उडसन नाम का विमान चालक कोरिया युद्ध में था। उसका बमयान आज दिन में उड़ान ले रहा था। एक दो तीन उडसन को आदेश मिला और उसने बटन दबा दिया। यान के नीचे बद्धधे बम बंधन से छूट गये। नीचे से धुँआ और लपटों का अंबार उठ रहा था। आक्रमण सफल रहा। उसका यान लौटा तो उसे समाचार मिला कि शत्रु पीछे हट गया। उडसन की प्रशंसा हो रही थी। उसकी इच्छानुसार वही चौकी देखने की उडसन को स्वीकृति मिल गई। दारुण चीत्कारें, जलते माँस की दुर्गन्ध सैनिक स्त्रियों की रोती, चीखती, चिल्लाती आवाजें सुनकर उडसन के अंतःकरण में संवेदना की धारा फूट पड़ी। विक्षिप्त जैसी स्थिति हो गयी उडसन की। तीन महीने पश्चात् ही उसकी चेतना लौटी।
अब वह बदला हुआ था। युद्ध पिपासु पिशाचों के लिए उसके मन में घृणा के भाव थे। युद्धक विमान चालक अब विश्व शाँति का समर्थक बन गया। वे जारतीय विचारों के समर्थक बन गये। वे कहा करते थे भविष्य में भारत ही विश्व शाँति रूपी स्वप्न को साकार करेगा।
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