चलता-फिरता बिजलीघर है मनुष्य

March 1997

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ऊर्जा के अनगिनत रूप है। लेकिन जिस ऊर्जा-शक्ति से हम सबसे अधिक परिचित प्रभावित हैं, वह है बिजली यानि कि विद्युत-शक्ति । हमारी अपनी शारीरिक प्रक्रियाएँ जिस भी एक प्रकार की विशिष्ट विद्युत ही है । विज्ञानवेत्ताओं ने शरीर में व्याप्त इस ऊर्जा को जैव-विद्युत या बायोइलेक्ट्रिसिटी नाम दिया है । शरीर संचार की समस्त गतिविधियाँ व मस्तिष्कीय प्रक्रियाएँ शरीर में प्रवाहित होने वाली इसी विद्युत-शक्ति द्वारा ही नियंत्रित होती हैं । ,

मानव शरीर के आन्तरिक भागों में विद्युत के खजाने छुपे है । जब शरीर की माँसपेशियाँ फैलती एवं सिकुड़ती है तो यह बिजली पैदा होती है । न्यूरोलॉजिस्ट के अनुसार मस्तिष्क से असंख्य तंत्रिका कोशिकाएँ (न्यूरॉन्स) निकलकर सारे शरीर में फैले होते हैं । प्रत्येक न्यूरॉन अपने आप में एक छोटा सा डायनेमो है । यही न्यूरॉन्स शरीर में जैवविद्युत के मुख्य उत्पादक हैं । न्यूरॉन्स का केन्द्र मस्तिष्क अकेले वॉट शक्ति की विद्युत उत्पन्न कर सकता है ।

वैज्ञानिक अब यह पूरी तरह से मानने लगे है कि मानव शरीर एक जीता जागता उच्च स्तरीय बिजलीघर है जिससे कम या अधिक मात्रा में हमेशा विद्युत तरंगों का निष्कासन होता रहता है । वैसे तो प्रत्येक जीवधारी अपने स्तर के अनुरूप कम या अधिक वोल्टेज की बिजली पैदा करता है । पर मनुष्य में यह प्रक्रिया अपेक्षाकृत कछु अधिक ही विकसित है । तंत्रिका विशेषज्ञों के अनुसार पुरुषों की तुलना में महिलाओं में इस विद्युत की मात्रा ज्यादा पायी गयी है।

परामनोवैज्ञानिकों का कहना है कि सामान्य व्यक्ति से निकलने वाली विद्युत तरंगें उसके शरीर से छह इंच बाहर तक फैली रहती हैं किन्हीं-किन्हीं व्यक्तियों में तो ये तरंगें उनके शरीर से तीन फट दूर तक भी रहती है । परामनोवैज्ञानिक इसे मानवी तेजोवलय की संज्ञा देते हैं ।मानवीय तेजोवलय शरीर में एकत्रित जैव-विद्युत की विशिष्ट मात्रा का सपरिचायक है ।

वैज्ञानिकों की मान्यता है कि व्यक्ति जिस स्थान पर रहता है उसके शरीर से निष्कासित प्राण-विद्युत का अदृश्य कम्पन उस वातावरण में स्थित जड़ पदार्थों के परमाणुओं में तीव्र प्रकम्पन पैदा कर देता है। ये कम्पन उस वातावरण के सभी प्राणियों को प्रभावित व आकर्षित करते हैं। स्वाभाविक है जिनमें जैव-विद्युत की मात्रा अधिक होगी उनका आकर्षण प्रभाव भी व्यापक होगा। सामान्य क्रम में तंत्रिका कोशिकाएँ एक निश्चित मात्रा में ही जैव विद्युत का उत्पादन कर पाती है। लेकिन ध्यान के द्वारा मन-मस्तिष्क को इस शान्त एवं प्रसन्नावस्था में लाकर जैव-विद्युत की इस उत्पादन मात्रा को कई गुना बढ़ाया जा सकता है । प्राणायाम के प्रयोगों से भी वातावरण में संतप्त प्राणशक्ति काफी ज्यादा मात्रा में बटोरी जा सकती है जो अपने जीवन में इन प्रयोगों में निरत है, उनमें जैव-विद्युत का भारी परिमाण होना सहज है। इसी भारी परिमाण के अनुरूप ही उनका आकर्षण प्रभाव भी व्यापक होता है। प्राचीन काल से ऋषि-तपस्वियों के सान्निध्य में दुःखी-पीड़ित मन के एकाएक उत्साह से भर जाने के पीछे यही वैज्ञानिक आधार है । 'चम्पकलाल की वाणी' नामक पुस्तक में श्री अरविन्द के प्रिय शिष्य एवं अनन्य साधक चम्पकलाल बताते हैं कि वे अपनी किशोरावस्था में एक बार गाँव के पास एक पेड़ के नीचे जा बैठे, वहाँ बैठते ही उनका मन गम्भीर ध्यान में डूब गया । इस पर उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ । आस-पास के लोगों से पूछने पर पता चला कि वहाँ एक साधु ने वर्षों तक अपनी तप-साधना सम्पन्न की थी । अलीपुर जेल में जहाँ श्री अरविन्द स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय में कैद किए गए थे, उनके छूट जाने के बाद जब भी वहाँ किसी को ले जाया जाता तो उसका मन किन्हीं विशेष विद्युत तरंगों से झनझना उठता । आखिर हार-थक कर जेल अधिकारियों ने वहाँ किसी को ले जाना बन्द कर दिया और उस कोठरी में ताला लगा दिया । हालाँकि बाद में उस स्थान को स्मारक में तब्दील कर दिया गया ।

कभी-कभार ऐसी घटनाएँ प्राकृतिक संयोग से भी हुई हैं, जिनमें व्यक्तियों को चलते-फिरते बिजलीघर के रूप में देखा गया है। डॉ. डिन्वल लिखते हैं, एक सीमित मात्रा में जैव-विद्युत प्रत्येक प्राणी के शरीर में होती है और तंत्रिका-संस्थान के माध्यम से समस्त शरीर में बहती रहती है । इसकी स्वाभाविक मात्रा में कमी आने पर व्यक्ति दुर्बल, निस्तेज व अवसादग्रस्त रहने लगता है । इसकी मात्रा असाधारण रूप से बढ़ने और अनियन्त्रित हो जाने पर व्यक्ति क्रोधी, चिड़चिड़ा, आक्रामक एवं अस्थिर प्रकृति का हो जाता है। सामान्य डॉक्टरी जाँच-पड़ताल में इसे कोई बीमारी न मानकर व्यक्तिगत स्वभाव मान लिया जाता है । लेकिन वास्तव में ऐसा शरीर में जैव-विद्युत की मात्रा के घटने-बढ़ने के कारण होता है।

इस जैव-विद्युत के प्रवाह में यदा कदा कुछ ऐसी गड़बड़ी आ जाती है कि यह बिजली उसे और उसके साथियों के लिए बड़ी हैरानी-परेशानी का कारण बन जाती है । इस तरह की एक घटना अमेरिकन लड़की लूलू हर्स्ट की है। 14 साल की इस बालिका में अचानक ही जैव-विद्युत का लीकेज होने लगने से स्वयं और उसके परिवार के सदस्य परेशान हो गए यह लड़की जिसको भी छू लेती, उसे बिजली का तीव्र झटका लगता । धातु से बनी वस्तुएँ उसके छूने से हिलने-डुलने लगतीं । इस विचित्र घटना की चर्चा चारों ओर फैल गयी और अन्त में यह मामला शरीर-क्रिया वैज्ञानिकों के सामने आया । अनेक प्रयोग-परीक्षणों के बाद पता चला कि लूलू के शरीर से काफी ज्यादा मात्रा में विद्युत तरंगों निकल रही हैं । तकरीबन दो सालों तक उसमें ये विचित्र लक्षण बने रहे । बाद में वह सामान्य जीवन जीने लगी ।

शरीर में विद्युत उत्पादन की ऐसी ही दूसरी घटना जनवरी 1946 में फ्राँस के लावेर शहर में घटित हुई । एगलिन कोटिन नाम की इस लड़की के शरीर से अकस्मात् बिजली का असाधारण प्रवाह फूटने लगा । छूने पर झटका लगना, वस्तुओं का गिर पड़ना आदि बातें लोगों की जिज्ञासा का कारण बन गयीं । काफी समय तक यह अचरज लोगों की चर्चा का विषय बना रहा । बाद में अपने ही आप विद्युत प्रवाह नियंत्रित हो जाने से एगलिन कोटिन सामान्य जीवन बिताने लगी।

यूक्रेन का शषा नामक किशोर छात्र जिस कसी वस्तु को छू देता है, वह जलने लगती है । इस विलक्षण क्षमता की वजह से उसके घर की प्रायः सारी वस्तुएँ जल चुकी हैं । अनायास ही प्राप्त इस विचित्र क्षमता के कारण उसे सामान्य जीवन जीने में गम्भीर संकट का सामना करना पड़ रहा है । शषा की इस अद्भुत क्षमता का अध्ययन वहाँ के चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. ब्लादीमिर कोर चिन्कोव ने किया तो पता चला कि शषा का पूरा शरीर जनरेटर या डायनेमो की भाँति प्रचण्ड विद्युत आवेश से भरा हुआ हुआ है । जब इस विद्युत ऊर्जा में उफान आता है तो सम्पर्क में आने वाली चीजों में आग लग जाती है। इटली के एक पर्यटन केन्द्र फार्मिया में रहने वाला बेने दत्तों सुपीनो नामक 18 वर्षीय बालक अपनी इसी विद्युतीय क्षमता के कारण इन दिनों में चर्चा का विषय बना हुआ है । उसके हम उम्र बच्चे उसके सामने आने से डरते हैं । क्योंकि सुपीनों जिस किसी चीज को ध्यान से देखता है, उसमें आग लग जाती हैं इस तरह की घटनाओं की शुरुआत उस समय हुई, जब एक दिन सुपीनों के दाँत में दर्द हुआ वह क्लीनिक में भीड़ की वजह से प्रतीक्षा में बेंच पर बैठकर कॉमिक पढ़ने लगा। देखते-देखते किताब जलने लगी । डॉक्टर समेत वहाँ मौजूद लोग आश्चर्य से उसे देखते रह गए । सुपीनों ने डाक्टर से कहा कि कॉमिक में आग कैसे लग गई, उसे कुछ मालूम नहीं ।

फिर एक रात ऐसी ही रहस्यमय घटना घटी। वह अपने बिस्तर की चादर ठीक कर रहा था । जैसे ही उसने चादर पर अपनी नजरें टिकायीं वैसे ही चादर में आग लग गयी । इसी तरह एक दिन सुपीनो अपने पिता के साथ कारखाने गया । कारखाने में उसके दाखिल होते ही मशीनों ने काम करना बन्द कर दिया । उनकी मरम्मत में लगभग 3,000 ---------------चिकित्सकों, मनोवैज्ञानिकों से परामर्श करने पर उन्होंने जैव-विद्युत के प्रचण्ड विद्युत चुम्बकीय आवेश की बात बताई । पर निदान ढूँढ़ने में वे अभी तक असफल हैं।

इसी प्रकार मेनचेस्टर की महिला पालिन शा का शरीर चलते-फिरते इलेक्ट्रिक पावर हाउस की तरह है । जिस वस्तु को वह स्पर्श कर देती है, धमाके की आवाज के साथ शॉर्टसर्किट की तरह उसमें आग लग जाती है । जिस व्यक्ति से भी उसका स्पर्श हो जाता है, वह तीव्र झटका खाकर गिर पड़ता है। पालिन शा की जाँच करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि उसके शरीर में 2000 वोल्ट की विद्युत शक्ति पैदा होती है, जो कि एक अजूबा ही कही जा सकती है । पालिन शा को अपने बायें पैर में हमेशा एक अर्थ वायर बाँधे रहना पड़ता है, ताकि उसके शरीर की अतिरिक्त विद्युत तरंगें जमीन में चली जाएँ।

बिजली सिर्फ शरीर के अन्दर ही नहीं बनती, वातावरण से भी हमारा शरीर लगातार विद्युत ग्रहण करता रहता है । वातावरण की यह विद्युत दो प्रकार के आयन से बनी होती है । ये आयन धनात्मक तथा ऋणात्मक होते हैं । यह विद्युत रक्त के माध्यम से शरीर के विभिन्न हिस्सों तक पहुँचकर उनके क्रियाकलापों का नियंत्रण करते हैं । वैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों से यह साबित कर दिया है कि वातावरण की विद्युत के आयन मनुष्य व अन्य जीवधारियों के स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं । विद्युत के आयनों की अधिकता भी सजीव जगत पर बुरा असर डालती है । इनकी अधिकता अवसाद, चिन्ता, तनाव, सिरदर्द, उदासी पैदा करती है । एक तथ्य यह भी है कि शरीर में वातावरण से आती यह विद्युत यदि लगातार इकट्ठी होती रहे तो एक सीमा के बाद यह शरीर को जला डालेगी, लेकिन ऐसा नहीं होता । शरीर की कोशिकाओं, ऊतकों से होती हुई यह विद्युत पृथ्वी में धीरे-धीरे समाती रहती है ।

आधुनिक चिकित्सा पद्धति में जैव-विद्युत चमत्कारी प्रमाणित हुई है । प्रयोगों से प्राप्त निष्कर्ष साबित करते हैं कि शरीर में व्याप्त जीव-विद्युत नष्ट अथवा क्षतिग्रस्त अंगों को दुबारा विकसित या पैदा करने की क्षमता रखती हैं छिपकली, हाइड्राॅ, स्टार फिश जैसे जन्तुओं में यह क्षमता पायी जाती है । लेकिन विज्ञान वेत्ताओं का अनुमान है कि विकास की एक अवस्था में मनुष्यों में भी टूटे या नष्ट हुए अंग दुबारा विकसित हो जाते थे।

डॉ. बेसेसंट ने औषधि एवं यन्त्रों के सहयोग से शरीर में पुनर्निर्माण की क्षमता पैदा करने की सफल कोशिश की हैं एक प्रयोग के दौरान उन्होंने टूटी हड्डी के सिरे को विद्युत धारा के सूक्ष्म प्रवाह से जोड़ दिया, तो अप्रत्याशित रूप से हड्डी जुड़ने लगी । एक अन्य प्रयोग में उन्होंने एक सफेद चूहे का पूरा पैर काट दिया तथा टूटे स्थान को एक इलेक्ट्रिक कॉयल से जोड़ दिया । उन्हें आश्चर्य तो तब हुआ जब टूटा हुआ पैर दुबारा उगने लगा और वह कोहनी तक उग आया । डॉ. बेसेसंट के इन प्रयोगों ने यह सिद्ध कर दिया कि शरीर की कोशिकाएँ कृत्रिम उपकरणों से उत्पन्न विद्युत को भी उतनी ही सहजता से ग्रहण कर सकती हैं और नया अंग पैदा करने की क्षमता रखती हैं । साथ ही विशेषज्ञों का अनुमान है कि भविष्य में मनुष्य में भी नष्ट या क्षतिग्रस्त हाथ, पाँव एवं दूसरे अंग भी दुबारा विकसित किए जा सकेंगे ।

अब तो ऐसे उपकरण भी बना लिए गये हैं, जो शरीर में फैली विद्युत-शक्ति व उसके उत्सर्जन का पता लगा सकते हैं । किर्लियन फोटोग्राफी व आर्गन एनर्जी मापन इस संदर्भ में महत्वपूर्ण उपकरण साबित हुए हैं । फिलहाल तो वैज्ञानिक इस ऊर्जा के चमत्कारों से चमत्कृत हैं । साथ ही वे ध्यान व प्राणायाम की वैज्ञानिकता का इस संदर्भ में पता लगाने में सक्रिय हैं क्योंकि उनका मानना है कि इन्हीं प्रयोगों से मनुष्य अपनी जैव-विद्युत का उचित उत्पादन एवं नियंत्रण कर सकता है । ये ही प्रक्रियाएँ उसे जैव-विद्युत के उपयोग की सही दिशा दे सकती हैं । वैज्ञानिक समुदाय का मत है कि यदि मानवी-काया में विद्यमान इस शक्ति के बारे में विस्तार से जाना जा सके तो रहस्यों की पिटारी इनसानी काया के अनेक अज्ञात रहस्यों को जानने में सफलता मिल सकती है।


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