आँतरिक हो या बाह्य (kahani)

June 1993

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

रावण के कटे सिरों की बाढ़ को देखकर सारी वानरी सेना में दहशत भर गयी थी। असुर प्रबल होते जा रहे थे। इनकी प्रचंडता देखकर रीछ-वानर व्याकुल थे, तो देवगण भयभीत। समझ में नहीं आ रहा था, रावण का पैशाचिक आतंक किस तरह समाप्त होगा। अपने पराक्रम को असफल होते देखकर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम भी चिंतित थे। तभी अपरिमित तेज को धारण किये ब्रह्मर्षि अगत्स्य का आगमन हुआ। आते ही उन्होंने राम के मस्तक पर हाथ फेरते हुए कहा-निराश मत हो वत्स! मैं तुम्हें शक्ति और सफलता के स्रोत भगवान आदित्य की रहस्यमयी उपासना की प्रक्रिया बतला रहा हूँ उसे धारण करो।

महर्षि ने आदित्य हृदय स्रोत और उसकी प्रयोग विधि समझाई। भगवान सूर्य की शक्ति जैसे समूची सेना में प्रवाहित होने लगी। सूर्य की कृपा का बल पाकर भगवान राम सूर्य की भाँति प्रज्वलित हो उठे। असुरता ध्वंस होने लगी, रावण की एक भी छल विद्या न चली उसका समूल नाश हो गया। भगवान श्री राम ने अपने इस अलौकिक कार्य के रहस्य को बताते हुए ब्रह्मर्षि वशिष्ठ से कहा-असुरता आँतरिक हो या बाह्य इसे पूरी तरह समाप्त कर सकना सूर्य की कृपा से ही संभव है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118