है तो यह मजाक किन्तु मनुष्य की भी यही वास्तविकता है। कोई अपने को धन मानता है तो कोई पद, कोई अपने को तन मानता है तो कोई मन। स्वाभाविक है जो अपने को नहीं जानते वे कुछ भी मानने लगते हैं।
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“पृथ्वी के क्षेत्रफल की अपनी एक निश्चित सीमा रेखा है। शेष संपूर्ण भाग जलमग्न है। परन्तु पृथ्वी पर निवास करने वाले प्राणियों विशेष कर मनुष्य की बढ़ती जनसंख्या का कोई सी मा बंधन दिखाई नहीं देता।
वैज्ञानिकों ने यह अनुमान लगाया है कि विश्व में प्रति व्यक्ति के हिसाब से यदि 0.4 हेक्टेयर कृषि करने -खाद्यान्न उत्पादन के लिए तथा 0.08 हेक्टेयर भूमि रहने योग्य, मकान, सड़क, एयरफील्ड बनाने, उद्योग खड़ा करने तथा कूड़ा -कचरा डालने आदि के लिए दी जाय तो भी जनसंख्या वृद्धि के अनुपात से यह पृथ्वी सन् 2000 तक मनुष्य के लिए छोटी पड़ जायेगी। भले ही पृथ्वी का कोना-कोना चप्पा-चप्पा कृषि योग्य क्यों न बना लिया जाय। ऐसी स्थिति में अरबों लोग नंगे, भूखे-प्यासे मरने को विवश होंगे।