समूचा ब्रह्मांड एक चैतन्य शरीर

June 1993

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

शरीर के किसी भाग पर आघात पहुँचता है तो उसकी प्रतिक्रिया से शरीर का रोम-रोम काँप उठता है। मन मस्तिष्क भी उद्विग्न और बेचैन हो उठते है। समूचा ध्यान शारीरिक पीड़ा पर केन्द्रित हो जाता है। मनःसंस्थान असंतुलित हो तो शरीर भी स्वस्थ और निरोग नहीं रह पाता। शरीर में प्रत्येक अवयव मनःसंस्थान एक दूसरे की स्थिति से प्रभावित होते हैं। यह शरीर की चैतन्यता एवं एकता का प्रमाण है। दृश्य और अदृश्य प्रकृति समूचा सौर-मण्डल भी इस तरह एक दूसरे से गहरे भावनात्मक आकर्षण से जुड़ा हुआ है। इसके एक सिरे पर जो कुछ भी घटित होता है तो अन्यान्य स्थानों पर उसकी प्रतिक्रिया परिलक्षित हुए बिना नहीं रहती।

इस तथ्य को प्रतिपादित करने एवं रहस्योद्घाटन करने का जो विज्ञान भारत में प्राचीन काल से प्रचलित था उसे ज्योतिष विज्ञान के नाम से जाना जाता है। इसका लक्ष्य था सौर मण्डल के सदस्यों के पारस्परिक संबंधों की वैज्ञानिक विवेचना करना तथा एक दूसरे पर पड़ने वाले प्रभावों से अवगत कराना। फलतः इस विद्या के सहारे पृथ्वी से इतर ग्रह नक्षत्रों के अनुदानों से लाभ उठा सकना एवं दुष्प्रभावों से बचाव कर पाना सुलभ था जो आज के विकसित विज्ञान द्वारा ही संभव नहीं है। कालाँतर में यह विज्ञान विलुप्त होता गया और उसका स्थान मूढ़मान्यताओं एवं भ्राँतियों ने ले लिया। जिन्हें देखकर विज्ञजनों द्वारा इस विद्या की उपेक्षा हुई। इसके बावजूद भी विज्ञान ने जब से प्रौढ़ता की ओर कदम रखा है उसका ध्यान अंतरिक्ष की खोजबीन की ओर आकर्षित हुआ है। साथ ही ग्रह-नक्षत्रों, सौर-मण्डल की गतिविधियों, आपसी संबंधों एवं परस्पर एक दूसरे पर पड़ने वाले प्रभावों को जानने के लिए छुटपुट प्रयास भी चल रहे हैं। प्रकारान्तर से भौतिक विज्ञान अब उन्हीं निष्कर्षों पर पहुँच रहा है जिस पर सदियों पूर्व तत्ववेत्ता ऋषि जो ज्योतिर्विज्ञान के मर्मज्ञ भी थे पहुँच चुके थे।

ज्योतिष विज्ञान के आचार्यों ने सौर-मण्डल के सदस्यों को देव शक्तियों के रूप में प्रतिष्ठापित किया था। नौ ग्रहों की नौ देवशक्तियों के रूप में प्रतिष्ठापना की गई है। ज्योतिर्विज्ञान की यह मान्यता सदियों से चली आ रही है कि सौर मण्डल की अधिपति सूर्य मात्र अग्नि का धधकता पिण्ड नहीं है अपितु जीवन प्राण और सक्रिय अग्नि का पुँज हैं, जो पल-प्रतिपल अपने सौर-मण्डल के सदस्यों को अपनी गतिविधियों से प्रभावित किया करता है। सूर्य के साथ ही मंगल, बृहस्पति, बुध आदि भी पृथ्वी के वातावरण को प्रभावित करते हैं।

इस तथ्य को विश्व के प्रसिद्ध भौतिकविद् भी स्वीकार करने लगे हैं कि सौर मण्डल की गतिविधियाँ पृथ्वी के वातावरण एवं जैविक परिस्थितियों के प्रभाव डालती है। यूरोस्लाविया के नाभिकीय भौतिकविद् प्रो. स्टीनवेन डेडीजर जैसे विद्वानों का कहना है कि विज्ञान को अपनी अंतरिक्षीय खोज की सफलता के लिए प्राचीन ज्योतिर्विज्ञान का अवलंबन लेना होगा। प्राकृतिक घटनाओं की अभी भी कितनी ही गुत्थियाँ ऐसी हैं जिसको सुलझा पाने में आज का विकसित विज्ञान भी असमर्थ है। आधुनिक विज्ञान अंतरिक्ष एवं सबन्यूक्लियर क्षेत्र में अपनी शानदार सफलता के बावजूद भी ब्रह्मांड संबंधी घटनाओं की व्याख्या कर पाने में अपनी अक्षमता व्यक्त कर रहा है क्योंकि इसका क्षेत्र सीमित है। इसके विपरीत ज्योतिष विज्ञान का सूर्य संबंधी ज्ञान-ब्रह्मांड की सूक्ष्म गतिविधियाँ और सूर्य के प्रभावों की जानकारी अंतरिक्षीय रहस्यों का उद्घाटन करने में पूर्णतया सक्षम है।

भौतिक विज्ञान के सिद्धाँतानुसार हर पदार्थ का कण इस ब्रह्मांड में एक-दूसरे के सापेक्ष गतिशील है। वे अपना स्थान भी परिवर्तित करते रहते है। फलतः जिस पर्यावरण में वे गतिशील रहते हैं वह बदलता रहता है और एक अविच्छिन्न ब्रह्मांडीय श्रृंखला में बँधे होने के कारण कणों का संदोह विशेष प्रभाव उत्पन्न करता है। जो अन्यान्य ग्रहों तथा पृथ्वी, चर, अचर पदार्थों एवं खगोलीय पिण्डों को प्रभावित करता है। इस तथ्य से परिचित होते हुए भी विज्ञान ग्रह-नक्षत्रों की गति स्थिति और प्रभावों की स्पष्ट जानकारी देने में असमर्थ है। उपरोक्त टिप्पणी देते हुए भौतिक विज्ञानी स्टीवेन डेडीजर का कहना है कि समग्र जानकारियों के लिए ज्योतिर्विज्ञान के विलुप्त ज्ञान को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है।

प्रख्यात आस्ट्रियाई वैज्ञानिक ‘एरनेष्ट मैक’ का मत है कि ब्रह्मांड के अनन्त कण एक दूसरे से जुड़े हुए हैं तथा उनमें परस्पर बड़ा घना संबंध है। सौर लपटें जो कि ग्रहों की निकटता एवं चंद्रमा की गति से किसी न किसी प्रकार से संबंधित है। पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार के व्यतिरेक उत्पन्न करती हैं। ग्रही योग पृथ्वी एवं जैविकीय चुम्बकत्व पर अपना प्रभाव डालते हैं। ग्रहों के असंतुलन से उत्पन्न होने वाली चुम्बकीय आँधी प्रकृति प्रकोपों एवं पृथ्वी के जीवधारियों में अनेकों प्रकार के मानसिक एवं नर्वस-सिस्टम के रोग उत्पन्न करती है। भू चुम्बकत्व में होने वाले हेर-फेर से मानवीय आचरण एवं स्वभाव भी अछूता नहीं रहता है।

रूस के विज्ञानवेत्ता चीनेवस्की ने इस क्षेत्र में लम्बे समय तक खोजबीन करने के उपराँत महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले हैं। उनका कहना है सौर-मण्डल की हलचलों से पृथ्वी के वातावरण एवं घटनाक्रमों का घना संबंध है। हर ग्यारहवें वर्ष सूर्य में आणविक विस्फोट होता है। इन वर्षों में पृथ्वी पर युद्ध और क्रान्तियाँ जन्म लेती है। प्रकृति-प्रकोप एवं महामारियाँ बढ़ती हैं।

जियोजार जी गिआरडी नामक वैज्ञानिक ने ज्योतिर्विज्ञान से प्रेरणा लेकर विज्ञान की नवीन शाखा को जन्म दिया-ब्रह्मांड रसायन शास्त्र (कॉस्मोबायोलॉजी) गिआरडी का कहना है कि समूचा ब्रह्मांड एक शरीर है इसका कोई भी घटक अलग नहीं वरन् संयुक्त रूप से एकात्म है। इसलिए कोई भी ग्रह कितना भी दूर क्यों न हो, पृथ्वी के जीवन को प्रभावित करते अवश्य है।

प्रो. ब्राउन का मत है कि पृथ्वी सौरमण्डल का ही एक सदस्य है और चंद्रमा उसका ही एक उपग्रह। वैज्ञानिक दृष्टि से पृथ्वी और चंद्र की उत्पत्ति सूर्य से हुई है। न केवल चंद्र और सूर्य वरन् मंगल, बृहस्पति, शुक्र और शनि की गतियाँ भी पृथ्वी को प्रभावित करती है। उन्होंने अन्तर्ग्रही प्रभावों को समानुभूति नाम दिया है।

तीसरा अन्तर्राष्ट्रीय विषुवतीय वायु गोष्ठी विज्ञान गोष्ठी के उद्घाटन के अवसर पर अहमदाबाद भौतिक अनुसंधानशाला के दो वैज्ञानिकों प्रो. के. आर. रामनाथन एवं डॉ. एस. अनंतकृष्णन ने यह घोषणा की है कि पृथ्वी सौर मण्डल की अभिन्न घटक है। आकाशीय पिण्डों के स्पंदन धरती को व्यापक रूप से प्रभावित करते हैं। अपनी एक खोज में इन वैज्ञानिकों ने पाया कि वायु मण्डल के डी क्षेत्र में शक्तिशाली एक्स किरणों के स्रोत स्कोर्पियो 11 के गुजरने से वनस्पति एवं जीव-जगत की हलचलें बढ़ जाती हैं तथा उनका हानिकारक प्रभाव पड़ता है।

परमाणु ऊर्जा आयोग के भूतपूर्व अध्यक्ष एवं विश्व के जाने-माने भौतिक विज्ञानी डॉ. साराभाई विभिन्न देशों के वैज्ञानिकों की एक गोष्ठी को संबोधित करते हुए कहते है कि सूर्य के अतिरिक्त भी अन्य आकाशीय पिण्डों का प्रेक्षीय प्रभाव धरती पर आता है यदि ज्योतिर्विज्ञान के सूत्रों को ढूँढ़ा जा सके और अन्तरिक्षीय ज्ञान में प्रयुक्त किया जा सके तो अनेकों महत्वपूर्ण जानकारियाँ हाथ लग सकती है।

रूसी वैज्ञानिक ब्लादीमोर देस्यातोय ने इस संबंध में व्यापक शोध कार्य किया है। उनका कहना है कि पृथ्वी पर समय-समय पर आने वाले चुम्बकीय तूफानों से धरती के निवासियों में स्नायविक एवं मनोरोगों की बहुलता देखी जाती है। धरती पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता या फ्रीक्वेंसी का बदलना आकाशीय पिण्डों के ऊर्जा प्रवाह के परिणाम हैं। अपनी आरंभिक खोजों में ब्लादीमोर ने यह पाया कि जब सूर्य पर एक विशेष प्रकार का ज्वाला प्रकोप (फ्लेयर) फूटते हैं तो धरती पर प्रचण्ड चुम्बकीय तूफान आते हैं। जिनसे प्रभावित तो सभी होते हैं पर कमजोर मनःस्थिति वाले व्यक्तियों पर उनकी प्रतिक्रिया अत्यधिक दिखायी पड़ती है। आत्महत्याएँ, हत्याएँ एवं असंतुलन के फलस्वरूप सड़क दुर्घटनाएँ अधिक होती है। इसी आधार पर वैज्ञानिकों का कहना है कि मस्तिष्कीय क्रिया-क्षमता का मूलभूत स्रोत अल्फा एनर्जी धरती के चुम्बकीय क्षेत्र से जुड़ा हुआ है और भू चुम्बकत्व का सीधा संबंध आकाशीय पिंडों से है। इसलिए मानवी जीवन अंतरिक्षीय घटनाक्रमों एवं शक्तियों से विलक्षण रूप से संबंधित है। अतएव अंतरिक्ष में पैदा होने वाली हर हलचल पृथ्वी, मानवी प्रकृति मन, बुद्धि चेतना को प्रभावित करती है।

खगोल शास्त्री पास्कल के शोध निष्कर्षों के अनुसार सूर्य और चंद्रमा के द्वारा होने वाले सशक्त खिंचाव न केवल समुद्रों-सागरों में ज्वार भाटे उत्पन्न करते है बल्कि जीवधारियों पर भी अपना प्रभाव छोड़ते है। पास्कल के अनुसार समस्त जीवधारी कम्पायमान है फिर विभिन्न ग्रहों से उत्सर्जित होने वाली ऊर्जा तरंगों में यह तथ्य अगले दिनों सप्रमाण पुष्ट होगा कि पृथ्वी पर विद्यमान जीवन का अंतरिक्ष के ग्रह-नक्षत्रों से घना संबंध है और अविज्ञात होते हुए भी सूक्ष्म आदान-प्रदान का क्रम चलता रहता है।

प्रौढ़ता की ओर बढ़ रहे आधुनिक विज्ञान के कदम शनैः-शनैः उन्हीं निष्कर्षों की ओर गतिशील है जिन्हें सहस्राब्दियों पूर्व भारतीय तत्ववेत्ता ज्योतिर्विदों ने पाया था। समूचा ब्रह्मांड एक चैतन्य शरीर है। सूर्य प्रभावित करता है, जिसका प्रत्येक स्पंदन हर घटक को प्रभावित करता है। जिसमें पृथ्वी और संबंधित वातावरण वनस्पति एवं जीवधारी भी सम्मिलित है। प्राचीन काल में ज्योतिर्विज्ञान इसी दिशा में अनुसंधान करने प्रमाण जुटाने और अंतर्ग्रही तथ्यों की खोज बीन करने में सचेष्ट था, जिसकी अनेकानेक उपलब्धियों से समय-समय पर मानवजाति लाभान्वित होती रहती थी।

विज्ञान का ध्यान भी इस ओर आकृष्ट हुआ है और अंतर्ग्रही टोह लेने का सिलसिला शुरू हुआ है। यह शुभ लक्षण है। फिर भी ज्योतिर्विज्ञान के बिना अंतरिक्षीय खोज-बीन करने में विज्ञान उतना सक्षम नहीं है। इस दिशा में प्राचीन भारतीय ज्ञान मार्गदर्शक की भूमिका निभा सकता है। आर्य भट्ट का ज्योतिष सिद्धाँत और उस पर नारदेव ब्रह्मगुप्त के संशोधन, परिवर्धन, भास्कर स्वामी का महाभास्करीय आदि दुर्लभ और अमूल्य ग्रंथ अनेकानेक रहस्यों एवं निष्कर्षों से भरे पड़े हैं। अपने पंच सिद्धाँतिक में वाराह मिहिर ने पॉलिश, रोमक, वाशिष्ठ सौर और पितामह नामक पाँच ज्योतिर्सिद्धाँतों का वर्णन किया है जो ज्योतिर्विज्ञान पर विस्तृत प्रकाश डालते हैं।

हो ज्योतिष विद्या का कलेवर भर है। इस कलेवर में समाहित वास्तविक तत्व ऊर्जा प्रवाहों का दैवीय विज्ञान है। जिसे समझकर न सिर्फ इनसे स्वयं को ऊर्जस्वी बनाया जा सकता है बल्कि वर्तमान और भविष्य को अपेक्षित दिशा में गढ़ा और ढाला जा सकता है।

हो ज्योतिष विद्या का कलेवर भर है। इस कलेवर में समाहित वास्तविक तत्व ऊर्जा प्रवाहों का दैवीय विज्ञान है। जिसे समझकर न सिर्फ इनसे स्वयं को ऊर्जस्वी बनाया जा सकता है बल्कि वर्तमान और भविष्य को अपेक्षित दिशा में गढ़ा और ढाला जा सकता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118