पैरों में गिरकर क्षमा माँगी (kahani)

November 1993

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

“तालाब में कमल और तट पर गुलाब दो फूल खिल रहे थे। दोनों बड़े लुभावने प्रतीत हो रहे थे। गुलाब के फूल ने अकड़कर कमल के फूल से कहा -मित्र तुम बड़े भले ही हो किंतु सुगंध मेरी ही लोगों को आकर्षित करती है।

कमल ने कहा -भाई गुलाब। बुरा मत मानोँ तो हम दोनोँ का एक ही उद्देश्य है। आप सुगंध बखेरते हो और प्रकृति ने सौंदर्य मुझे प्रदान किया है। दानोँ मिलकर जो काम कर रहे हैं वह एक नहीं कर सकता था।

गुलाब अपने परदोष दर्शन पर लज्जित हो गया और कमल दुगुने उत्साह से सौंदर्य बिखेरने लगा। ”

“आप की सफलता का रहस्य क्या है?एक पत्रकार ने प्रेसीडेन्ट जान्सन से प्रश्न किया। जान्सन ने उत्तर दिया”असफल व्यक्ति”कैसे उसने पुनः प्रश्न किया। जान्सन ने बताया। जब भी मैं किसी असफल व्यक्ति से मिलता और बात-चीत करता तो पता लगता कि वह असफल किन कारणों से हुआ। पीछे उन कारणों और अनुभवों का लाभ उठाकर ही मैंने सफलता अर्जित की”।

“मीरा की आदत सी बन गई थी। जब वह मंदिर में बैठती, तो कभी मूर्ति की ओर पीठ कर लेती, तो कभी पैर।

एक बार वह प्रतिमा की ओर पैर करके बैठी थी, इतने में एक व्यक्ति ने मंदिर में प्रवेश किया। मीरा को इस स्थिति में बैठी देख उसे क्रोध आ गया। उसे भगवान का यह अपमान बर्दाश्त न हो सका। वह आगबबूला हो उठा और मन में जो आया बक डाला।

अब मीरा का वस्तुस्थिति का बोध हुआ। नाराजगी का कारण समझ में आया, तो मुस्कुरा दिया, कहा- बेटा। गालियाँ क्यों दे रहा है? भला तू ही बता, जिस ओर भगवान नहीं है, मैं उसी ओर पैर कर लूँगी। मुझे तो हर ओर, हर दिशा में, कण-कण में भगवान दिखते हैं।

व्यक्ति का अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने पैरों में गिरकर क्षमा माँगी और चलता बना।

संकीर्ण दृष्टि वालों को सर्वत्र बुराई ही दिखती है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles