एक दिन एक राजा अपने मंत्री और नौकर के साथ शिकार खेलने के लिए गये। संयोगवश तीनों भटक गये। रास्ते में एक अंधा फकीर बैठा माला जप रहा था। नौकर फकीर के पास पहुँचा और बोला “अबे ओ अंधे इधर से कोई घुड़सवार तो नहीं गुजरा?” फकीर ने कहा मुझे नहीं मालूम। मंत्री जी फकीर को देखकर कहने लगे ओ फकीर इधर से कोई आदमी गया ? फकीर ने कहा जी हाँ अभी बादशाह का नौकर गया है। थोड़ी देर में राजा भटकता हुआ अंधे फकीर की झोपड़ी में पहुँचकर बोले सूरदासजी, कृपया यह बतायें कि इधर से कोई आदमी तो नहीं गुजरा? फकीर ने जवाब दिया अन्नदाता, पहले नौकर आया फिर आपका वजीर और अब आप खुद तशरीफ लाये हैं। तीनों मिले तो आश्चर्य कि अंधे आदमी ने विभिन्न व्यक्तियों को कैसे पहचान लिया ? तीनों फकीर के पास गये तो फकीर ने जवाब दिया।
“अन्नदाता! आदमी बातचीत से पहचाना जाता है। मैंने तीनों को बातों से पहचान लिया क्योंकि शब्द व्यक्तित्व को अभिव्यक्त करता है कि वह कितना भारी अथवा हल्का। अतः अपना व्यक्तित्व वजनदार बनाना चाहिये।”