रोगोत्पत्ति की जड़ें तन में नहीं-मन में

November 1993

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

शरीर को स्वस्थ रखने के लिये जिस प्रकार आहार-विहार का ध्यान रखा जाता है। उसी प्रकार मानसिक संतुलन को ठीक रखने की आवश्यकता पड़ती है। किसी समय व्याधियोँ के लिये ग्रह-नक्षत्रों, भूत-प्रेतों देवी-देवताओं को जिम्मेदार माना जाता था। बाद में बैक्टीरिया, वायरस, विजातीय द्रव्य को इसका कारण माना जाता रहा। किन्तु आधुनिक शोध से यह निष्कर्ष निकाला जा रहा है कि बीमारियाँ मनुष्य के मन में पैदा होती हैं एवं तन में पनपती हैं। इन्हें ’साइकोसोमेटिक’ या मनोशारीरिक रोग भी कहा जा सकता है।

आधुनिक सभ्य समाज में जहाँ जीवन में संघर्ष बढ़ रहा है। व्यक्ति के जीवन में मानसिक तनाव की वृद्धि हो रही है। यह तनाव मनोविकारों के कारण पैदा होता है। नैतिक तथा सामाजिक मूल्यों के प्रति अनास्था भी इसका कारण होती है। इसका प्रभाव मस्तिष्क के माध्यम से समग्र शरीर पर पड़ता है। ‘आटो नामिक नर्वस सिस्टम‘ की इसमें महती भूमिका होती है, जो मस्तिष्क के भाग ‘हाइपोथैलेमस’ से प्रभावित होता है। इसको सिम्पेथेटिक तथा पैरा सिम्पेथेटिक दो भागों में विभाजित किया गया है। इनके द्वारा हृदय, पाचन संस्थान, अंतः स्रावी ग्रंथियां संतुलन की अवस्था में क्रियाशील रहती है। मनोभाव सेरेब्रल कारटेक्स में पैदा होते हैं, जिनका प्रभाव हाइपोथैलेमस के माध्यम से पेरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम द्वारा कार्यिकीय परिवर्तनों के माध्यम से हृदय, रक्त नलिकाओं, अंतः स्रावों और विभिन्न ग्रंथियोँ पर होता है। इसी प्रकार मनोशारीरिक रोगों का प्रभाव हमारे शरीर पर होता है।

मनोभावों का उत्तेजनात्मक प्रभाव हृदय गति, रक्तचाप, रक्त नलिकाओं के व्यास में परिवर्तन, रक्त के रासायनिक परिवर्तन के रूप में होता है। जिसकी परिणति हार्टअटैक, कारडिएक एरिथमिया, इसेन्शियल हायपरटेंशन, ऐंजाइना पेक्टोरिस तथा माइग्रेन के रूप में हो जाती है।

एक व्यापारी भावनात्मक उतार-चढ़ाव के साथ ही चिंतित रहा करता था। कुछ समय बाद उसे उच्च रक्तचाप की बीमारी हो गयी। मनोवैज्ञानिकों ने उसे अपने दृष्टिकोण को बदलने तथा अपने समाज का उत्थान के रचनात्मक प्रयास में लगने की सलाह दी। देखा गया कि कुछ दिनों बाद ही उसे उच्च रक्तचाप से मुक्ति मिल गयी।

यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका में प्रतिवर्ष आधे से ज्यादा मृत्यु हृदय रोगों से होती हैं। चिकित्सकों के अनुसार 45 से 65 वर्ष की उम्र में 25 प्रतिशत मृत्यु साइकोसोमेटिक कोरोनरी आर्टरी डिसीसेज के कारण होती है। डबलिन और स्पाइगील मेन ने कोरिया युद्ध के दौरान शव परीक्षण द्वारा यह निष्कर्ष निकाला था। मेट तथा केनन ने अपनी खोजों में पाया है कि भावात्मक संवेगों का रक्त के जमाव की गति से साधा संबंध है। ब्लड बैंक में रक्त दाताओं को तीन श्रेणियों में बाँटा गया जो शाँत मनःस्थिति के थे उनके रक्त जमने की दर 8 से 12 मिनट थी, पर जो भयभीत थे उनके रक्त के जमाव का समय 4 से 5 मिनट था जो अत्यधिक चिंतित तथा भयभीत थे उनका 1 से 2 मिनट था। हृदयाघात में मृत्यु का कारण खून का थक्का जम जाना होता है। जो थ्राम्बस या इम्बालिस्म के रूप में होता है। थक्का बनने की प्रक्रिया रक्त के रासायनिक परिवर्तन पर निर्भर करती है। जिस पर मानसिक तनाव का सीधा प्रभाव होता है। हृदय की मायोकारडियम नामक पेशियोँ को बराबर खुराक नहीं मिलने से वे दुर्बल हो जाती हैं। इसका कारण भी तनाव-ग्रस्तता होती है। आगे चलकर ये ही हृदय रोग का कारण बनता है जिससे मृत्यु तक हो जाती है।

विशेषज्ञों के अनुसार मनोविकारों से रक्तचाप में वृद्धि हो जाती है। जिसे इसेन्शियल रक्तचाप भी कहते हैं। इसका कारण रक्त नलिकाओं का कड़ा हो जाना है। सामान्यतः रक्त नलिकायें लचीली ‘इलास्टिक’ होती है।

किंतु उम्र बढ़ने के साथ-साथ या मानसिक तनाव के कारण वे सिकुड़ जाती है तथा कड़ी हो जाती हैं। जिसके कारण हृदय को रक्त संचार में ज्यादा श्रम करना पड़ता है। फलतः रक्तचाप बढ़ जाता है। इसी से आगे चलकर, हृदय रोग, वृक्क का खराब होना तथा मस्तिष्क की नसों का फटना या उनमें रक्त का थक्का जमने की संभावना बढ़ जाती है। प्रख्यात चिकित्सक फेडमेन तथा रोजमेन का कहना है कि जब व्यक्ति पर मानसिक तनाव का अत्यधिक दबाव होता है तो उसका ब्लड कोलेस्टरोल लेवल एवं कोगुलेशन टाइम बढ़ जाता है। रुसेक तथा जोमेन ने 40 वर्ष की उम्र के 100 रोगियों की जाँच की जिन्हें कोरोनरी हृदय रोग था उनमें से 11 व्यक्ति मानसिक तनाव से पीड़ित थे। मानसिक तनाव से एड्रीनल गलैण्ड उत्तेजित होती है

जिससे वृक्क के माध्यम से भी रक्तचाप बढ़ जाता है। चिकित्सक शंक ने बिल्लियों पर कुत्तों द्वारा भौंकते रहकर तनाव बढ़वाया। कुछ समय बाद उनका रक्तचाप बढ़ा हुआ पाया गया। उनकी एड्रीनल ग्रंथि भी बढ़ी हुई थी।

मानसिक तनाव का प्रभाव हृदय की गतिविधियोँ पर विशेष रूप से पड़ता है। हृदय की सामान्य गति 72 प्रति मिनट होती है, किन्तु तनाव की अवस्था में यह गति बढ़कर 200 से 300 प्रति मिनट तक हो सकती है। इसी से टोकेकारडिया एरिदमिया, फिब्रिलेशन तथा ब्रेडिकारडिया आदि जैसे हृदय रोग पनपने लगते हैं। ऐंजाइना पेक्टोरिस में छाती के सामने वाले भाग में तीव्र वेदना होती है। यह कोरोनरी धमनी के, मानसिक तनाव के कारण संकुचन से भी होता है इससे रक्त में रासायनिक परिवर्तन भी होता है जिसमें खून का थक्का जम जाता है। माइग्रेन की तकलीफ इन्हीं कारणों से होती है। मानसिक विकारों से जन्मे मनोशारीरिक रोगों से शाँक एन्यूरिस्म तथा रक्तस्राव जैसी बीमारियाँ पैदा हो जाती हैं जिनसे बेहोशी, लकवा या कभी कभी मृत्यु तक हो जाती है।

मनोविकारों से रहित मन की शरीर को निरोग रखने में महत्वपूर्ण भूमिका है। इस तथ्य को विश्व के मूर्धन्य चिकित्साशास्त्री भी अनुभव कर चुके हैं। जिन्हें स्वस्थ, प्रसन्न और निरोग रहना हो उन्हें चाहिए कि वे पहले अपने मन को नियंत्रित-संयमित करें। जिस प्रकार अनियमित भोजन करने, और चटोरेपन से स्वास्थ्य बिगड़ता है, उसी प्रकार चाहे कुछ चिंतन करने से मन पर दूषित प्रभाव पड़ता है जिसकी परिणित शारीरिक रोगों के रूप में उभरती है। इसीलिए मनःचिकित्सक चिंतन, निंदा, चुगली, ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, आवेश आदि के प्रसंगोँ से बचने की सलाह देते हैं। मन के भटकाव को रोककर यदि सही दिशा दी जा सके तो स्वास्थ्य की समस्या का समाधान तो होता ही है। साथ ही अन्य अनेकों, झगड़े, झँझट और वैमनस्य से भी बचा जा सकता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118