देवः किं बान्धवः स्यात्प्रियसुहृदधवाँऽऽचार्य ओहोस्विदयों । रक्षावर्क्षुन दीपो गुरुरुत-जनको जीवितं बीजमोक्षः ॥
एवं निर्णीयते यः क इव न जगताँ सर्वथा सर्वदाऽ सौ । सर्वाकारोपकारी दिशतु दशशतमीषुरभ्यर्थितं नः ॥
जिन भगवान सूर्यनारायण के विषय में यह निर्णय हो नहीं पाया कि वे वास्तव में देवता हैं या बाँधव, प्रिय मित्र है, आचार्य हैं अथवा अर्च्य स्वामी। वे क्या हैं, रक्षा नेत्र है? अथवा विश्व प्रकाशक दीपक। धर्माचार्य गुरु हैं अथवा पालनकर्ता पिता। प्राण हैं या जगत के प्रमुख आदि कारण बल हैं अथवा और कुछ। किंतु इतना निश्चय है कि सभी कालों, सभी देशों और दिशाओं में वे कल्याण करने वाले हैं। वे सहस्ररश्मि (भगवान सूर्य) हम सबका मंगल मनोरथ पूर्ण करें।