शरीर से नहीं आत्मा से (kahani)

September 1993

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उद्यान में भ्रमण करते-करते सहसा राजा विक्रमादित्य महाकवि कालीदास से बोले आप कितने प्रतिभाशाली हैं, मेधावी हैं, पर भगवान ने आपका शरीर भी बुद्धि के अनुसार सुन्दर क्यों नहीं बनाया? कुशल कालिदास राजा की गर्वोक्ति समझ गये। उस समय तो वे कुछ न बोले। राजमहल में आकर उन्होंने दो पात्र मँगाये-एक मिट्टी का और एक सोने का। दोनों में जल भर दिया गया। कुछ देर बाद कालीदास ने विक्रमादित्य से पूछा- “राजन किस पात्र का जल अधिक शीतल है?” मिट्टी के पात्र का विक्रमादित्य ने उत्तर दिया। तब मुसकराते हुए कालिदास बोले-जिस प्रकार शीतलता पात्र के बाहरी आधार पर निर्भर नहीं है, उसी प्रकार प्रतिभा भी शरीर की आकृति पर निर्भर नहीं है। विद्वता और महानता का संबंध शरीर से नहीं आत्मा से है।

एक बार रेगिस्तान में मुसाफिरों का एक काफिला सफर कर रहा था। संयोग से रास्ते में लुटेरों के बहुत बड़े दल ये काफिले की मुठभेड़ हुई। सरदार के हुक्म से हरेक यात्री की तलाशी ली गई, जो मिला उसे छीन लिया गया। एक लड़के की तलाशी में सिवा फटे पुराने कपड़ों के कुछ मिला नहीं। तो सरदार ने पूछा-क्या तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है। “मेरे पास चालीस अशर्फियां हैं जो माँ द्वारा कपड़ों में सीदी गई हैं, ये मैं अपनी बहन के लिए ले जा रहा हूँ।” जब ये तुम्हें छिपानी न थीं तो फटे कपड़े में सिलवाने की क्या जरूरत थी? तो लड़के ने कहा- माँ ने इस वास्ते सीदी कि कोई छीन न ले और नसीहत भी दी कि बेटा, कभी झूठ न बोलना। मैंने अपनी माँ की आज्ञा का पालन किया।

लड़के की इस सच्चाई से लुटेरों का सरदार खुश हुआ और मुसाफिरों का लूटा माल वापस लौटा दिया। सभी लुटेरों को बदलकर सच्चा रास्ता बताने वाला यह बालक और कोई नहीं अपितु खलीफा अमीन था।


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