मैं अंतरिक्ष के रहस्य जानूँगा। छोटे से बालक की जिद पर माता पिता झुँझलाये। पड़ोसियों ने मजाक बनाया। पर बालक पर जैसे इन सबका कोई असर न था। वह सारे दिन ग्रह पिण्डों-नक्षत्रों के संबंध में न जाने कितनी अजीब-अजीब बातें किया करता। सभी सगे संबंधी परेशान थे। उन दिनों टेलिस्कोप जैसे वैज्ञानिक साधन भी न थे कि वे बालक की कुछ मदद कर पाते।
सारे दिन वह सूर्य की ओर टकटकी लगाये बैठा रहता। कभी उसके मुख से प्रार्थना के कातर स्वर फूट पड़ते। समय बीतता गया उसकी प्रार्थना प्रगाढ़ होती गयी। एक दिन सभी हतप्रभ रह गये जब उसने सूर्यदेव की कृपा से प्राप्त दिव्य दृष्टि के सहारे यथार्थ खगोल गणनाएँ करनी शुरू कर दीं। कहते है भगवान सूर्य प्रथम बार उसकी निष्ठा, निर्भयता, की परीक्षा लेने वाराह के रूप में आये। सूर्य (मिहिर) का वाराह के प्रथम दर्शन पाने के कारण बालक का नाम वाराह मिहिर हो गया। बिना किसी यंत्र उपकरण की सहायता से की गई उनकी खगोल गणनाएँ आज के बहुमूल्य उपकरणों से सुसज्जित प्रयोगशालाओं में काम करने वाले खगोल विज्ञानियों को हतप्रभ किये बिना नहीं रहती।