देवसंस्कृति को विश्व-संस्कृति बनाने को सन्नद्ध अश्वमेधी पराक्रम (उत्तरार्ध)

November 1993

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(गताँक से आगे)

जैसे-जैसे भारत से बाहर विदेश के सर्वप्रथम अश्वमेध यज्ञ के दिन समीप आ रहे थे, सभी उत्सुक थे, जिज्ञासु थे, यह जानने-देखने, समझने के लिए कि परम पूज्य गुरुदेव जिनने संस्कृति पुरुष के रूप में समग्र जीवन जिया एवं परम वंदनीय माताजी, जो उनके साथ छाया की तरह रहती हुई निरंतर तप करती रही, भारत से जाकर बसे अपने प्रवासी बच्चों एवं वहाँ के नागरिकों के लिए इन यज्ञ योजनाओं के माध्यम से क्या कुछ देने जा रही है। इन पंक्तियों के लेखक ने विगत तीन वर्षों की विश्व प्रव्रज्या में कई ऐसे व्यक्तियोँ से मुलाकात की जो भारत का स्मरण करने मात्र से भाव विभोर हो जाते थे, रोम-रोम में पुलकन होने लगती थी व कह उठते थे कि हम वर्षों पूर्व वहाँ से आए कुछ बीज संस्कारोँ के लाए थे उन्हें उगाया पौधा बनाकर बढ़ाया है पर एक साथ अभी भी मनमें है कि कभी वहाँ जा पायें। नहीं जा पाते तो आप लोग आ जाते हैं-आप सबके माध्यम से भारत के हिमालय के ऋषियों की संस्कृति का दर्शन कर लेते हैं। गंगा जल जो देवस्थापना के लिए पहली बार भारत से बाहर गया था, ने प्रत्येक के मर्मस्थलों को स्पर्श किया था। धनी संपन्नों की बात और है पर आमआदमी व विदेश का वह नागरिक जिसने गंगा के माहात्म्य को औरों से सुना है हाथ में गंगा जल लेकर जब कहता था। कि आप गंगा यहाँ ले आए, इससे बड़ी सौगात हमारे लिए क्या हो सकती है, यह आपका हमारे लिए बहुमूल्य उपहार है तो हम सभी के अंतःकरण गदगद हो जाते, परम् वंदनीय माताजी के इस निर्धारण व निर्णय पर कि पूरे विश्व के चौबीस करोड़ घरों में देवस्थापना अगले दिनों संपन्न होनी है।

किन्तु जब गोमुख से निकलने वाली गंगा स्वयं ही चलकर उनके द्वारा आने वाली गंगा स्वयं ही चलकर उनके द्वारा आने वाली हो, ऐसा सौभाग्य उन्हें मिलने जा रहा हो, परम वंदनीया माताजी के स्वयं पहली बार इंग्लैण्ड, कनाडा व अमेरिका की धरती पर पदार्पण के रूप में, तो सभी रोमाँचित हो उठे थे। ज्ञान गंगा जो गायत्री महाविद्या के रूप में ऋषि युग्म ने विगत साठ वर्षों में जन-जन तक पहुँचाई व पुण्य तोया गंगा का जन्म भी तो संयोग से एक ही साथ ही गायत्री जयंती-गंगा दशहरा के दिन हुआ था। पूज्यवर ने स्थूल काया से महाप्रयाण कर कारण सत्ता में इसी दिन प्रवेश किया था तथा पूज्यवर व परम वंदनीया माताजी ने इसी पावन दिन देवसंस्कृति दिग्विजय का संकल्प उद्घाटित करते हुए संस्कार महोत्सवों-अश्वमेधों के विश्वभर में संपन्न होने की घोषणा की थी। वस्तुतः यह सभी के लिए एक महोत्सव था, खुशी पर्व था, धरती पर स्वर्ग जैसे वातावरण को लाने की पूर्व बेला का युगान्तरीय चेतना का शंखनाद था, देवसंस्कृति के विश्वव्यापी बनने की दिशा में एक अभूतपूर्व प्रयास-पुरुषार्थ के बीजारोपण का समय था।

भारत सरकार के इंग्लैण्ड में उच्चायुक्त (हाईकमिश्नर) प्रसिद्ध विधिवत् महामहिम श्रीलक्ष्मीमल सिंधवी से 25 फरवरी 1993 को लंदन में हुई मुलाकात के समय का वार्तालाप एकाएक ही विस्तृत विवरण लिखने के पूर्व मानस पटल पर आ जाता है, जिसमें उनने कहा था कि “गायत्री परिवार भारतीय संस्कृति को विज्ञान सम्मत बनाते हुए अध्यात्म के वैज्ञानिक प्रतिपादन को जिस तरह आज पश्चिम के सम्मुख रख रहा है, इसकी सबसे बड़ी आवश्यकता है-विशेषतः युवा पीढ़ी के लिए जो संस्कृति का अर्थ मात्र कला व नृत्य-गायन ही समझते हैं। पूज्य आचार्य श्री ने जिस तरह संस्कृति को जीवन प्रवाह का एक अविच्छिन्न अंग बनाते हुए उसे धर्म व सभ्यता के मध्य एक सेतु के रूप में स्थापित किया हैं, यह अभूतपूर्व है। ”देवसंस्कृति की विराट प्रदर्शनी की रूपरेखा, सेमीनार व वर्कशाप के विषय तथा यज्ञ के मूल प्रयोजन को सुनकर न केवल उनने इस कार्य के लिए साध्वाद दिया था अपितु अपने प्रयासोँ से भावनाशीलों को प्रोत्साहित करने की बात भी कही थी ताकि कम से कम इंग्लैण्ड, सं.राज्य अमरीका व कनाडा जैसे देशोँ में उनके माध्यम से यह प्रदर्शनी एक स्थायी आयोजन का रूप ले ले। अश्वमेध महायज्ञ में दस जुलाई 1993 को एवं पुनः पार्लियामेण्ट आफ वर्ल्ड रिलीजन शिकागो(यू.एस.ए.) में 2 सितम्बर 1993 को पारस्परिक चर्चा में यही विचार-भाव उनने अभिव्यक्त किये।

परिजनोँ को यह सब बताने के मूल में हमारा एक ही उद्देश्य रहा है कि वे अपने मस्तिष्कीय आयामोँ का विस्तार करें, विराट विश्व -”ग्लोबल वर्ल्ड” में क्या कुछ सूक्ष्म चेतना के माध्यम से घटित संपादित हो रहा है, यह जानें ताकि वे आश्वस्त हो सकें कि संधिवेला में बहुसंख्यक भावनाशील-बुद्धि जीवी क्रमशः एक ही चैतन्य प्रवाह से जुड़ते चले जा रहे हैं। विश्व-संस्कृति के इस लीला प्रसंग में हम इस वर्ष विदेश में संपन्न तीन अश्वमेध महायज्ञों “लेस्टर, टोरोण्टो, लॉस एंजेल्स” स्वा. विवेकानंद के अमेरिका प्रवास की शताब्दी पर विश्व हिन्दू परिषद् अमेरिका द्वारा आयोजित “विजन-2000 वाशिंगटन” विश्व धर्म संसद द्वारा 1893 में संपन्न ऐतिहासिक शिकागो वर्ल्ड पार्लियामेण्ट ऑफ रिलीजन की शताब्दी पर आयोजित द्वितीय सात दिवसीय संसद तथा शिकागो में ही अगले वर्ष 21, 30, 31 जुलाई 1994 की तारीखों में आयोजित चौथे विदेश के अश्वमेध महायज्ञ की व्यापक तैयारियाँ के विषय में बताने जा रहे हैं। इन छहों ही प्रसंगों के निमित्त जो भी कुछ गायत्री परिवार के निमित्त बने भावनाशील परिजनोँ की तथा रीछ-वानर की भूमिका रही, उसे तथा उसके सत्परिणामों व विश्वव्यापी प्रतिक्रिया को जानकर निश्चित ही अगणित अनेकों को सत्प्रेरणा मिलेगी, ऐसा हमारा विश्वास है।

इंग्लैण्ड(लेस्टर) के प्रथम अश्वमेध महायज्ञ 1-10-11 जुलाई 1991 की तैयारियों की प्रारंभिक कठिनाइयों व उनके समाधान मिलते चले जानें की चर्चा हम पिछले अंक ‘अक्टो.93‘ में कर चुके हैं। गुरुपूर्णिमा एवं 3 जुलाई जब शाँतिकुँज में मनाया जा रहा था, तब हमारे नौ भाई लेस्टर में एक हजार से अधिक भावनाशील कार्यकर्ताओं के मध्य इस आयोजन को संपन्न कर अश्वमेध की प्रारंभिक भूमिका बना रहे थे। चार दिन बाद ही परम वंदनीया माताजी, डॉ.प्रणव पण्ड्या एवं श्रीमती शैलबाला पण्ड्या का आगमन भारत से होने वाला था। तैयारियाँ सभी पूरी हो चुकी थीं। 6 जुलाई को मध्याह्न हरिद्वार से ओड (खेड़ा गुज.)से परम वंदनीया माताजी के लिए बनकर आये विशिष्ट वाहन से दल दिल्ली को रवाना हुआ। दिल्ली सीमा पर दिल्ली गायत्री परिवार के परिजनों ने स्वागत की सारी तैयारियाँ कर रखीं थीं। प्रीत विहार में दर्शन देने के बाद “ईस्ट आफ कैलाश”(दक्षिणी दिल्ली) में आयोजित एक विराट सभा में नयी दिल्ली में आयोजित नवम्बर 1994 के अश्वमेध की तैयारी हेतु परिजनोँ को सुनियोजित क्रियापद्धति अपनाते हुए कार्य करने का संदेश परम वंदनीया माताजी ने दिया था तत्काल बाद ही रात्रि में लंदन के लिए ब्रिटिश एयरवेज की फ्लाइट थी जिससे रवाना हो साढ़े आठ घण्टे की यात्रा कर वे 7 जुलाई प्रातः 6 बजे लंदन जा पहुँची।

इंग्लैण्ड वासियों के लिए यह एक परम सौभाग्यशाली दिन था। इसी दिन से एक नये अध्यात्म का शुभारंभ होना था। सैकड़ों परिजन लंदन के गेटविक हवाई अड्डे पर परम वंदनीया माताजी को लेने आये थे। लंदन गेटविक से प्रायः 45 मील उत्तर में तथा लंदन से लेस्टर 110 मील उत्तर में है। पाँच जुलाई सेही परिजन लेस्टर में आना एकत्र हो गये थे। प्रवासी भारतीयों की अच्छी खासी संख्या मिडलैण्ड क्षेत्र में है। कावेण्ट्री, बर्मिघम, वाँलसाल, वुल्वर हैम्पटन, लफबरो, पीटबरो, एशबी, नटिंघम, नार्थम्पटन, ल्युटन, मिलटन कैर्न्स इन सभी का मध्य बिंदु लेस्टर माना जाता है। एम-1 मोटर वे जो इंग्लैण्ड का प्रमुख राजमार्ग है, लेस्टर को छूता हुआ निकलता है। आयोजकों ने प्रायः चार हजार कारों तथा चार सौ कोचेज (बड़े बस आकार के डबलडेकर वाहन) की पार्किंग की व्यवस्था की थी। यह भी कम पड़ने पर सोरवेली कम्यूनिटी कालेज से लगे दो तीन मील के क्षेत्र में जो इंडस्ट्रीज हैं उनने अपनी पार्किंग की सुविधा अश्वमेध के याजकों के लिए उपलब्ध करा दी। अंग्रेज नागरिकों की यह श्लाघनीय पहल आने वाले परिवर्तनों की एक शुरुआत मात्र थी।

प्रायः पंद्रह दिन से दिन में 5-6 बार ‘सनराइज’ रेडियो तथा स्पेक्ट्रम एफ.एम. बीबी सी लेस्टर से सतत् अश्वमेध के विज्ञापन आ रहे थे। “गरवी गुजरात” व लेस्टर मरक्युरी के विशेष परिशिष्ट भी 7 जुलाई को प्रकाशित हुए। सभी को जानने की जिज्ञासा थी कि कैसा होगा यह अश्वमेध? जिनने रामायण सीरियल देखा था उन्हें तो लव−कुश द्वारा घोड़ा पकड़ा जानें की कथा याद थी। यहाँ भी वे सोच रहे थे कि ऐसा ही कोई घोड़ा भारत से आने वाला होगा अथवा स्थानीय स्तर पर घोड़े की बलि की व्यवस्था की जानें वाली होगी। किन्तु 6, 7, 8 जुलाई को केन्द्रीय प्रतिनिधियों के इंटरव्यू जो प्रसारित हुए, उनसे सभी के मन की भ्रान्तियाँ निकल गयीं।

सोरवेली कम्यूनिटी कॉलेज का पूरा परिसर वासंती परिधान में रंगा था। कॉलेज में तीन बड़े कक्षोँ में प्रदर्शनी लगायी गयी थी। कोआर्डीनेंशन सेण्टर वहीं बनाया गया था। सेमीनार व वर्कशाप के लिए चार बड़े हालों की व्यवस्था की गयी थी। कॉलेज के ड्रामा थिएटर में ऋषि चिंतन’युगपुरुष “संजीवनी साधना ‘तथा भारत के अश्वमेधों की वीडियो फिल्में दिखाया जाना 9 जुलाई को प्रातः से ही आरंभ हो गया था। प्रदर्शनी सभी के आकर्षण की मूल बिंदु थी। लंबी-लंबी लाइनें लगी थीं ताकि सभी क्रम से अंदर जाकर अनुशासित ढंग से अध्यात्म के विज्ञान सम्मत प्रतिपादन को देख समझ सकें प्रायः सौ परिजनों ने भोपाल’भारत’से आए श्रीदत्तात्रेय एम. जोशी के सहायक के रूप में पिछले चार-पाँच दिन से रात-दिन लग कर यह विशाल प्रदर्शनी खड़ी की थी कैप्शन्स लिखे थे एवं लगभग एक हजार चित्रों, ट्राँसपेरेसी तथा वैज्ञानिक उपकरणों-माडल्स के सहारे देवसंस्कृति का आमूलचूल एक नया ढाँचा खड़ा कर दिया था। वैज्ञानिक चार्ट्स के द्वारा सभी यह देख-समझ रहे थे कि ब्रह्मवर्चस् की शोध में किस किस क्षेत्र में साधकों को क्या-क्या लाभ मिले हैं। ब्रिटिश लोगों के लिए ये आँकड़े तो आँख खोल देने वाले थे। षोडश संस्कारों की विधि सम्मत वैज्ञानिक व्याख्या, आसन-प्राणायाम-ध्यान के वैज्ञानिक आयाम व शरीर -मन के अलावा आध्यात्मिक लाभ, मंदिरों के शिल्प के मूल में छिपी तर्क सम्मत ऋषि मनीषा, पर्व-त्यौहारोँ के तथ्य प्रधान निरूपण से भारतीय संस्कृति का एक विलक्षण आयाम लोगों को देखने को मिला। ध्यान कैसे किया जाना चाहिए, इसके लिए एक फ्रेममार्की का डोम बनाया गया था। जो पिरामिड आकार के ऊपर गुँबद रूप में था जिसमें ध्यान एक संक्षिप्त टिप्पणी के बाद संपन्न होता था। जड़ी-बूटियों चिकित्सा भारतीय व पाश्चात्य परिप्रेक्ष्य में कैसे व्यवहारिक स्तर पर वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति बन सकती है, यह सबके कौतूहल का बिंदु था। परमपूज्य गुरुदेव के जीवन वृत्त मिशन के भावी निर्धारण तथा यज्ञ व अश्वमेधों के इतिहास व गायत्री महाशक्ति के चौबीस रूपों की झलक झाँकी देखकर इस प्रदर्शनी के सर्वांगपूर्ण रूप को सभी ने सराहा। हाउस ऑफ लार्ड्स एवं कामन्स से आए संसद सदस्यों, पुलिस ग्रह विभाग के अधिकारी गणों व विभिन्न संस्थाओं के प्रमुखों ने भी इस प्रदर्शनी का अवलोकन किया।

कलश यात्रा का समय प्रातः 9 बजे का निर्धारित था। तीन हजार से अधिक बहिनें कलश धारण करने को सनातन मंदिर पहुँच गयी थीं। किंतु इंग्लैण्ड का मौसम जो सदा अनिश्चित रहता है प्रातः से ही रुठा सा लग रहा था। तेज बारिश 11 बजे थम गयी। तब परम वंदनीया माताजी के साथ झाँकियाँ सहित एक कलश यात्रा का शुभारंभ उनके संक्षिप्त उद्बोधन व कलश पूजन के बाद हुआ। प्रायः दस हजार से अधिक व्यक्ति कलश यात्रा में थे। स्वामी नारायण संस्था (बोन्नासनवासी अक्षय पुरुषोत्तम धाम) सत्य साईं मिशन, सीताराम सेवा ट्रस्ट आदि के स्वयं सेवक कलश यात्रा को सुव्यवस्थित ढंग से चला रहे थे। दोपहर देवपूजन के पश्चात् यज्ञाश्व प्रवेश होना था। ध्वजारोहण में भारत, इंग्लैण्ड एवं युग निर्माण योजना, प्रज्ञा अभियान के ध्वज फहराये गये। देवपूजन के समय कलश पूजन के समय वरुण देवता का आह्वान करते ही एकाएक बारिश आरंभ हो गयी। पर यह क्षणिक ही थी क्योंकि मात्र उपस्थिति का आभास कराने को वरुण देवता ने यह उपक्रम जुटाया था। यज्ञाश्व प्रवेश के साथ ही परम वंदनीया माताजी द्वारा घोषणा हुई एवं पाँचवे अश्वमेध महायज्ञ(विदेश के सर्वप्रथम) का शंखनाद हो गया। परम वंदनीया माताजी के उद्बोधन के साथ कार्यक्रम समापन हुआ। शनिवार-रविवार 10 व 11 जुलाई को सभी ओर से एक ही रुख था -लेस्टर की ओर। प्रशासन की व्यवस्था पूरी थी पर परिजनोँ का सहयोग भी अनुपम था। प्रायः साठ हजार व्यक्तियों ने शनिवार को व पिचहत्तर हजार व्यक्तियों ने रविवार को यज्ञ में भाग लिया। विदेश में जब किसी के पास भी थोड़ा सा समय अन्य किसी काम के लिये नहीं है। इतनी बड़ी संख्या जुट जाना अभूतपूर्व था। वहाँ के इतिहास में यह प्रथम ही ऐसा विराट आयोजन था। भारी संख्या में ब्रिटिश नागरिकों ने भी भाग लिया। कई उत्सुक व्यक्ति प्रदर्शनी देखने व वर्कशाप आदि में आए। सेमीना (संगोष्ठी) व वर्कशाप (कार्यशाला )का मूल उद्देश्य था-भारतीय संस्कृति संबंधी विचारोत्तेजक विषयों पर वैज्ञानिक प्रस्तुतीकरण द्वारा युवा वर्ग के मन में फैली भ्रान्तियों का निवारण जन-जन को देव-संस्कृति के तर्क तथ्य-प्रमाण सम्मत स्वरूप की जानकारी तथा प्रश्नोत्तरी के माध्यम से ज्ञानयज्ञ में सबकी भागीदारी। तनाव को कैसे कम किया जाय?शरीर मन आत्मा को कैसे चुस्त दुरुस्त रखा जाय?(फिजीकल-मेण्टल-स्प्रिचुअल फिटनेस)गायत्री साधना व उससे जुड़ी शंकाएं-समाधान, ध्यान का साकार एवं निराकार स्वरूप कैसा हो व्यवहारिक स्तर पर कैसे उसे करें, युवा वर्ग की समस्याएं व उनका समाधान, नारी शक्ति की नवनिर्माण में भूमिका जैसे विषयों पर वर्कशाप एवं सेमीना आयोजित हुई। डॉ.रमण गोकल, प्रमोद भटनागर, श्रीकालीचरण शर्मा, सूरज प्रसाद शुक्ला एवं डा. प्रणव पण्ड्या द्वारा अंग्रेजी में प्रस्तुत इन संगोष्ठियों में प्रायः चार हजार से अधिक ने भागीदारी की।

यज्ञ, दीक्षा, संस्कारों का क्रम नित्य चलता रहा। सबसे भाव भरा वंदनीया माताजी का 11 जुलाई को विदाई उद्बोधन था जब उनने सभी प्रवासी परिजनों को सतत् अपना सामीप्य संरक्षण देने का आश्वासन एक गीत के माध्यम से दिया। अंतिम दिन सभी की इच्छा होने के कारण भारत की ही तरह पर्वों पर चलने वाले प्रवास का उपक्रम चल पड़ा। परम वंदनीया माताजी को प्रणाम कर यज्ञ का प्रसाद ले परिजन पीछे चल रहे गरबा में सम्मिलित होते जा रहे थे। प्रणाम का क्रम प्रायः 6 घण्टे तक चला। तत्पश्चात् लंदन होकर परम वंदनीया माताजी 13 जुलाई प्रातः को वापस लौट आयी। शेष दल कनाडा (टोरेण्टो) महायज्ञ (23, 24, 25 जुलाई की तैयारी के लिए उसी दिन प्रातः रवाना हो गया। )

कनाडा में प्रवासी परिजन यों तो पाँच लाख से अधिक हैं किन्तु टोरेण्टो अकेले व आसपास के क्षेत्र में उनकी संख्या पौने दो लाख हैं। यही नहीं अमेरिका की सीमा लगी हुई है अतः शिकागो, डेटाँयर, बफेलो, न्यूजर्सी आदि के परिजन सतत् कनाडा आते जाते रहते हैं। टोरेण्टो महायज्ञ की यही विशेषता रही कि उसमें टोरेण्टो गायत्री परिवार का जितना योगदान था, उसका एक चौथाई योगदान अमेरिका के विभिन्न नगरों से आए परिजनों का भी जिनने इसे अपना कार्यक्रम मानकर स्वयं सेवक वृत्ति से सारा कार्य किया। इसमें वाशिंगटन, वर्जीनिया, अटलाण्टा, फलोरिडा, टेक्सास, ओकलाहोमा तथा लास ऐंजल्स से आए परिजन भी थे। टोरेण्टो को ओशावा, ओटावा ‘कनाडा की राजधानी’ तथा माण्ट्रियल के परिजनों का भी खूब सहकार मिला। बहुसंख्यक कैनेडियन मूल के नागरिक, प्रसिद्धि भविष्य वेत्ता एलन काइट जो पीले वस्त्रों में थे। फेडरेशन ऑफ हिन्दू एसोसिएशन ’एफ.आई.एच.’ के प्रायः 80 से अधिक संगठनों के प्रमुख कार्यकर्ता इस आयोजन से जुड़े हुए थे। डॉ.प्रणव व कालीचरण जी पहले दो बार तैयारी हेतु यहाँ की यात्रा मई-जून में कर चुके थे अतः अश्वमेध समिति यार्क यूनिवर्सिटी कैम्पस में भरपूर तैयारी के साथ जुटी हुई थी। पूरा कैम्पस ही विशाल सभागारों पण्डाल हेतु दो बड़े मैदान, कार पार्किंग व आवास हेतु यूनिवर्सिटी प्रशासन ने दे दिया था। प्रदर्शनी जहाँ लगनी थी वहाँ पहले से ही एक विशाल “अश्व “का मॉडल खड़ा हुआ था। उसी के चारों ओर अश्वमेध की प्रदर्शनी लगा दी गयी। प्रतीक्षा वंदनीया माताजी की थी जो नयी दिल्ली से 20 जुलाई की संध्या तक पहुंचने वाली थीं। टोरेण्टो एयरपोर्ट से भव्य शोभयात्रा के माध्यम से परम वंदनीया माताजी यार्क यूनिवर्सिटी कैम्पस पहुँची। उनके आने के साथ ही टोरेण्टो के मौसम का मिज़ाज भी बदल गया। सभी वर्षा की संभावना से परेशान थे किंतु 21 जुलाई को शाम को खुला मौसम हल्की बादलों की छाँव वाली ठण्डक लिए यथावत् बना रहा तथा 25 जुलाई को मौसम विभाग की खुली घोषणा के बावजूद कि दोपहर से ही घनघोर बारिश व ओलों की वृष्टि होने लगेगी, रात्रि परम वंदनीया माताजी के विमान के लंदन की ओर प्रस्थान के बाद ही फिर अपने मिज़ाज में आया।

ऐसी घनघोर बारिश रात्रि 8 के बाद हुई कि प्रातः 11-11-30 तक नहीं थमी। तब तक आयोजक सभी कार्यों से निवृत्त हो चुके थे।

टोरेण्टो में यज्ञ का उपक्रम यद्यपि लेस्टर की ही भाँति रहा, दीक्षा-संस्कार देवाह्यान-आहुतियाँ-आरती, वर्कशाप, सेमीनार एवं प्रदर्शनी जो दिन-रात ख्ली रही व लगभग सत्तर हजार से अधिक व्यक्तियों ने देखी, कुछ बातें लेस्टर से भिन्न व विलक्षण स्तर पर संपन्न हुई। प्रायः पाँच प्राँतीय व केन्द्रीय स्तर के मंत्री इस यज्ञ में आये, अधिकारी गण भी गृह व आव्रजन विभाग से लेकर अग्नि सुरक्षा, पुलिस, यातायात आदि के नित्य यज्ञ में भाग लेते रहे। भाग लेने वाले विदेशी कैनेडियन, ब्रिटिश नागरिकों की तुलना में अधिक थे। भागीदारी करने वाले योजकों की संख्या भी पाँच हजार से अधिक अमेरिका-वासियों के साथ मिलकर अस्सी हजार से अधिक पहुँच गयी थी। प्रवीण भाई सूटर्स वाले, रमेश भाई मजीठिया व रमेश भाई चोराई के सहयोग से भोजन व्यवस्था, ज्यूस आदि की व्यवस्था व अन्य आर्थिक सुप्रबंध सहज ही बन गए थे। कनाडा सरकार ने इस कार्यक्रम को मल्टी फेथ कन्वेंशन बताते हुए अपनी ओर से पैंतीस हजार कैनेडियन डालर ’7 लाख रुपयों’ का अनुदान चेक रूप में अपनी नागरिक आब्रजन मंत्री सुश्री जिम्बा के माध्यम से परम वंदनीया माताजी को भेंट किया। यह सारी उपलब्धियाँ इस यज्ञ की सभी के लिए अनूठी रहीं। चमत्कारोँ के प्रसंगों की जो अगणित हे, हम छोड़ दें तो भी प्रत्यक्ष जो हुआ उसे कोई प्रमाण की आवश्यकता नहीं। ”महायज्ञ में आओ, आहुतियाँ स्वीकार करो”वाला देवाहान का सामगान आरंभ होते ही एक साथ नौ नारियलों का टोरेण्टो में, अटलाण्टा तथा मियामी फ्लोरिडा में 108 व 51 कुण्डी यज्ञों में फटना स्वयं में एक अद्वितीय घटना है जो बताती है कि भाव हो तो देवता स्वयं पधारते हैं।

परम वंदनीया माताजी के 25 जुलाई को लंदन होकर दिल्ली रवाना होने के बाद एक दल श्रीकालीचरण व प्रमोद भटनागर के नेतृत्व में लॉस ऐंजल्स’ स.राज्य अमेरिका’महायज्ञ की तैयारियों के लिए अगले ही दिन प्रस्थान कर गया था तथा डॉ.प्रणव के साथ एक दल न्यूयार्क, न्यूजर्सी, वाशिंगटन व कैलीफोर्निया की राजधानी सेक्रामेण्टो होता हुआ लॉस ऐंजेल्स, अगस्त के मध्य में पहुँचा। इनमें उल्लेखनीय है न्यूजर्सी में 6 हजार से अधिक व्यक्तियों द्वारा 108 कुण्डी गायत्री महायज्ञ, वाशिंगटन में स्वामी विवेकानन्द की स्मृति में आयोजित विजन 2000 एक विद्वत्सभा तथा सेक्रामेण्टो में भागवत् कथाकार श्री रमेश भाई ओझा व चिदानंद मुनि जी की उपस्थिति में 501 कुण्डी गायत्री महायज्ञ “विजन-2000” अपने आप में अनूठी उपलब्धि लिए एक कार्यक्रम के रूप में संपन्न हुआ जिसमें हिन्दुत्व अपनी पूरी गरिमा व साँस्कृतिक वैभव के रूप में तीन दिवसीय आयोजन के रूप में 6, 7, 8 अगस्त को अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन के हृदय स्थल पर छाया दिखाई दे रहा था। अमेरिका की विभिन्न यूनिवर्सिटी के विद्वान तथा सारे विश्व के विश्व हिन्दू परिषद तथा धर्मतंत्र से जुड़े महत्वपूर्ण व्यक्तियों ने एक साथ एकत्र हो वाशिंगटन हिल्टन होटल में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार विमर्श किया तथा स्वामी विवेकानन्द का स्मरण करते हुए उनके कार्य को विश्व भर में फैलाने का संकल्प लिया गया। शाँतिकुँज का प्रतिनिधित्व कर रहे डॉ. प्रणव पण्ड्या के युवा वर्ग में तथा बुद्धिजीवी वर्ग में तीन व्याख्यान थे। हाँरमोनी ऑफ रिलीजन्स, रिलीजन ऑफ फ्यूचर तथा वैज्ञानिक अध्यात्मवाद पर दी गयी वक्ताओं के माध्यम से परम पूज्य गुरुदेव के प्रतिपादन प्रायः दस से पन्द्रह हजार नये प्रबुद्ध व्यक्तियों तक पहुँचे। अनेकों नये व्यक्ति मिशन की प्रवृत्तियों से जुड़े व इस प्रकार एक नूतन अध्याय आरंभ हुआ।

पूरे शाँतिकुँज दल का अंतिम कार्यक्रम “लॉस ऐंजल्स यू.एस.ए का अश्वमेध था जो शृंखला में सातवाँ व विदेश में तृतीय था। टोरेण्टो व लेस्टर की ही तरह यहाँ तीन दिन तक महायज्ञ दीक्षा, संस्कार, पं.वंदनीया माताजी के उद्बोधन के साथ साथ विराट देवसंस्कृति की प्रदर्शनी एवं सेरीटोस कॉलेज नारवाँक में सेमीनार-वर्कशाप का क्रम चला। जो भी कुछ अन्य स्थानों से अलग घटित हुआ वह यहाँ उल्लेख के योग्य है। लॉस ऐंजेल्स अमेरिका विशाल महाद्वीप के पश्चिमी तट पर स्थित एक विशाल नगर है जिसकी 80 से अधिक उपनगरियाँ हैं। हालीवुड भी यहाँ है तो विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधियों के हेडक्वार्टर से भी यहीं हैं। यहाँ तक कि स्वामी विवेकानन्द ने भी शिकागो धर्म सभा के बाद अपना पहला केन्द्र यहीं स्थापित किया था। गायत्री परिवार लॉस ऐंजेल्स विगत 14 वर्षों से सतत् साप्ताहिक गायत्री यज्ञ कर जन-जन तक गायत्री व यज्ञ के संदेश के कारण संभवतः उन्हें अमेरिका में आयोजन का सौभाग्य मिला। अपने परिवार से जुड़े सभी व्यक्ति प्रबुद्ध समुदाय के इंजीनियर्स, चिकित्सक अथवा व्यापारी गण हैं। सभी ने एक जुट होकर जो कार्य किया उससे सत्तर से अस्सी हजार से अधिक जनसमुदाय तीन दिन तक सेरीटास महाविद्यालय के कैम्पस में उपस्थित हो कृतकृत्य होकर गया। पाँच हजार से अधिक गोरे अमेरिकन एवं अन्य आध्यात्मिक संस्थाओं -चर्चों से जुड़े प्रतिनिधियों ने इसमें भागीदारी की। प्रबुद्ध वर्ग की गोष्ठियाँ अत्यन्त सफल रहीं। युवावर्ग सर्वाधिक यहीं उपस्थित रहा। पहली इंग्लिश की अंतर्राष्ट्रीय स्तर की किताब का जिसमें गायत्री संबंधी समस्त शंकाओं का समाधान तथा मिशन के विराट स्वरूप का परिचय है, यही विमोचन हुआ।

इस कार्यक्रम के साथ ही विदेश के अश्वमेधी पराक्रम का समापन हो गया एवं अश्वमेध यज्ञ की ध्वजा गायत्री परिवार यू. एस. एवं प्रतिनिधि द्वारा शिकागो यज्ञ के आयोजक गणों को दे दी गयी, जो 29, 30, 31 जुलाई 1994 की तारीखों में आगामी ‘विदेश का चौथा’ अश्वमेध संपन्न करेंगे। परम वंदनीया माताजी के साथ आठ सदस्यीय दल 24 अगस्त को चलकर भारत वापस 26 अगस्त को आ गया जहाँ हरिद्वार नगरी की प्रारंभिक सीमा से भव्य स्वागत द्वारा उन्हें शाँतिकुँज लाया गया। एक दूसरा दल डॉ. प्रणव पण्ड्या के नेतृत्व में ‘शिकागो’ महायज्ञ के प्रयास हेतु साढ़े तीन हजार मील की प्रव्रज्या व एक विराट 151 कुण्डी यज्ञ आयोजन हेतु तथा”वर्ल्ड पार्लियामेण्ट ऑफ रिलीजन”जो सौ वर्षों बाद इतिहास में दूसरी बार 25 अगस्त से 4 सितम्बर 1993 के मध्य शिकागो में आयोजित थीं, में विश्व गायत्री परिवार की एक बड़े स्तर पर भागीदारी करने हेतु रुक गया। इन दोनों ही कार्यक्रमों को संपन्न कर दल 17 सितम्बर को भारत लौटा। इन अभूतपूर्व आयोजनों की एक संक्षिप्त सी झलक आगामी अंक में पाठक देख सकेंगे। निश्चित ही देवसंस्कृति को विश्व संस्कृति बनाने का महाकाल का यह उपक्रम इन उपलब्धियोँ के माध्यम से हम सभी को एक जुट हो सक्रिय बनने का संदेश दे रहा है। हम उस पुकार को अनसुनी कर दें तो अलग बात है, किन्तु जो भी कुछ हो रहा है व भविष्य में घटित होने वाले परिवर्तनों की एक चेतावनी भरी झाँकी मात्र है।

*समाप्त*


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