हमें हर बार पाओगे (kavita)

August 1993

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भले हो दूर पर माँ के हृदय का, प्यार पाओगे, करोगे ध्यान जब भी तुम, हमें हर बार पाओगे,

कभी बेचैन हो मन तो, हमें तुम याद कर लेना, हृदय में एक पल को भी न तुम, अवसाद भर लेना,

हमारे तुम हृदय अंतःकरण के, पास हो हरदम, हमारी स्नेह क्षमता पर, तुम्हें विश्वास हो हरदम,

हरेक तूफान में अपना, सबल आधार पाओगे, करोगे ध्यान जब भी तुम, हमें हर बार पाओगे,

हमारे द्वार तुम सबके लिए, हरदम खुले होंगे, हमारे स्वर वहाँ भी, हवाओं में घुले होंगे,

हमारी शक्ति तुमको हर निमिष, साहस बँधायेगी, अगर आलस्य ने घेरा, तभी तुमको जगायेगी,

भँवर में नाव जब होगी, तभी पतवार पाओगे, करोगे ध्यान जब भी तुम, हमें हर बार पाओगे,

तुम्हारे भाव हम, आदर्श पथ की ओर खींचेंगे, हृदय के प्यार से, सूखे मनों को नित्य सीचोगे,

जगत में संगठित अब, सज्जनों की शक्तियाँ होगी, मनुजता के दामन की अब, न पुनरावृत्तियां होंगी,

समूचे विश्व में अपना सगा, परिवार पाओगे। करोगे ध्यान जब भी तुम, हमें हर बार पाओगे।

संदेशा साथ हम लेकर, यहाँ गुरुग्राम से आये, गुरु की ज्ञान गंगा हम लिए, सुरधाम से आये,

उसी भागीरथी का जल, धरित्री पर बहाना है, मनुज की सो गयी, संवेदना को फिर जगाना है,

सभी में चेतना भरती, मधुर रसधार पाओगे। करोगे ध्यान जब भी तुम, हमें हर बार पाओगे।

तुम्हें गुरु ज्ञान की, जलती मशालें थामनी होगी, न धरती पर मनुजता अब, दुखी या अनमानी होगी,

तुम्हीं की देवसंस्कृति की, ध्वजा ऋषि ने थमायी हैं, उठो फिर श्रेय पाने की घड़ी, अनमोल आई हैं,

बढ़ो आगे, नये युग में, सुखद संसार पाओगे। करोगे ध्यान जब भी तुम, हमें हर बार पाओगे।


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