सौर कलंक-दैवी प्रकोप एवं महाक्राँति

June 1993

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पृथ्वी को जीवन-सूर्य से प्राप्त हुआ है। उसी की रोशनी और गर्मी से धरातल पर अगणित गतिविधियाँ चलती और अनेकों सम्पदायें उत्फा होती है। सौर मंडल के अन्य ग्रहों-उपग्रहों की अपेक्षा धरती के वातावरण, वनस्पति जगत तथा प्राणि समुदाय को सूर्य ही सबसे अधिक प्रभावत करता है। यह धरती का जीवनदाता प्राण है। उसके उदय-अस्त का, प्रभात-मध्याह्न का, पृथ्वी की उसके निवासियों की स्थिति पर कितना और क्या प्रभाव पड़ता है, इसे दैनिक जीवन की घटनाओं से जोड़कर हर कोई सहज ही अनुभव कर सकता है। ऋतुओं के प्रभाव-परिवर्तन में सूर्य की सामान्य परिस्थितियाँ उत्पन्न होती है और सन्तुलन बिगड़ता है। इससे न केवल धरती की अनेक परिस्थितियाँ प्रभावित होती है, दीन प्राणियों की विशेषतया मनुष्यों की मनःस्थिति में भी अप्रत्याशित रूप से उथल-पुथल मचती है और वे अनिच्छित रूप से कुछ ऐसा सोचने और करने लगते हैं जिसकी कि कभी कल्पना तक नहीं की गयी थी।

इन दिनों सूर्य से कुछ ऐसी ही प्रक्रियायें उभर रही हैं जो घटना की दृष्टि से दूरवर्ती होने के कारण सामान्य कही जा सकती हैं, किन्तु उनकी परोक्ष प्रतिक्रिया ऐसी है जिससे जन-जीवन असाधारण रूप से प्रभावित होता है उनमें से एक है सौर-कलंकों-सौर स्फोटों की अभिवृद्धि, जिनका पृथ्वी के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता बताया गया है।

अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिकों के अनुसार जब भी सूर्य पर इस तरह ‘सनस्पाँट्स’ या कलंक-धब्बे उभरते हैं तो उसकी स्थिति असामान्य हो जाती है। उसके अन्तराल में भयंकर आँधी-तूफान उठते हैं और लाखों मील के दायरे में अग्नि ज्वालाएँ लपलपाती है तथा विद्युतीय-चुम्बकीय तरंगों का निर्माण इतनी तीव्रता के साथ होता है कि उससे सारा सौर-मंडल प्रभावित हो उठता है। पृथ्वी और सूर्य के बीच आदान-प्रदान का विशिष्ट सूत्र संबंध जुड़ा हुआ है, इसलिए उस पर इस विषमता का प्रभाव भी अधिक पड़ता है। सामान्य स्थिति बदल जाती है और उत्पन्न विपन्नता ऐसे अदृश्य प्रभाव उत्पन्न करती है जिनसे हित कम और अहित अधिक होता है। ऋतुयें ठण्डी पड़ जाती हैं, भारी हिमपात होते हैं, आँधी, तूफान और चक्रवात आते हैं तथा दारभार ऊँचा हो जाता है। ओजोन परत में आक्सीजन के रूप में ऊर्जा आ जाती है। सूर्य-कलंकों का उभरना भारतीय ज्योतिष शास्त्र में भी परिवर्तन का परिचायक माना गया है जो शुभ-अशुभ कुछ भी हो सकता है। इस संदर्भ में विज्ञान भी पूर्णतया सहमत है।

सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक अलेक्जेंडर मारषेक ने अपनी कृति’ अर्थ एण्ड होराइजन” में लिखा है कि भले ही पृथ्वी पर घटने वाली घटनाओं का सूर्य के अन्तर्विग्रह से प्रत्यक्ष संबंध न जोड़ा जा सके किन्तु सांख्यिकीय दृष्टि से उनका पृथ्वी से संबंध निर्विवाद सिद्ध हो गया है। पाया गया है कि जब-जब यह सौर सक्रियता बढ़ती है वर्षा तथा तूफानों की बाढ़ आती है, वनस्पति में वृद्धि, ग्रीष्म की अभिवृद्धि के साथ-साथ कहीं-कहीं अकाल, सड़क दुर्घटनायें, वायुयान दुर्घटनायें युद्ध तथा रक्तपात बढ़ता है। इस अवधि में न केवल भीषण भू–चुंबकीय उत्पाद अर्थात् भूकम्प, ज्वालामुखी विस्फोट होते हैं, वरन् मेरु प्रकार की असामान्य दिव्य चमक भी देखने में आयी है। इसका भी हमारे जीवन पर प्रभाव पड़ता है। अमेरिका के मौसम विज्ञानी डॉ. वेक्सलर ने तो इन्हें मनुष्य के अन्तरंग जीवन में बड़े गहरे एवं विलक्षण स्तर के हस्तक्षेप की संज्ञा दी है।

सूर्य में होने वाले परिवर्तनों का पृथ्वीवासियों पर क्या प्रभाव पड़ता है? यह जानने के लिए रूस के मूर्धन्य वैज्ञानिक चिजोब्स्की ने विगत 400 वर्षों के इतिहास और सूर्य की पिछली गतिविधियों का गहन अध्ययन किया है। उन्होंने निष्कर्ष निकाला है कि विविध प्रकार की महामारियों एवं क्राँतिकारी परिवर्तनों का सौर कलंकों-(सन स्पाँट्स) से गहरा संबंध है। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि प्रत्येक ग्यारह वर्ष पश्चात् यह धब्बे गहरे या उथले रहते हैं, उतनी अवधि तक उसी अनुपात से पृथ्वी पर हलके भारी परिवर्तन या उत्पाद होते हैं। इसके अतिरिक्त सूर्य-कलंकों के कारण पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र भी लड़खड़ाने गलता है, रेडियो संचार में बाधा आती है तथा मौसम प्रभावित होता है। ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक माइकेल्सन का तो यहाँ तक कहना है कि इन परिवर्तनों से पृथ्वी विशेष अवसरों पर फूलती और पिचकती भी है जिससे भूकंप जैसे प्राकृतिक उपद्रव उठ खड़े होते हैं। प्रसिद्ध डॉ. एन्ड्र. ई. डगलस के अनुसार इन सौर न केवल मनुष्य एवं जीव जन्तुओं पर पड़ता वनस्पतियां भी इनसे प्रभावित होती हैं। प्रति ग्यारह वर्ष पश्चात् वृक्षों में बनने वाली वार्षिक वलय

64-(एन्युअल रिंग) कुछ मोटी हो जाती है। संभवतः ऐसा इसलिए होता है कि दिनों सूर्य धब्बों से उत्पन्न सूक्ष्म विकिरण से बचने के लिए प्रकृति उस वर्ष वृक्षों की खाल मोटी कर देती है।

अमेरिकी परमाणु ऊर्जा आयोग की अलकुकर्क स्थित साँटिया लैबोरेटरी के वैज्ञानिकों ने सौर प्रभावों पर गहन अनुसंधान किया है। उन्होंने अपराधों एवं दुर्घटनाओं से संबंधित बीस वर्षों के आँकड़े एकत्रित किये और उनका अध्ययन किया, तदुपरान्त वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि सौर-कलंक जब अपनी चरम स्थिति में होते हैं तो दुर्घटनाओं एवं अपराध प्रायः छः गुना अधिक बढ़ जाते है। न्यूयार्क के डॉ. बेकर ने भी पाया है कि तीव्र सौर सक्रियता के दिनों में मानसिक रोगियों की संख्या में असाधारण रूप वृद्धि होती है। इस संदर्भ में प्राचीन भारतीय ज्योतिर्विदों ने बहुत पहले ही यह खोज कर ली थी कि सूर्य मंडल में होने वाले विस्फोटों का क्या स्वरूप है? उनके क्या कारण है। तथा पृथ्वी के चराचर पर उससे क्या प्रभाव पड़ता है। महर्षि गर्ग, पाराष, कश्यप, देवल, नारेन्द्र तथा वशिष्ठ आदि में इन विस्फोटों के बारे में चेतना के स्त्र पर पर्याप्त अनुसंधान किया था।

अन्तरिक्ष विज्ञानी इन दिनों सौर मंडल तथा उससे ऊपर की ब्रह्मांडीय क्षेत्र का पर्यवेक्षण करने में निरत हैं। उनका कहना है कि वर्तमान सौर सक्रियता पृथ्वी के लिए संकटापन्न परिस्थितियां उत्पन्न करने वाली है। सभी जानते है कि पृथ्वी की निज की जितनी शक्ति और संपदा है, उसे उसने कही अधिक अनुदान लेकर अपना गुजारा करना पड़ता है। सौर ऊर्जा उसका प्राण है और इसी से आबद्ध है धरती का जीवन इस तथ्य का अति प्राचीनकाल से ही स्वीकारा गया है। मिस्र में सिंचाई के समय यह त्यौहार प्राचीनकाल से मनाया जाता है। यह उस दिन मनाया जाता है जिस दिन जुलाई माह में नी नहीं में एकाएक बाढ़ आ जाती है। लम्बे अध्ययन के बाद यह पाया गया कि बाढ़ ठीक उसी दिन आती है जिस दिन सूर्योदय के ठीक समय लुब्धक नामक तारा दिखाई देता है। इसका अर्थ हुआ कि नील नदी का परिवर्तन किसी न किसी तरह सौर प्रक्रिया से जुड़ा हुआ है।

अध्यात्मवेत्ता दिव्यदर्शियों का कहना है कि कालचक्र के अनुसार अगले दिनों बहुत अधिक तीव्र और शीघ्रातिशीघ्र परिवर्तन होंगे। किन्हीं अज्ञात कारणों से अगले दिनों नियमों को तोड़कर सूर्य पृथ्वी में परिवर्तन लायेगा। इसमें वृष्टि, अनावृष्टि, सूखा, अकाल, विश्वयुद्ध, महामारियों के प्रकोप ही नहीं होंगे, वरन् महाक्राँतियों का नया दौर भी शुरू होगा और मानवी दुर्बुद्धि पर अंकुश लगेगा। सूर्य केवल भौतिक जगत का ही प्राण नहीं, वरन् प्राणियों की प्राण चेतना का भी स्वामी है। ऋषियों ने उसे त्रयीविद्या कहा है अर्थात् उसमें स्थूल तत्व-जिसे शरीर बनते है, प्राण-जिनसे चेतना आती है, और मन जो चेष्टायें प्रदान करता है-तीनों तत्व विद्यमान है। गायत्री महामंत्र द्वारा उसी की शक्ति का संदोहन मानवी चेतनात्मक उत्कर्ष तथा समष्टिगत परिवर्तन के लिए पिछले कई वर्षों से किया जाता रहा है। इस प्रयोग को अगले दिनों और गतिशील किया जाना है।


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