्तर की जानकारी हासिल करता। लोग उसके पास मृत संबंधियों से भेंट करने के लिए आने लगे। ज्यादातर समय वह इन्हीं लोगों के लिए काम करता। बाकी समय में उसकी अपनी साधना चलती रहती। हालाँकि इस समय तक उसके बारे में लोगों को कुछ खास जानकारी नहीं थी।

लेकिन इतने दिनों की साधना के दौरान उसे अपने अस्तित्व में कुछ विशेष होने का आभास होने लगा था। उसे लगने लगा था कि वह स्वयं को दो रूपों में प्रकट कर सकता है। सूक्ष्म आत्माओं को बताये गये निर्देश के अनुसार उसने साधना करके यह विद्या सीख ली थी जिसके द्वारा वह सामान्य भौतिक शरीर के साथ एक अन्य संकल्प शरीर में भी प्रकट हो सकता था। ये दोनों शरीर दो अलग-अलग स्थानों पर दो अलग-अलग ढंग से सक्रिय रह सकते थे। देखने में दोनों में कोई भेद मालूम नहीं पड़ता। दोनों ही शरीरों में उसकी सूक्ष्म चेतना सक्रिय रहती और परस्पर आँतरिक संवाद बनाये रखती।

उसका भेद तब खुला जब उसकी दो परिचित स्त्रियों की टोरोण्टो में भेंट हुई। एक दिन जब ये दोनों बाज़ार में मिलीं, तो उनमें लुईस राजर्स के बारे में बात छिड़ गयी। एक महिला ने कहा मुझे पता ही नहीं था कि मि. लुईस राजर्स आज कल माँटियल गये हुए हैं। मेरी बहन ने उन्हें मंगलवार को वहाँ देखा था और उनसे काफी देर बातें कीं, साथ बैठकर काफी पी।

यह सुनते ही दूसरी औरत चौंक पड़ी। आश्चर्यचकित होकर उसने कहा, यह असंभव है, ऐसा हो ही नहीं सकता। क्यों ? पहली औरत ने जिज्ञासावश पूछा।

क्योंकि पिछले मंगलवार तो मि. लुईस राजर्स मेरे घर पर थे। वह पूरे दिन मेरे परिवार के साथ रहे। दूसरी महिला ने हैरतअंगेज बयान दिया।

इस बात पर दोनों औरतें काफी समय तक बहस करती रहीं और इसके बाद लुईस राजर्स के बारे में काफी अफवाहें फेल रही थीं, कुछ झूठी और कुछ सच्ची। लुईस राजर्स के एक साहसी परिचित ने उससे इन अफवाहों के बारे में एवं उसके दूसरे व्यक्तित्व के बारे में पूछ लिया। जबाब में लुईस राजर्स ने मुस्कुराते हुए कहा, यदि तुम चाहो तो मुझे दोहरे व्यक्तित्व का स्वामी मान सकते हो।

अब तो लुईस राजर्स के बारे में सूचनाएँ एकत्रित की जाने लगी। प्राप्त सूचनाओं का विश्लेषण करने पर पता चला कि यदि एक जगह लुईस राजर्स वाक् पटु, कुशल, चुस्त और सक्रिय होता था तो दूसरी ओर वह खामोश और सुषुप्त सा होता। अपने एक अंतरंग मित्र को इसका भेद बताते हुए उसने एक बार कहा, दरअसल उसकी साधना अभी पक्की नहीं हो पाई है दूसरे शरीर को सक्रिय, सतेज एवं प्रखर बनाये रखने के लिए जितनी प्राण ऊर्जा चाहिए अभी वह उतनी नहीं जुटा पाया है। यदि तप प्रखर हो सका तो आगे ऐसी परेशानी नहीं होगी।

सन 1937 होते होते उसके बारे में कहानियाँ इतनी चर्चित हो गयी कि वैज्ञानिक एवं प्रतिष्ठित बुद्धि जीवी तक हतप्रभ होने लगे। इसी क्रम में डॉ. मार्टिन स्पेन्सर अपने वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए आगे आए। उनके साथ लुईस राजर्स के निवास पर पहुँचे साथी वैज्ञानिकों ने लुईस राजर्स से पूछा कि वह उनके प्रश्नों के उत्तर देगा, तो उसने स्पष्ट मना कर दिया। इससे इन्स्टीट्यूट के निर्देशक डॉ. स्पेन्सर असामंजस्य में पड़ गये। थोड़ी देर बाद कुछ सोचते हुए उन्होंने उससे जानना चाहा कि उसके प्रश्नों के उत्तर देने में आखिर उसे किस बात का डर है ?

प्रत्युत्तर में लुईस राजर्स ने कहा कि वह नहीं चाहता कि उसके काम और उसके परिचितों के विश्वास के आधार पर वैज्ञानिक सिद्धांत गढ़े जाएँ। डॉ. स्पेन्सर ने उन्हें बताया कि ऐसा नहीं होगा, वह अपने साथियों के साथ पक्षपात रहित प्रयोग सम्पन्न करेंगे। यह कार्य पूरी तरह से तटस्थता, भेदभाव रहित एवं वैज्ञानिक प्रयोग के अनुरूप पूर्ण ईमानदारी से सम्पन्न होगा। डॉ. स्पेन्सर के इस कथन के बाद उनके परीक्षण में भाग लेने के लिए वह तैयार हो गया।

इस समय तक और लोग भी लुईस राजर्स के बारे में फैल रही अफवाहों को गम्भीर रूप लेने लगे थे। पुलिस भी छान बीन में लग गयी थी। लुईस राजर्स के नाम से एक फाइल भी तैयार कर ली गयी थी।

डॉ. स्पेन्सर का परीक्षण शुरू हो गया। उनके प्रयोग में एक शर्त यह थी कि राजर्स अगले तीन हफ्तों तक टोरोण्टो के बाहर नहीं जायेगा। स्पेन्सर ने अपने साथी वैज्ञानिक से कहा कि वे राजर्स के घर की पहरेदारी करे। जब कभी भी वह घर से बाहर निकले तो उसके साथ कोई जरूर जाये। प्रयोग शुरू होने के तीसरे दिन 7 अप्रैल 1937 को मांट्रियल से एक व्यक्ति ने सूचना दी कि जो अपने को राजर्स बताता है, मांट्रियल के एक होटल में देखा गया है।

जाँच दल के सदस्य तुरन्त मांट्रियल पहुँचे। वहाँ उनकी भेंट राजर्स के हूबहू से हुई। वह व्यक्ति बोला मैं लुईस राजर्स हूँ। उसने वैज्ञानिकों को अपने ऊपर किये जाने वाले प्रयोग की गोपनीय बातों का ब्यौरा बताया। अब तो जाँच दल तो दुविधा में पड़ गये। उन्होंने तुरन्त फोन कर डॉ. स्पेन्सर को बताया, वे सकते में आ गये और लगभग चीखते हुए बोले नहीं, ऐसा किसी तरह नहीं हो सकता। मैं इस समय यहाँ राजर्स के साथ दोपहर का खाना खा रहा हूँ।

वह राजर्स के दो स्थानों पर एक ही व्यक्तित्व के अस्तित्व का बेहद सनसनीखेज प्रमाण था। लेकिन इतना होने पर भी डॉ. स्पेन्सर को विश्वास नहीं हुआ कि वह सचमुच दो व्यक्तियों का स्वामी हैं अभी उन्हें विश्वास था कि वह जालसाजी से काम ले रहा है।

लोगों की उलटी सीधी बातें व डॉ. स्पेन्सर एवं उनके साथी वैज्ञानिक के तरह-तरह के तर्कों से तंग आकर राजर्स ने कहा - मैं अब इन सब से काफी थक गया हूँ। थोड़ा धीरज रखो।

12 अप्रैल को यह हमेशा के लिए सिद्ध कर दूँगा कि मेरे अन्दर असाधारण शक्ति है। तब शायद आप विश्वास कर सकेंगे, अब मुझे अपनी एकान्त साधना के लिए छोड़ दें।

डॉ. स्पेन्सर इस महत्वपूर्ण परीक्षण के लिए सहमत हो गये। 12 अप्रैल 1937 को लुईस राजर्स को डॉ स्पेन्सर की प्रयोगशाला में ले जाया गया। उसे और डॉ. स्पेन्सर को प्रयोगशाला के अन्दर बैठाकर बाहर का ताला बन्द कर दिया गया। जाँच दल के अन्य तीन सदस्य बाहर इन्तजार करने लगे। अन्दर लुईस ने डॉ. स्पेन्सर से कहा - आपके दिमाग में जो भी पहली चीज आती है वह बोल दें। डॉ. स्पेन्सर ने कहा गुलाब।

बस अब ठीक है राजर्स ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा। राजर्स को अपनी प्रयोगशाला में छोड़ कर डॉ. स्पेन्सर अपने साथियों के पास बाहर आ गये। वे लोग लगभग एक घण्टे बैठे रहे। इतने में उनके पास रखे फोन की घण्टी बज उठी। फोन टोरोण्टो रिसर्च इन्स्टीट्यूट के एक खास प्रतिनिधि का था उसने फोन पर सूजना दी कि उसने अभी लुईस राजर्स को शहर में घूमते देखा है। प्रतिनिधि की यह बात सुनकर सुविख्यात मनोविज्ञानी डॉ. स्पेन्सर और उनके साथी दंग रह गये, क्योंकि वे खिड़कियों से लुईस को साफ-साफ बैठा देख रहे थे। जब यह हमारे सामने बैठा है और कमरे के दरवाजे चारों तरफ से बन्द हैं व हर दरवाजे पर मजबूत ताले लगे हैं, तो फिर वह शहर में कैसे बोल रहा है ? यहाँ पर बैठे वैज्ञानिकों के दल में एक स्तब्धता छा गयी।

मनोवैज्ञानिक डॉ. स्पेन्सर अपने सोच-विचार में उलझे थे तभी फिर से फोन की घंटी बजी। उन्होंने झपटकर फोन उठाया। उधर से राजर्स की स्पष्ट आवाज सुनाई दी, डॉ. स्पेन्सर मैं लुईस राजर्स बोल रहा हूँ। हमारा सांकेतिक शब्द गुलाब है जिसे मेरे और आपके सिवा कोई नहीं जानता। यह सुनकर डॉ. स्पेन्सर के आश्चर्य के की सीमा न रही। विचित्र तथ्य यह था कि वे राजर्स के मुस्कुराते हुए चेहरे को दरवाजे के शीशे से साफ-साफ देख रहे थे। प्रयोगशाला से फोन उन्होंने जान-बूझ कर हटा दिया था। इसका मतलब यह था कि जरूर राजर्स का दूसरा रूप उन्हें फोन कर रहा था।

इस घटना ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया और काफी सोच विचार के बाद अन्ततः वे लुईस राजर्स के चमत्कारिक व्यक्तित्व के कायल हो गये। उन्होंने उसके दो रूपों को स्वीकार कर लिया। जब उन्होंने स्वयं राजर्स से उसके रहस्य के बारे में पूछा, तो वह हँसते हुए कहने लगा - मित्र मार्टिन, आपका मनोविज्ञान, मन के बारे में जितना जानता है, यथार्थ में इनसानी मन उससे हजारों लाखों गुना व्यापक है। इसकी सामर्थ्य और रहस्यों की भी कोई सीमा नहीं। यदि कोई लगातार के साधनात्मक प्रयासों से अपने मन सहित समूची चेतना को नियंत्रित कर सके, तो वह स्वयं कई रूप प्रकट कर सकता है।

लेकिन सूक्ष्म चेतनाओं का स्थूल प्रकटीकरण ? मनोवैज्ञानिक डॉ. स्पेन्सर ने अपनी शंका व्यक्त की।

वह कोई विशेष बात नहीं। समर्थ सूक्ष्म चेतना अपनी संकल्पशक्ति से वातावरण में व्याप्त अणु-परमाणुओं से अपने स्थूल शरीर का निर्माण कर लेती है जिसका स्थायित्व व्यक्ति की सूक्ष्म चेतना की संकल्पशक्ति के अनुरूप ही होता है। लुईस राजर्स के इस कथन की मनोवैज्ञानिक मार्टिन आश्चर्य से सुन रहे थे। राजर्स कह रहा था, हमारी सामर्थ्य तो अभी उतनी ही है, हाँ भारत के प्रधान योगी लोग स्वयं को 5-10 या उससे भी अधिक रूपों में प्रकट करने की क्षमता रखते हैं।

डॉ. स्पेन्सर को अनुभव हो रहा था कि मानव कितना रहस्यमय है। वास्तविक विज्ञान तो वही है जो इन रहस्यों को प्रकट करने में समर्थ हो। इस घटना के लगभग 5 वर्ष बाद लुईस का जीवन समाप्त हो गया लेकिन मनुष्यों को यह संदेश देने के बाद कि तुम स्वयं रहस्यों, आश्चर्यों, विभूतियों के भण्डार हो, साधनात्मक प्रयासों से इन्हें प्रकट करो। ईश्वर के राजकुमार होने की सार्थक अनुभूति करो।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118