“हजरत उमर उस नगर में जा रहे थे जहाँ उनकी विजय के उपलक्ष में स्वागत समारोह का आयोजन किया गया था।
रास्ता लंबा था। रात का सफर। सवारी के लिए ऊँट। कई साथी। तय किया गया कि बारी-बारी एक आदमी ऊँट की नकेल रस्सी पकड़ कर आगे-आगे चले और बाकी ऊँटों की पीठ पर झपकी लेते चलें।
रात भर चलने के बाद सवेरा उस समय नगर में हुआ जहाँ स्वागत आयोजन था। बारी के अनुसार हजरत उमर नकेल पकड़ कर चल रहे थे। स्थान समीप आया, ऊँट की पीठ पर सवार अर्दली ने पुकारा यह नकेल पकड़ कर चलेगा, वे सवार हो जायें।
पर हजरत ने यह कर इंकार कर दिया कि बारी के अनुसार उन्हें ही नकेल पकड़ कर चलना है। जो सवार है वे अपनी जगह पर सवार रहें। हममें से कोई न तो छोटा है न बड़ा। ’