बिल्ली को क्या मालूम ? (kahani)

November 1993

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

एक व्यक्ति को अचानक भ्रम हो गया कि वह चूहा है। घर के लोग, मित्र, पड़ोसी, सब बड़े परेशान। पहले तो समझा कि यह यों ही ठिठोली करता है किन्तु धीरे-धीरे मामला बड़ा गंभीर होता चला गया। घर के लोग उसे पकड़ कर मनोवैज्ञानिक के पास ले गये। मनोवैज्ञानिक ने 6 माह का समय माँगा। महंगा इलाज किया। उस व्यक्ति का वहम भी मिट गया कि वह चूहा नहीं है, मनुष्य ही है। डॉक्टर की फीस चुकाकर जब वह चलने लगा तो सीढ़ियाँ उतर ही रहा था कि इतने में अचानक बिल्ली सामने से गुजर गई। वह व्यक्ति चीख मार कर छलाँग लगाता हुआ वापस दौड़कर सीढ़ियाँ चढ़ आया। हाँफता हुआ मनोवैज्ञानिक के पास पहुँचा। मनोवैज्ञानिक ने पूछा क्यों क्या बात है। क्या तुम फिर भूल गये कि तुम चूहा नहीं हो मनुष्य ही हो। आदमी बोला कि वह तो सब ठीक है मैं तो मानता हूँ कि मैं आदमी हूँ। किन्तु बिल्ली को क्या मालूम ?उसने थोड़े ही आप से इलाज कराया है।

है तो यह मजाक किन्तु मनुष्य की भी यही वास्तविकता है। कोई अपने को धन मानता है तो कोई पद, कोई अपने को तन मानता है तो कोई मन। स्वाभाविक है जो अपने को नहीं जानते वे कुछ भी मानने लगते हैं।

=======================================================================================

“पृथ्वी के क्षेत्रफल की अपनी एक निश्चित सीमा रेखा है। शेष संपूर्ण भाग जलमग्न है। परन्तु पृथ्वी पर निवास करने वाले प्राणियों विशेष कर मनुष्य की बढ़ती जनसंख्या का कोई सी मा बंधन दिखाई नहीं देता।

वैज्ञानिकों ने यह अनुमान लगाया है कि विश्व में प्रति व्यक्ति के हिसाब से यदि 0.4 हेक्टेयर कृषि करने -खाद्यान्न उत्पादन के लिए तथा 0.08 हेक्टेयर भूमि रहने योग्य, मकान, सड़क, एयरफील्ड बनाने, उद्योग खड़ा करने तथा कूड़ा -कचरा डालने आदि के लिए दी जाय तो भी जनसंख्या वृद्धि के अनुपात से यह पृथ्वी सन् 2000 तक मनुष्य के लिए छोटी पड़ जायेगी। भले ही पृथ्वी का कोना-कोना चप्पा-चप्पा कृषि योग्य क्यों न बना लिया जाय। ऐसी स्थिति में अरबों लोग नंगे, भूखे-प्यासे मरने को विवश होंगे।




<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles