यहाँ कुछ भी असंभव नहीं

September 1993

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सृष्टि की संचालक सत्ता, सर्व समर्थ सत्ता है। उसके लिए राई का पहाड़ बना देना और पर्वत को राई में परिवर्तित कर देना कोई कठिन नहीं वह उतना ही सरल है, जितना साधारण रात-दिन का होना। यदि उससे तादात्म्य स्थापित किया जा सके, तो उससे जुड़ी अगणित पहेलियों में से पर्दा उठ सकता है, जो आये दिन मानवी बुद्धि को चकित और चमत्कृत करती रहती है।

घटना अमेरिका की है। एडविन रोबिन्सन एक ट्रक ड्राइवर था। वह प्रायः लम्बी दूरी की यात्रा करता, माल लाया और ले जाया करता था। जब उसकी आयु 53 वर्ष की हुई, तो एक दिन एक सड़क दुर्घटना में उसकी आंखें चली गई और वह अंधा हो गया। कान भी लगभग बहरे हो गये थे। विशेषज्ञों ने उसकी जाँच करने के उपरान्त एक स्वर से यही कहा कि अब रेबिन्सन इस दुनिया को नहीं देख सकेगा। कान के बारे में भी उनके ऐसे ही विचार थे। अतीन्द्रिय चिकित्सकों ने भी उसे असाध्य अंधों की भाँति छड़ी के सहारे चलता और श्रवण-यंत्र की सहायता से सुनता था। जिंदगी उसे भारभूत प्रतीत होने लगी थी, किन्तु फिर भी नियति का सुनिश्चित निर्धारण समझ कर वह उसे ज्यों-त्यों करके खींच रहा था। उसमें न पहले जैसा उत्साह रहा, न उमंग। जीवन नीरस और ऊबाऊ लगने लगा था। कई बार वह अपनी विकलाँगता से इतना खिन्न हो जाता कि जीवन त्यागने की बात सोचने लगता। ऐसे हर अवसर पर उसे एक ऐसी शक्ति का आभास होता, जो उसे आँतरिक संबल प्रदान करती जान पड़ती। वह पुनः नये जोश से जीवन आरंभ करता, किन्तु कुछ ही दिनों में फिर वही अवसाद घेर लेता। इसी आशा-निराशा के बीच वह जीता चला जा रहा था। नौ वर्ष इसी तरह गुजर गये।

सन 1980 की बरसात को एक दिन रोबिन्सन की मुर्गी का चूजा उसके फलमाउथ, मैन स्थित मकान के गैराज के नजदीक दाने चुग रहा था। रोबिन्सन को इसका पता नहीं था। अतः वह अपने प्रिय चूजे का पता लगाने के लिए निकल पड़ा। हर दिन की तरह आज भी उसके हाथ में एल्युमिनियम की छड़ी थी और कानों में श्रवण यंत्र लगा हुआ था। अभी वह थोड़ी ही दूर सामने के वृक्ष के निकट गया था कि दुर्भाग्य से फिर उसपर आघात किया। पेड़ पर अकस्मात बिजली गिर पड़ी और रोबिन्सन बेहोश हो गया। बीस मिनट पश्चात जब उसकी चेतना लौटी, तो वह आश्चर्यचकित हो रहा था। उसका अंधत्व गायब हो चुका था। अब वह अच्छी प्रकार देख सकता था। उसका श्रवण उपकरण जलकर पूरी तरह नष्ट हो चुका था, किन्तु इसके बिना भी सम्प्रति रोबिन्सन अच्छी तरह सुन सकता था।

उसका पूरी तरह परीक्षण करने के पश्चात मूर्धन्य नेत्र विशेषज्ञ डॉ अर्ल्बट मोल्टन का उद्गार था कि वह नहीं जानता कि इसकी व्याख्या कैसे की जाय, पर यह सत्य है कि रोबिन्सन अब अंधा नहीं रहा। वह सब कुछ देख सकता है। उनने इसे चमत्कार की संज्ञा देते हुए कहा कि ऐसे प्रकरण स्थूल बुद्धि की पहुँच से परे के विषय हैं, अस्तु इनकी वैज्ञानिक व्याख्या संभव नहीं। जो संभव है, वह इतना ही कि प्रकृति के विभिन्न रहस्यमय प्रसंगों में से एक इसे मान लिया जाय और यह दुराग्रह छोड़ दिया जाय कि वह किस भाँति संपन्न हुआ, क्योंकि सूक्ष्म का अनुसंधान करने और गहरी पैठ रखने वाली बुद्धि का विकास हुए

बिना ऐसी गुत्थियों का समाधान शक्य एवं सरल नहीं।

घटना के एक माह बाद एक और महत्वपूर्ण परिवर्तन परिलक्षित हुआ। रोबिन्सन जो कि विगत 35 वर्षों से गंजा था, उसके सिर पर घने बाल उग आये। चिकित्सकों के अनुसार उसका गंजापन आनुवंशिक था, अतः बिना किसी उपचार के इतने लम्बे अंतराल बाद उनका पुनः उग आना चमत्कारिक ही कहा जायेगा। एक अन्य आश्चर्यजनक बात घटना के दिन जो देखने में आयी, वह यह कि पेड़ और श्रवण यंत्र दोनों ही जलकर बरबाद हो गये, पर रोबिन्सन इससे सर्वथा अछूता बना रहा।

इन सब तथ्यों को देखने के उपराँत यही कहा जा सकता है कि उस “अघटन-घटना पटीयसी” के लिए असंभव को संभव कर दिखाना कठिन नहीं। मुश्किल तो मनुष्य के लिए हो सकती है, पर जिसने इतनी विलक्षण सृष्टि गढ़ी और खड़ी की है, भला उस सत्ता के लिए यह सब दुस्साहस क्यों कर होना चाहिए? हम यदि उससे सघन संपर्क कर सके, उसकी चेतना को स्वयं में अवतरित कर सके, तो न सिर्फ अपने अंतिम लक्ष्य की प्राप्ति कर सकेंगे, वरन् उन गुत्थियों को सुलझाने में भी समर्थ हो सकेंगे, जो अनसुलझी बनी हुई है व परिष्कृत चेतना की माँग करती है।


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