“एक बार मेंढ़कोँ को अपने समाज की अनुशासनहीनता पर बड़ा खेद हुआ और वे शंकर भगवान के पास राजा भेजने की प्रार्थना लेकर पहुँचे।
प्रार्थना स्वीकृत हो गई। कुछ समय बाद शिवजी ने अपना बैल मेंढ़कों के लोक में शासन करने भेजा। मेंढक इधर-उधर निःशंक भाव से घूमते फिरते सो उसके पैरों के नीचे दब कर सैकड़ों मेढ़क ऐसे ही कुचल गये।
ऐसा राजा उन्हें पसन्द नहीं आया मेंढक फिर शिवलोक पहुँचे और पुराना हटा कर नया राजा भेजने का अनुरोध करने लगे।
वह प्रार्थना स्वीकार कर ली गई। बैल वापस बुला लिया गया। कुछ दिन बाद स्वर्गलोक से एक भारी शिला मेंढ़कोँ के ऊपर गिरी हजारोँ की संख्या में वे कुचल कर मर गये।
इस नयी विपत्ति से मेढ़कों को और भी अधिक दुख हुआ और वे भगवान के पास फिर शिकायत करने पहुँचे।
शिवजी ने गम्भीर होकर कहा-बच्चों पहले हमने अपना वाहन बैल भेजा था, दूसरी बार, हम जिस स्फटिक शिला पर बैठते हैं उसे भेजा। इसमें शासकों का दोष नहीं है। तुम लोग जब तक स्वयं अनुशासन में रहना नहीं सीखोगे और मिलजुलकर अपनी व्यवस्था बनाने के लिए स्वयं तत्पर न होगे, तब तक कोई भी शासन तुम्हारा भला नहीं कर सकेगा। मेंढ़कों ने अपनी भूल समझी और शासन से बड़ी आशायें रखने की अपेक्षा अपना प्रबंध आप करने में जुट गए।