असीम ऊर्जा का महासागर है-हमारा सूर्य

June 1993

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न्यूमैक्सिकों में अलबुकर्क के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा यन्त्र बनाया है, जो सौर ऊर्जा को एकत्र करता है। शोध कर्मियों ने अपने पहले प्रयोग में ही 4.5 मीटर लम्बी 1.8 मीटर चौड़ी व 1/4 इंच मोटी इस्पात की चादर को गला कर रख दिया। यह प्रयोग बहुमूल्य उपकरणों से सुसज्जित जिस प्रयोगशाला में किया गया, उससे कहीं अधिक अच्छी प्रयोगशाला मनुष्य का अपना शरीर है। यदि इसमें सोई पड़ी शक्तियों को पहचाना और विकसित किया जा सके तो बिना किसी याँत्रिकी-भौतिकी के भी अपार शक्ति संचय और उसके द्वारा विलक्षण चमत्कार तक दिखाए जा सकते हैं।

सितम्बर 1977 में एवरेस्ट विजेता एडमंड हिलेरी ने एक अभियान “समुद्र से आकाश तक” प्रारंभ किया जिसमें उन्होंने कलकत्ता से गंगा मार्ग द्वारा तक की यात्रा संपन्न की। जिस समय हिलेरी की मोटर बोट इलाहाबाद पहुँची उस समय एक 67 वर्षीय वृद्ध हठयोगी ने उनकी नाव को एक स्थान पर ही 10 मिनट तक रोके रखा। हजारों प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार दो तीन हार्स पावर की माटर ने पूरा जोर लगाया बोट बुलबुले छोड़ती रही पर टस से मस न हो सकी। न्यूमैक्सिको के प्रयोग में तो सूर्य किरणों को केन्द्रित करने के लिए कम्प्यूटर नियन्त्रित दर्पण प्लेटें( हैलिपोस्टैट्स) प्रयुक्त की गई थी। जिससे दो मिनट में तीन हजार डिग्री फारेनहाइट ताप 1.8 मेगावाट विद्युत के बराबर ऊर्जा उत्पन्न हुई और उसने इस्पात की चद्दर को गला दिया। पर आत्म शक्तियों को केन्द्रित करने और उसका लाभ उठाने के लिए न किसी ऐसे जटिल उपकरण की आवश्यकता होती है न साधनों की। जिस तरह आतिशी शीशे में किरणों को एकाग्र कर उन्हें अकूत बना लिया जाता है, उसी प्रकार प्राण शक्ति के संलयन से वह अद्भुत शक्ति मनुष्य शरीर में ही प्राप्त कर ली जाती है।

जिस तरह हाइड्रोजन सर्वत्र बिखरा पड़ा है और किसी स्थान विशेष में दस करोड़ सेन्टीग्रेड ताप पैदा कर दे तो इस हाइड्रोजन की संलयन प्रक्रिया वहाँ स्वयमेव प्रारंभ हो जाएगी। उस स्थान पर कृत्रिम सूर्य पैदा हो जाएगा। जर्मनी के वैज्ञानिक इस संदर्भ में प्रयत्नशील है, भले उनकी कोशिश अभी पूर्णतया सफल न हो पाई हो। इसलिए अभी ऊर्जा का यह अकूत भंडार हमारे आस-पास बिखरा होने पर भी उसका उपयोग नहीं पाता। मनुष्य में से प्रत्येक के पास भी परमात्मा ने इस तरह की शक्तियाँ दी है। पर इतनी प्रचण्ड गर्मी वाला मनोबल या संकल्पबल किन्हीं बिरलों में ही जाग्रत हो पाता है जो कर लेते है वे योग साधनाओं विचारों आदि के मूर्तिमान शक्ति पुँज चलते फिरते बिजली घर बन जाते हैं और उससे वह सैकड़ों लोगों का भला कर सकते है। मात्र

येन सूर्य ज्योतिषा बाधसे तमो जगच्च विष्वसुदियर्षि भानुना। तेना स्मद्विष्वामनिरामनाहुतिमपामीवामय दुर्ष्यज्यं सुव॥ (ऋ 10/37/4)

हे सूर्यदेव। आप अपनी जिस ज्योति से अंधेरे को दूर करते और विश्व को प्रकाशित करते हैं, उसी ज्योति से हमारे पापों को दूर करे, रोगों और क्लेशों का नष्ट करें तथा दारिद्रय को भी मिटाएँ।

विचारों की ही एकाग्रता मनुष्य को कुशाग्र बुद्धि, साहित्यकार, इंजीनियर, वैज्ञानिक, और न जानें क्या बना देती है। आत्म शक्ति संचय के परिणामों की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती।

प्रकारान्तर से प्राप्त ऊर्जा शक्ति चाहे वह प्राकृतिक रूप में हो या उसे साधन रूप में पाया गया हो, सूर्य ही चिर संग्रहित शक्ति होती है। सँभाल कर रखे गए पदार्थ कभी भी काम आ जाते हैं, इस तथ्य में यही सिद्धांत कार्य करता प्रतीत होता है।

भू–ताप विशेषज्ञ सी. गुलेमीन ने कुछ वर्षों पूर्व पेरिस में आयोजित एक ऊर्जा सम्मेलन में अपने निबंध।

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में बताया कि अकेले पेरिस के इलाके में 1500 से 2000 मीटर गहरे कुएँ खोदे जाये तो वहाँ उपलब्ध गर्म जल से इतना अधिक ताप मिल जायेगा, जितने के लिए एक करोड़ अस्सी लाख टन ईंधन जलाना पड़ेगा। पेरिस में मेलन नामक स्थान में 100 क्यूबिक मीटर प्रति घण्टे की गति से 70 डिग्री सेन्टीग्रेड तक गर्म पानी निकाल कर लगभग 1900 घरों को पहुँचाया जाता है।

हिमालय के अत्यन्त शीत प्रदेश स्थान-स्थान पर ऐसे कुण्ड उपलब्ध है, जिनमें 350 डिग्री सेन्टीग्रेड तक गर्म जल उपलब्ध है। रूस के उत्तरी ध्रुव क्षेत्रों में भी पृथ्वी के भीतर के गर्म जल का उपयोग करके दो करोड़ टन ईंधन की बचत की जाती है। टस्केनी के लार्डरेल्लो में एक ऐसा कारखाना चलाया जा रहा है। जिसमें इस भू–ताप से ही 390 मेगावाट शक्ति की भू-ताप बिजली तैयार की जाती है। कैलीफोर्निया में पहले ही दस भू ताप कारखाने है। इन सबसे 1000 मेगावाट बिजली तैयार की जाती है। जापान, मैक्सिको, आइलैण्ड न्यूजीलैण्ड, फिलीपाइन्स आदि में भी ऐसे भू-भाग कारखाने है। यह समग्र शक्ति और कुछ नहीं सूर्य तथा वर्षों से धरती के सघन अन्तराल में संचित की हुई है। उसका लाभ आज के मनुष्य समाज पूर्वजों द्वारा संग्रहित संपत्ति के रूप में लेता है। फ्राँस ने राँस नदी पर समुद्री ज्वार से 240 मेगावाट बिजली बनाने का कारखाना खड़ा किया है। वह भी सूर्य की ही उधार दी हुई सामर्थ्य है।

अपने देश की धरती में अनुमानतः 140 अरब टन कोयला है। उससे अगले दो सौ वर्ष तक 63.5 करोड़ टन प्रति वर्ष की दर से ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है, वह भी सूर्य की चिर संचित पूँजी है। अनुमान है कि यह कुछ करोड़ वर्षों से संग्रहित शक्ति है जो कोयले में प्रसुप्त और शक्ति की माप भी असंभव है।

बरसात के दिनों में बादल अपने आप हवाई समुद्र बन जाते और सारी पृथ्वी को जल से सराबोर कर देते है। यह बादल उस भाप का परिणाम है, जिसे सूर्य अपनी गर्मी से प्रति सेकेण्ड 1 करोड़ 60 लाख टन पानी को पका कर भाप में बदलता है। सूर्य से पृथ्वी को मिलने वाली ऊर्जा शक्ति का दो तिहाई भाग इसी कार्य में प्रयुक्त होता है। नैसर्गिक शक्तियाँ विश्व व्यवस्था का भार इसी कार्य में प्रयुक्त होता है। नैसर्गिक शक्तियाँ विश्व व्यवस्था का भार कितने विवेकपूर्वक चलाती है यह इसी तथ्य से प्रकट है। यदि सृष्टि की प्रक्रिया किसी एक वर्ष ही रुक जाय तो न केवल मनुष्य जाति उन्नत उससे पड़ने वाले आकाल से सारा जीवन सुधर हो सकता है। कहाँ तुरन्त कितनी आवश्यकता है, मैं भविष्य के लिए संग्रह की आवश्यकता है? पृथ्वी में शीत-ताप का संतुलन किस प्रकार रखने का है? इस संबंध में प्रकृति की चिन्तन दृष्टि विवेकपूर्ण, सूक्ष्म और दूर दृष्टि न रहे तो यहाँ जो कुछ भी सौंदर्य और जीवन व्यवस्था दिखाई देती है कुछ भी न रहे। जो लोग अपने में भी यह दृष्टि और दूरदर्शिता बनाये रखते है। वे न केवल स्वयं सम्मान और ट और दूरदर्शिता बनाये रखते है। वे न केवल स्वयं सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त करते है अपितु अपने परिवार परिजनों को भी प्रगति पथ पर अग्रसर करने में सफल होते है।

ऐतरेय ब्राह्मण (33/3/5) में इन्द्र ने रोहित को कर्म सौंदर्य का उपदेश देते हुए कहा है कि सूर्यस्य पष्य श्रेयाँर्ण सो न तन्द्रयते चरंष्चरैवेति। देखो सूर्य का श्रेष्ठत्व इसीलिए है कि वे लोकमंगल के लिए निरन्तर गतिशील रहते हुए तनिक भी आलस्य नहीं करते है, अतः सूर्यदेव की भाँति कर्तव्य पथ पर सदैव चलते रहो।

सूर्य शक्ति का यह विशाल परिमाण और उसकी सर्वव्यापक सक्रियता जगत में किसी भी वस्तु का अभाव नहीं है। यदि कुछ है तो वह मात्र मनुष्य का अज्ञान है उसको जड़ता है। अज्ञान और जड़ताएँ आगे बढ़ने नहीं देती, संकीर्णता में ही उलझाए रहती है। ऊर्जा के लिए ईंधन और कोयला स्थूल साधन है। बड़े परिमाण में मिले तो भी थोड़ी शक्ति मिलती है। उससे आगे भू-ताप है, उससे भी बढ़कर विद्युत शक्ति। इससे भी यदि आवश्यकताएं पूर्ण न हो तब फिर सूर्य शक्ति का अजस्र भंडार है। शक्तियों के एक से एक बुद्धि को चकरा देने वाले साधन प्रकृति के अन्तराल में भरे पड़े है। उन्हें यह करता एक क्लिष्ट प्रणाली हो सकती है यह वैज्ञानिकों ने वह तथ्य सम्मुख ला दिए है जिनसे शक्ति चले जाने की आशंका का पूर्ण निराकरण हो गया है। 61

सूर्य पृथ्वी से 149000,00,00 किलो मीटर दूर है। इतनी दूरी और पृथ्वी के क्षेत्रफल के अनुपात से वह अपनी कुल ऊर्जा का मात्र- 0.000.00.0005 वाँ अंश ही पृथ्वी को देता है। किन्तु यह शक्ति भी इतनी विशाल है कि उसकी बराबरी 2 अरब अणु विद्युत घरों से प्राप्त बिजली ही कर सकती है। उसे यदि विद्युत शक्ति में बदला जा सके तो 1 खरब 73 अरब मेगावाट विद्युत भार के बराबर होती है। अनुमान है कि प्रति वर्ग मीटर एक किलोवाट विद्युत भार के बराबर ताप पृथ्वी को मिलता है। इस विशाल परिमाण का अनुमान करना भी कठिन है। हमें यह अनुदान अजस्र रूप से मिलता रहता है। फिर कितना दुर्भाग्य है कि हम शक्ति-शक्ति चिल्लाते रहते है। जल में मीन पियासी वाली कहावत चरितार्थ करते है।

सूर्य की यह अजस्र ऊर्जा हमारा प्राण है। समस्त जीव-जगत और वृक्ष वनस्पति उसी से जीवन धारण करते है। शैवाल से लेकर सभी पौधे सूर्य की ऊर्जा सोख कर फोटो सिंथेसिस की प्रक्रिया संपन्न करते है और कार्बनडाइ आक्साइड तथा पानी से हमारे लिए शाकाहार तैयार करते है। पृथ्वी के पाँच अरब से अधिक लोग और इनसे करोड़ों गुना अन्त जीव-जन्तु भारतीय तत्वदर्शन की इस मान्यता का ही प्रतिपादन करते है कि सूर्य हमारी आत्मा है। तात्विक दृष्टि से हम उसी दिव्य ज्योति के प्रकाश कण है अतएव हमें उनकी ओर उन्मुख रहना उन्हें धारण किए रहना चाहिए। उनके न रहने पर फूल खिलना बन्द हो जाता है रोगाणु पनपने लगते है। हमारे जीवन में व्यास कषाय-कल्मषों का निवारण और प्रसन्नता का विकास इसी आधार पर संभव है कि हम उस आत्म तत्व को विस्मृत न करें।

किसी समय इसे कल्पनातीत मानते थे कि सूर्य शक्ति को पकड़ा, बाँधा और बड़े कार्यों में प्रयुक्त किया जा सकता है। किन्तु जब नेशनल फिजिकल लैबोरेटरी की स्थापना की गई, उसने सूर्य ऊर्जा को बिजली में बदलने वाला सोलह सेल बनाकर उसे संभव बना दिया। फ्राँस के माउंट लुई और ओडिलो में रगेर भट्टियाँ बनाई गई। इनमें एक काला रोगन पुता रहता है।

जो शक्ति को सोख लेता है। पानी गर्म करने के यन्त्र, खाना, पकाने, कमरा गर्म रखने के लिए छोटा सौर ऊर्जा यन्त्र इसी आधार पर बने है। इजराइल में खारे पानी को इसी तरह शुद्ध किया जाता है। भविष्य में तो वैज्ञानिकों की योजना, सारे समुद्री जल को मीठा बनकर जल समस्या निवारण की है। शक्ति एक ही है उसका जहाँ भी उपयोग करें वही चमत्कारी सत्यपरिणाम उपस्थित हो सकते है।

दुनिया भर में यह प्रयोग चल रहे है। रूस ने आर्मेनियाँ घाटी में बिजली घर बनाया है जिसमें 1300 दर्पण ऊर्जा संग्रह करते है। यह बिजली घर पाँच एकड़ में है। 130 फुट ऊंची बुर्जी पर रखे बॉयलर पर सूर्य किरणें डालकर 25 लाख किलोवाट प्रतिघण्टे पैदा की जाती है। अब तक लोहे से 2800 डिग्री, टंगस्टन से 6100 डिग्री तथा किसी भी अच्छी से अच्छी ताप निरोधक धातु 6900 डिग्री पर भाप बनकर

ईश्वर निंदा- प्रशंसा से परे है। न उसे किसी का स्तवन सुनने में रुचि है न उपहार पाने की जरूरत। वह सिर्फ यह देखता है कि भक्त ने अनुशासन पाला या आडम्बरों के खेल खिलौनों से उसे फुसलाया।

उड़ जाती है। किन्तु अब सूर्य से 8000 डिग्री तक की ताप शक्ति मिल जाने से सर्वत्र औद्योगिक क्रांति की संभावनाएँ बढ़ गई है। विश्व के वैज्ञानिक इस दिशा में प्रयत्नशील है।

सौर शक्ति के द्वारा भौतिक उपलब्धियाँ ही नहीं आत्मिक उपलब्धियाँ भी अर्जित की जा सकती है। आवश्यकता-आत्मिक शक्तियों पर विश्वास नहीं, उनके विकास या जटिलता से सिद्धि पाने तक जूझते रहने के साहस की होती है। बड़ी बारीकी से आत्म निरीक्षण का साइज है। सौर ऊर्जा के संग्रह के लिए दर्पण वाले यंत्र लगते है। अपने मन को भी दर्पण बनाकर उसमें झाँककर मलीनताओं को निकालना पड़ता है अन्यथा प्रकाश के साथ अंधकार भी छनकर जाता रहे और शक्ति यंत्र निमार्ण करने पर ही सौर चेतना के साथ एकात्मता का दिव्य लाभ मिल पाता है।


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