“परिष्कृत हिन्दी के पितामह आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी आरंभिक जीवन में रेल कर्मचारी थे। स्टेशन मास्टर, टेलीग्राफ इन्सपेक्टर जैसे पदों पर काम करते समय उन्हें वेतन भी अच्छा मिलता था।
पर उनने हिन्दी को परिष्कृत और राष्ट्रभाषा स्तर की बनाने की बात सोची। अध्ययन के लिए 6 घंटा नित्य व्यस्त कार्यक्रम में कटौती करके नियमित रूप से निकाले। योग्यता उपयुक्त हो जानें पर नौकरी छोड़ दी और मात्र बीस रुपया मासिक निर्वाह लेकर सरस्वती पत्रिका का संपादन करने लगें। आजीविका घट जानें पर उनने उसी अनुपात से सारे खर्च घटा डाले और उतने में ही काम चलाना आरंभ कर दिया। उनके द्वारा जो महान सेवा हुई उसे देश का बच्चा-बच्चा जानता है।
द्विवेदी जी ने निजी रचनाएँ लिखने में कम और नौसिखियों के लेखों को शुद्ध करने, उन्हें प्रोत्साहन-प्रशिक्षण देने में अधिक समय लगाया।