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November 1993

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“नानक वाणी”

प्राणिमात्र में संत नानक एक ईश्वर की सत्ता को स्वीकार कर किसी में कोई भेद नहीं समझते थे जैसे-

जी जत सब तिसदे सपना का सोई। मंदा किसनुँ आखिये, जे दूजा होइ॥

अर्थात् जीव-जन्तु सब उस प्रभु के हैं। सब में वही व्याप्त है। तब अच्छा या बुरा किसको कहें। उसके सिवा कोई दूसरा तो है नहीं।

आगे महाराज जी फरमाते हैं-

अवल अल्ला नूर उपाया, कु दरत के सब बंदे। एक नूर ते सब जग उपजया कौन भले कौन मंदे॥

गुरुजी के रूहानी जीवन का दृष्टिकोण इतना सार्वभौम था कि पदार्थ मात्र में ईश्वर की सत्ता को देखते थे। उनकी दृष्टि में अपना और पराया कोई था ही नहीं उनका कहना है कि-

ना कोई बैरी नाही बेगाना। सगल संघ हमको बनिआई॥

मेरा-तेरा छोड़िये, भाई होइये घूर। घर-घर ब्रह्म पसारियाँ, भाई देखे सुने हजूर॥

मानस को जात सभै, एको पहिचानयो, एक ही के सेव सब ही को गुरुदेव एक, एक ही स्वरूप सभै, एक जोत जानवो।


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