“गाँधी टोपी सर्वत्र मशहूर हो गई थी। एक किसान ने गाँधी जी को पहली बार देखा और उन्हें नंगे सिर पाया।
किसान ने पूछा आपके नाम से चलने वाली टोपी जब लाखों करोड़ों के सिर पर है तो आप उसे क्यों नहीं पहनते।
किसान के सर पर एक बड़ा साफा बंधा हुआ था। उसकी ओर इशारा करते हुए गाँधी जी ने कहा। जब आप जैसे लोग इतना कपड़ा फिजूल ही इस्तेमाल कर लेते हैं। तो उस कमी को पूरा करने के लिए मेरे जैसे लोगों को नंगे सिर रहना ही पड़ेगा।
“आगरा जिले के खँदोली कस्बे के निकट कुछ समय पूर्व शिकारियों ने भेड़िये की माँद से एक पाँच वर्षीय जीवित मनुष्य बालक पकड़ा। भेड़िये ने उसे खाया नहीं पाल लिया था। पकड़े जानें के समय उसका रहन-सहन, चलना, खाना, बोलना भेड़ियों जैसा था।
उसे पकड़कर लखनऊ मेडिकल कालेज में इस प्रयोग के लिए भर्ती किया गया कि वह मनुष्य जैसा आचरण करने का अभ्यास कर ले। पर इसमें यत्किंचित् ही सफलता मिली। चौदह वर्ष का होकर वह मर गया आरंभिक चंचल मन से उसने जो सीखा, समझा, देखा था भविष्य में उसी के अनुरूप आचरण करता रहा।
बच्चे की वास्तविकता शिक्षा उसके आरंभिक जीवन में होती है। ”