परमात्मा का निराकार रूप (kahani)

November 1993

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

‘जर्मन का प्रसिद्ध नाटककार गेटे अपने लक्ष्य में आजीवन उसी मन और निष्ठ से संलग्न रहा।

जब उसकी मृत्यु हुई तब भी नाटक ही उसे दीख रहा था। अंतिम साँस छोड़ते हुए उसने उपस्थित लोगों से कहा, लो अब परदा गिरता है। एक मजेदार नाटक का अंत होता है।

‘चाणक्य ने बालक चन्द्रगुप्त में प्रतिभा देखी। उसे अपनी शक्ति देकर देश पर हमला करने वालों को रोक सकने योग्य समर्थ बनाया राज्य शासन का अधिकार दिलाया।

चन्द्रगुप्त अपने कर्तव्य को भूला नहीं। उसने सदा संघर्ष रत रह कर शत्रुओं को भगाया और देश में सुशासन स्थापित किया। साथ ही चाणक्य के संचालन में चलने वाले नालंदा विश्वविद्यालय को समुन्नत बनाने में पूरा योगदान दिया। ”

“शिवा का सवाल परमात्मा की सबसे सरल उपासना कौन सी है?मुझे बहुत भला लगा। यह बात औरों की भी जानने की है। जो दूसरों की भलाई में निरत रहता है। वह भगवान की ही भक्ति करता है। परोपकार से बढ़कर और भगवान की ही भक्ति करता है। परोपकार से बढ़कर और कोई उपासना नहीं है। यह सरल है, उत्तम है और सुखदायक भी। परोपकार करने में आत्मा की प्रसन्नता इतनी बढ़ जाती है कि रोमाँच हो जाता है तो फिर उसका फल तो और भी स्वर्गीय सुखों से भरा हुआ होगा। भलाई साक्षात् परमात्मा का निराकार रूप है। -समर्थ गुरु रामदास


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118