कल्पना को साकार करने वाले दुस्साहसी वायुयान उन दिनों कल्पना लोक तक ही सीमित था, पर धुन के धनी और साहस के पुतले फाउलोइस में इसे कल्पना लोक से उतारकर मूर्तिमान कर दिया। इसमें उसे अपनी सारी पूँजी स्वाहा करनी पड़ी और न जाने कितनी रातें इस कल्पना को मूर्तिमान बनाने की उधेड़बुन में जागते हुए बितानी पड़ी।
पहला जहाज बड़ा बेतुका था। बाँस और डंडों का अंबार खड़ा था। 25 हार्स पावर का इंजन इतनी आवाज करता था कि सुनने वाले के कान बहरे हो चलें।
सेना के जनरल ने उसमें प्रगति की संभावना देखी और 150 डालर में उसे खरीद लिया, साथ ही कुछ पुरस्कार भी दिया। उड़ान भरने में उस साहसी मंडली के कुछ सदस्य मारे भी गये, पर भावी कल्पना ने उन्हें मृत्यु भी सस्ती अनुभव कराई।
टैक्सास प्राँत के एन्टीनियो की एक फैक्टरी ने सुधरे हुए पुर्जे बनाये और पहली उड़ान 50 फुट तक ऊँची उठ कर साढ़े सात मिनट में सम्पन्न हुई।
उस दुस्साहसिक प्रयास का ही प्रतिफल है वायुयान आज अंतरिक्ष के आर-पार जाने में सफल हो रहे हैं।