क्षमता और मेधा का भण्डार (kahani)

August 1993

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बात उन दिनों की है जब महाभारत युद्ध चल रहा था शाम हो चुकी थी। कृष्ण और अर्जुन शिविर में विश्राम कर रहे थे। मौन, अर्जुन ने भंग किया, पूछा -“महाराज। लोग मुझे बहुत बड़ा धनुर्धर और शास्त्रज्ञ समझते हैं, पर मुझे ऐसा लगता नहीं कि मैं इतना कुछ हूँ। ”

भगवान मुस्कुराते हुए बोले -“ वस्तु स्थिति तो कुछ ऐसी ही है, पर जब तुम मेरे काम के लिए उद्यत होते हो, तो वह संग कुछ संभव होता चला जाता है, जो सामान्य स्थिति व परिस्थिति में तुझ जैसे योद्धा के लिए असंभव बना रहता है। “

“ फिर उसमें अपना क्या भला हैं? “ अर्जुन ने दूसरा प्रश्न किया।

केशव बोले “इहलोक में यशस्वी बनोगे और परलोक में सद्गति मिलेगी, क्योंकि तुम भगवान के पुनीत कार्य में सहभागी रहें हो। ”

अर्जुन का समाधान हो चुका था।

संतरा रस से भरा हो तो कितना सुन्दर लगता है, पर यदि उसका रस निचोड़ लिया जाय तो खोखले छिलके को देखने तक का मन नहीं करता।

पेड़ के तने को गोद दिया जाये तो उस स्थान पर गोंद जैसे फफोले उठने लगेंगे। थोड़े गोंद पाने का तात्कालिक लाभ तो है पर साथ ही पेड़ की बढ़वार रुक जाने और सूखने लगने का खतरा भी स्पष्ट है।

खेत की मेंड़ बँधी रहे और पानी रुका रहे तो फसल अच्छी पैदा होगी, पर यदि मेंड़ जहाँ तहाँ से टूटी हो तो और वर्षा का पानी बिना रुके निकलता रहें तो नमी के अभाव में फसल चौपट होना निश्चित है।

किसी मकान के नल में ऊपर और नीचे टोंटी तो हो, पानी वाली खुली रखने से पानी नाली में बहता रहेगा और ऊपर वाले किरायेदारों को प्यास से मरना पड़ेगा मस्तिष्क और ज्ञानेन्द्रियाँ ऊपर के किरायेदार हैं, यदि यौनाचार से जीवन रस बेहिसाब बहाया जाय तो फिर आँख, कान आदि की क्षमता और मेधा का भण्डार असमय में ही चूक जायेगा।


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