परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी

March 1997

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( गायत्री तपोभूमि में अक्टूबर 1968 के साधना शिविर में दिया गया व्याख्यान )

गायत्री महामंत्र हमारे साथ साथ-

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

देवियों भाइयों,

यहाँ गायत्री तपोभूमि में गायत्री माता का मंदिर है। यहाँ गायत्री मंत्र की साधना होती है। मंत्र बड़े सार्थक और सामर्थ्यवान है। इसके द्वारा बड़े बड़े काम हो सकते हैं। साधारण मंत्र जो सपेरा जानता है, साँपों के जहर को मंत्र पढ़कर उतार देता है। भौतिक जगत में मंत्रों का बड़ा महत्व है। आज मंत्रों के द्वारा भारतवर्ष के अंतर्गत बड़े-बड़े कारखाने चलते हैं। यंत्रों का भी एक इतिहास है। इसकी शक्ति भी पैटर्न टैंक की तरह होती है। हमारे पूर्वज इस महत्व को जानते थे। इस कारण उन्होंने मंत्रों का उपयोग किया था तथा उसकी जानकारी लोगों को दी थी। मंत्रों का भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों तरह का महत्व है।

इस संबंध में राक्षसों और देवताओं दोनों में विवाद था। राक्षस यंत्र को बड़ा मानते थे अर्थात् उनकी दृष्टि में भौतिकता का अधिक महत्व था। देवता कहते थे कि मंत्र बड़ा है अर्थात् अध्यात्म बड़ा है। मंत्र मनुष्य को विचार देता है। मंत्र विद्या का वैज्ञानिक महत्व है। जीभ से भी शब्द निकलते हैं, उनका उच्चारण कंठ, तालु, ओष्ठ, दाँतों यानि मुख के विभिन्न अंगों द्वारा होता है। इस उच्चारण काल में मुख के जिन अंगों से ध्वनि निकलती है, उन अंगों से नाड़ी तन्तु शरीर के विभिन्न भागों तक फैलते हैं। वास्तव में मंत्र की दो दिशाएँ हैं - (1) यंत्र (2)मंत्र। इस दुनिया में जो चीजें वस्तु के द्वारा बनी हैं, वह नाशवान् हैं। हम लोग सभी यंत्र है। हमारे खान पान का ढंग एक यंत्र की प्रक्रिया है। वास्तव में हलचल पर दुनिया टिकी है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि हलचल से दुनिया बनी है।

इस धरती पर हर चीज प्रायः नाशवान् है। हम बच्चों के रूप में पृथ्वी पर आते हैं। वह बच्चा 15-18 साल तक नवयुवक की स्थिति में होता है तो अच्छा लगता और जब वही बच्चा 55-60 वें वर्ष में पहुँच जाता है तो वह सुन्दर नहीं लगता। वास्तव में यह चीज टिकाऊ नहीं है। जब तक आपका शरीर युवा है तक तक आपकी पत्नी आपको देवी अप्सरा मालूम पड़ती है । परन्तु जब आप बड़े हो जाते हैं तो यह पत्नी एक नौकरानी मात्र रह जाती है।

मनुष्य सोचता है कि हमारे पास पैसा होगा तो सुख शाँति मिलेगी, परन्तु ऐसा नहीं होता जब उसके पास पैसा आ जाता है तो चोर, डाकुओं का डर बना रहता है। मनुष्य जब बी.ए.एम.ए. पास कर लेता है तो उसे बड़ी नौकरी का ख्वाब रहता है। हमारा सुख केवल कल्पना के सागर में डूबा रहता है। जो शेखचिल्लियों की तरह कभी पूरा नहीं होता है। अगर हम देखें तो पायेंगे कि मनुष्य समस्या लेकर पैदा होता है और समस्या में जिन्दगी भर लगा रहता है तथा अंत में वह समस्या को लिये दुनिया से चला जाता है। मनुष्य कल्पनाओं के सागर में डूबा रहता है। यह यंत्र जो मनुष्य शरीर है, उसको थोड़ी सी शाँति मिलती है। अगर मनुष्य को शाँति मिलेगी तो मंत्र से मिलेगी अर्थात् अध्यात्म की ओर मुड़ने से मिलेगी।

मंत्र, जप करने की प्रवृत्ति को नहीं कहते हैं वरन् वह विचार की प्रवृत्ति है। मनुष्य इन मंत्रों को अपनाकर अपने दुखों को सुखों में बदल सकता है। मनुष्य अपनी दिशाधारा को बदल सकता है। अधिकाँश दुख मनुष्यों के मंत्रों की कमजोरी के कारण होता है और उसका जीवन कष्टों से घिर जाता है। मंत्र कहते ही दुखों को दूर करता है। इससे भौतिक आवश्यकता भी पूरी होती है। एक व्यक्ति को साँप काटता है, एक तांत्रिक सपेरा आता है और वह कुछ मंत्र पढ़ता है। साँप आकर विष वापस ले लेता है और वह आदमी स्वस्थ सानन्द हो जाता है। यह मंत्र का भौतिक प्रयोग कहा जा सकता है।

मंत्रों का सागर इससे कही अधिक अध्यात्म के लाभों के बारे में हमें इंगित करता है। अध्यात्म क्षेत्र बड़ा विशाल है। इस क्षेत्र के अंतर्गत गायत्री मंत्र की महत्ता सर्वोपरि है, जो मनुष्य के बुद्धि के स्रोत को खोल देता है। मंत्र की आराधना प्रारम्भ करने के बाद मनुष्य को महानता की ओर अग्रसर करते हुए उसे देवता बना देता है। गायत्री मंत्र के एक अक्षर में अनेक प्रकार के ज्ञान विज्ञान का तत्व भरा पड़ा है इसमें रहस्यमय तत्व छिपे पड़े हैं। इसका ही वेद उपनिषद्, दर्शन, स्मृतियों, रामायण आदि ग्रंथों में विवेचन है।

गायत्री को वेदमाता कहा गया है। चारों वेद गायत्री के पुत्र है शास्त्रों में कहा गया है कि ब्रह्माजी ने अपने एक एक मुख से गायत्री के एक एक चरण की व्याख्याएँ की है। इस प्रकार चार मुखों से चार वेदों का वर्णन किया गया है -

ॐ भूर्भुवः स्वः ऋग्वेद तत्सवितुर्वरेण्यं यजुर्वेद भर्गो देवस्य धीमहि सामवेद धियो यो नः प्रचोदयात् अथर्ववेद

बाद में उन वेदों के द्वारा दर्शन, आरण्यक, उपनिषद्, पुराण आदि का निर्माण हुआ। जिस प्रकार मनुष्य के एक बूँद भ्रूण-कलल में मनुष्य का पूरा पूरा स्वरूप होता है, उसी प्रकार गायत्री मंत्र के चौबीस अक्षरों में समस्त संसार का ज्ञान विज्ञान भरा पड़ा है। इसमें सोना बनाने का भी विधान भरा पड़ा है।

गायत्री मंत्र की उपासना सर्वश्रेष्ठ है। इसमें बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करने के लिए प्रार्थना है। मनुष्य की सद्बुद्धि आ जाये तो उसे भौतिक एवं अध्यात्मिक दोनों लाभ प्राप्त होता है। उपासना का अर्थ होता है पास बैठना। अगर बछड़ा गाय के पास न बैठे तो उसे दूध कहाँ से मिलेगा? माँ की छाती से बच्चा न लिपटे तो उसे दूध कहाँ से मिलेगा? पारस को छुए बिना सोना लोहा कैसे बनेगा? उसी प्रकार ईश्वर के समीप गये बिना आत्मा की भूख कैसे मिटेगी यह उपासना की पद्धति है जो मनुष्य को तृप्त करती है। जिस प्रकार मनुष्य के शरीर में प्राण का महत्व है, उसी प्रकार आत्मा में तो ईश्वर है। परमात्मा से रहित आत्मा शरीर का आवरण ओढ़े पशु के समान है।

परमात्मा के नजदीक जब साधक पहुँच जाता है तो अपनी वेदनाओं को भक्तिभाव को उसके सामने रखता है उस समय भगवान भक्त की जो आवश्यक मनोकामनाएँ हैं उन्हें पूरा कर देता है। उनकी तृष्णा, वासना अहंता को समाप्त कर देता है। साधक को भौतिक लाभों के अंतर्गत चिरस्थायी संतोष, मनोविकारों का शमन, संकटों का निवारण, सुखी गृहस्थ जीवन, हँसता-हँसाता जीवन, लोकसम्मान जैसा लाभ प्राप्त होता है। इसके साथ उसके परिष्कृत स्वभाव, दैवी अनुग्रह, सेवा की भावना जैसे आध्यात्मिक लाभ साधक को मिलने लगते हैं, जिससे वह नर नारायण बन जाता है।

हमारे पास तपोभूमि में नित्य एक न एक लोग आते रहते हैं, जिनकी समस्यायें होती है। हमने गायत्री उपासना के माध्यम से उन्हें राहत पहुँचाने का कार्य किया है। एक म.प्र. की प्रधानाध्यापिका आती थीं। उन्हें नींद नहीं आती थी और हमेशा रोती रहती थीं। हमने उन्हें ठीक किया, अब उनको नींद आती है। एक बार हमारे पास एक सेठ जी आये, उनका इनकम टैक्स का घोटाला था। वे परेशान थे उनके पास कुल पूँजी 32 लाख रुपये थी। इनकम टैक्स का 10 लाख रुपये देना था। वे परेशान थे हमारे कहने पर उन्हें शाँति मिली। हमने कहा आपके 10 लाख चले जायेंगे तो भी आपके पास 22 बचेंगे। आप परेशान क्यों हैं? फिलहाल तो जायेगा नहीं, अगर चला भी जायेगा तो भी तेरी कमी पूरी हो जायगी। हमने उसे गायत्री मंत्र के जप के लिए कहा आगे उसकी बुद्धि में बदलाव आ गया।

बेटे, इस मंत्र शक्ति महान है। पहले जमाने के संत महात्माओं के पास गायत्री मंत्र का बल होता था, इसके कारण वे हर जगह विजयी होते थे। एक बार सिकन्दर हिमालय की ओर गया और एक महात्मा से कुछ माँगने को कहा। उसने कहा - आप शक्तिशाली हो तो धूप निकाल दो। सिकन्दर चुप खड़ा हो गया। अच्छा, तो तेरे में इतनी शक्ति नहीं तो दूर हट जा और पूरब दिशा से हमें धूप लेने दे। बेटे, यह साहस एवं आत्म बल गायत्री मंत्र का था जिसके बल पर उस महात्मा ने विश्व विजयी सिकन्दर को परास्त किया था।

गायत्री महामंत्र एक महान एवं महत्वपूर्ण मंत्र है। जब वह किसी के हृदय में प्रवेश कर जाता है तो अंतःकपाट खोल देता है और उसका कायाकल्प हो जाता है। आम्रपाली के अन्दर प्रवेश किया तो वह बुद्ध की महान शिष्या बना गयी। उसे अपना तन, मन, धन सब कुछ उनके चरणों में समर्पित कर दिया। एक बार वह बुद्ध के चरणों में गई तो उसने कहा कि प्रभु हम अशुद्ध है, आपकी शरण में आये हैं। क्या आप हमारा उद्धार कर सकेंगे। भगवान बुद्ध ने उसे कुछ मंत्र बताया और कहा कि आप इसका जप करें एवं अपने जीवन में इसे लायें। महिला जो अपने शरीर का व्यापार करती थी, उस दिन अपने जीवन को बदलने का प्रयत्न किया, वह महान बन गयी। बुद्ध की महान शिष्या बन गयी और “बुद्धं शरणं गच्छामि” “संघं शरणं गच्छामि” “धम्मं शरणं गच्छामि” का नारा लगाते हुए करोड़ों लोगों तक बुद्ध का संदेश पहुँचा दिया। बेटे, यह गायत्री मंत्र की शक्ति है, जिसके द्वारा विचारों में बदलाव आता है और उसे संतोष मिलता है।

वास्तव में गायत्री मंत्र भगवान की एक श्रेष्ठ प्रार्थना है जिसके अंतर्गत हम प्रार्थना करते हैं।

“हे तेजस्वी महात्मा ! हम आपके प्रकाश को अपने में ग्रहण करते हैं। आप हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर प्रेरित करें।”

ब्रह्माजी द्वारा दिये गये इस गायत्री मंत्र को जिस दिन से इस धरती पर विद्यमान लोगों ने अपने जीवन में अपनाया, उसे चैन, संतोष, प्रेम, नैतिकता एवं सहयोग मिलने लगा। आज भी इस मंत्र को ग्रहण करके कमजोर वर्ग के लोग भी महानता की ओर बढ़ रहे हैं। यह ठीक है कि इसका लाभ मिलने में कुछ समय लगता है। इस मंत्र के द्वारा हथेली पर पौधे उगाये जा सकते हैं। मनुष्य के कषाय-कल्मष जब धुल जाते हैं तथा उसकी पात्रता का विकास हो जाता है तो उसे लाभ मिलता है ऐसी अनेक कथाएँ आती हैं। गायत्री की साधना का चमत्कार अवर्णनीय है। एक समय अकबर ने महामंत्री मानसिंह को बुलाया और कहा कि हमारा प्रयाग का किला अठारह बार ढह गया है उसका कोई उपाय करो ताकि वह सुरक्षित रह सके। अकबर का आदेश पाकर मानसिंह निकले और गंगा तट पर भ्रमण करने लगे। उसने देखा इस वीरान स्थान पर एक महात्मा तप कर रहे है। वे उनके पास पहुँचे । इस समय वे ध्यानावस्था में थे। उन्होंने देखा कि अजगर उधर से आया और उन्हें निगलने का प्रयास करने लगा, परन्तु वह तपस्वी को निगल न सका। थोड़ी देर में तपस्वी का ध्यान टूटा और उसने अपने तपोबल से उस अजगर को अपने में मुक्त कर लिया। यह सब तमाशा देखने के बाद मानसिंह वहाँ पहुँचें। थोड़ी देर बाद महात्मा जी जिनका नाम देवमुरारी बाबा था, ने कुशल समाचार पूछा। उसने कहा मैं अकबर का महामंत्री मानसिंह हूँ और निकट समस्या के हल हेतु आपके के पास आया हूँ। उस महात्मा ने कहा कि आप निःसंकोच अपनी समस्या को बतलाये। हम उसके समाधान हेतु प्रयास करेंगे। मानसिंह ने बतलाया कि महात्मन् प्रयाग के किले का निर्माण महाराज ने 18 बार कराया पर पता नहीं की किस कारण से या देवी देवताओं के अभिशाप के कारण यह बन नहीं पा रहा है और बार-बार ढह जाता है। महात्मा जी थोड़ी देर मौन रहे और अपनी ध्यान अवस्था में चले गये। उसके बाद मानसिंह के हाथ पर कुछ रख दिया। उसने कहा इसे आप नींव में डाल देंगे ओर उसके बाद निर्माण करेंगे तो किले का कुछ नहीं होगा। उन्होंने वैसा ही किया और किला तैयार हो गया। वह वस्तु जो मानसिंह की हथेली पर महात्माजी ने रखी थी, वह तुलसी की मंजरी थी। देवमुरारी बाबा गायत्री के बहुत बड़े उपासक उस जमाने में रहे हैं तथा उनका चमत्कार सर्वविदित था। सभी लोग उनके पास आते थे और वे सिद्ध किये हुए मंजरी के गुच्छे सबको देते थे।

मंत्रों का सूक्ष्म प्रभाव बहुत ही महत्वपूर्ण है। उसमें गायत्री महामंत्र की महत्ता तो और भी विलक्षण है। इसके जप से उत्पन्न होने वाली शक्ति सारे वातावरण को कँपा देने में समर्थ है। इसी महाशक्ति का लाभ जिन्होंने प्राप्त कर लिया है, वे धन्य हो गये हैं। इस महान मंत्र में सद्बुद्धि ही वह तत्व है जिसके आधार पर व्यक्तित्व निखरता है तथा उभरता है। इस साधना के द्वारा लोग ऋषि, तपस्वी बन जाते हैं। उनके जीवन का कायाकल्प हो जाता है। इसीलिए हम आप लोगों को गायत्री तपोभूमि मथुरा बुलाते हैं जो गायत्री की एक सिद्ध पीठ है। जहाँ अखण्ड अग्नि एवं 400 तीर्थों के जल रज की स्थापना है। यहाँ हम गायत्री अनुष्ठान कराते हैं ताकि आपके पूर्वजन्म के संस्कार कम हों तथा इस जन्म में आप महानता की ओर बढ़ सकें। आपके अन्दर पूर्व जन्मों का काफी कषाय-कल्मष जमा है, जिसे हमें साफ करना है ताकि नये संस्कार आपके अन्दर भरे जा सकें। हम वहाँ पर बुलाकर आपका यज्ञोपवीत संस्कार कराते हैं। यज्ञोपवीत गायत्री की प्रतिमा है। इसके नौ धागे गायत्री मंत्र में नौ शब्दों के प्रतीक हैं। यज्ञोपवीत गायत्री की प्रतिमा है इसे ऋषियों ने रिसर्च करके बनाया है। अगर यह लोहे पत्थर का होता तो हम धारण नहीं कर पाते। इस धागे का वैज्ञानिक महत्व है। यह धागा हमारी आध्यात्मिक माँ के रूप में हमेशा हमारी छाती से लिपटा रहता है। यह हमारा मार्गदर्शन करता है।

आपको भी हमेशा गायत्री मंत्र का जप करना है तथा अपने इलाके, मोहल्ले, शहर के लोगों को प्रेरणा देकर उसके महत्व समझाकर इस मंत्र को जपने की प्रेरणा देना चाहिए। यह वह मंत्र है जिससे हमारी भौतिक तथा आध्यात्मिक समस्याओं का हल होता है।

तथा बड़ी-बड़ी समस्याओं का भी हल होता है। पुराणों में अनेक कथाएँ हमारे ऋषियों ने इस मंत्र के लाभ के बारे में लिखी हैं।

एक समय की बात है इस पृथ्वी पर अनावृष्टि के कारण बहुत बड़ा अकाल पड़ा। सारे सरोवर सूख गये, पशु पक्षी मरने लगे। लोग दाने-दाने के लिए मोहताज हो गये। अनेकों लोग भूखों मरने लगे। उस स्थिति में लोग त्राहि-त्राहि करने लगे। वे गौतम ऋषि के पास समाधान के लिए पहुँचे । उस समय गौतम ऋषि बहुत पहुँचे हुए गायत्री साधक थे। लोग उनके आश्रम में पहुँचे तथा चरणों में प्रणाम करते हुए अपनी समस्याओं को सुनाया। गौतम ऋषि ने उन्हें अपने आश्रम का पात्र दिया जो उन्हें गायत्री माता से प्राप्त हुआ था। उन्होंने कहा - आप इसे ले जाएँ इससे आपका समाधान हो जायेगा।

लेकिन आप लोग यह न समझें कि हम गायत्री तपोभूमि में आये हैं, आचार्य के पास रहकर हमने अनुष्ठान, जप, तप हवन कर लिया और हमें गायत्री की सिद्धि हो गयी और हम जो चाहेंगे वह हमें प्राप्त हो जायेगा। आपका यह सोचना व्यर्थ है। इसके लिए हमें आपकी पात्रता का विकास करना परम आवश्यक है। इसके बिना आध्यात्मिक जगत में इसका विकास नहीं हो सकता। जितने भी प्रचलित ऋषि हुए हैं उन्होंने गायत्री साधना द्वारा आत्मशोधन, आत्मपरिमार्जन किया है। योग तप के माध्यम से अपने को गलाया है बीज जब गलता है तभी पेड़ का रूप लेता है। हम यह बताना चाहते हैं कि आपके अन्दर अभी जितनी कमियाँ हैं इसे निकाले बिना आपको हम कुछ नहीं दे सकते हैं। इसके परिमार्जन एवं परिशोधन के लिए हम आपको गायत्री तपोभूमि समय-समय पर बुलाते रहते हैं। आप जानते हैं कि ऊसर भूमि में कोई बीज न तो उगता है और कोई उपज होती है। उसी प्रकार भावना रहित उपासना करना निरर्थक है, बेकार है। इसमें कोई भी फायदा नहीं हो सकता है। मनुष्य के अन्दर राग द्वेष, अहंकार, कटुता आदि भरा हुआ है, इसके रहते गायत्री मंत्र का लाभ नहीं मिल सकता। यह निकालने का कार्य गुरु करता है। गुरु यानि प्रकाश। अर्थात् प्रकाश की स्थापना होने पर अंधकार स्वयं भाग जाता है। आप जानते हैं कि विरजानन्द जी ने दयानन्द का, रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानन्द का, समर्थ रामदास ने छत्रपति शिवाजी का, हमारे गुरु ने हमार अंधकार दूर किया और आज गायत्री मंत्र का लाभ हमें कितना मिला यह आपके सामने है।

हम भी समर्थ हैं। हम भी आपका अंधकार समाप्त करना चाहते हैं, प्रकाश भरना चाहते हैं, आप अपने को खाली करें। यहाँ आये हैं तो आप यहाँ से कुछ लेकर जाएँगे। आज हम कुछ देकर आपको विदा कर रहे हैं। आप जायें और थोड़ा भगवान के लिया भी जीना सीखे। अपने पेट के लिए ही न जिये थोड़ा सामान्य स्तर से ऊपर उठकर भी कार्य करें। हमें आपके इस कार्य से प्रसन्नता होगी। आप विश्वास रखें कि आपने जो अपनी व्यक्तिगत समस्याओं के बारे में हमें बतलाया था उसका हमें पूरा-पूरा ध्यान है। हम उसे दूर करते रहेंगे। आप निश्चिन्त हो जाइये।

आज की बात समाप्त। ॐ शाँति।


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