व्यंग भरा अट्टहास (kahani)

August 1993

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सुकरात को जब मृत्यु दण्ड की सजा सुनाया गया, तो उसके कुछ विश्वस्त मित्रों ने उन्हें बंदी ग्रह से निकाल ले जाने का निश्चय किया। इसके लिए सारी योजना गुप्त रूप से तैयार का ली गई, किन्तु जब इसके बारे में उनको बताया गया, तो उन्होंने वैसा करने से इन्कार कर दिया। बहुत पूछने पर इतनी ही कहा, कि यदि मैं तुम्हारे साथ भाग गया तो सारी दुनिया मुझे यही कह कर कोसेगी कि सुकरात सचमुच देशद्रोही था ओर यदि मैं सत्य की खातिर बलिदान हो गया, तो उसके सत्य अनेक सत्य को एक सुकरात अगणित सुकरात को आने वाले समय में पैदा कर देगा, फिर कोई यह लाँछन नहीं लगा सकेगा कि सुकरात राजद्रोही था, अतः मेरा उत्सर्ग हो जाने दो।

इतना कह कर उन्होंने हँसते हँसते विषपान कर लिया। असत्य पर सदा सत्य और सिद्धांत की विजय होती है।

एक व्यक्ति ने एक जिन्न साधा और वशवर्ती कर लिया। छोड़ने की शर्त यह तय हुई, कि जिस दिन उसका सुखा कुंआ भर जायेगा, उसी क्षण उसे मुक्त कर दिया जायेगा। जिन्न ने अपनी शक्ति द्वारा जल्दी ही भर दिया।

व्यक्ति लालची था उसने हाथ आये अवसर का भरपूर लाभ उठाना चाहा, कहा हमारा कोठार अभी खाली है, जब अन्न से वह भर जायेगा तब छोड़ देंगे।

जिन्न अड़ गया, कहा बात सिर्फ कुएँ की थी, सो शर्त के अनुसार उसे पूरी कर दी। अब मैं स्वतंत्र हूँ, पर व्यक्ति नहीं माना, कहा मनोरथ पूर्ति से पहले मैं तुम्हें छोड़ूँगा नहीं।

जिन्न बोला मैं पहले भी स्वतंत्र था, अब भी स्वतंत्र हूँ। तुमने कभी अपने काबू में किया ही नहीं। वह तो मैं था कि तंत्र की गरिमा रखने के लिए स्वयं को तुम्हारे सुपुर्द कर दिया, पर अब तुम लोभ वश मेरा दुरुपयोग करना चाहते हो, अतः इसका दण्ड भी तुम्हें मिलकर रहेगा।

इतना कहकर उसने ताँत्रिक का गला दबोच लिया और तत्काल यमलोक पहुँचा दिया। जाते जाते जिन्न ने एक व्यंग भरा अट्टहास किया और उसकी आत्मा से कहा “ लालच बुरी बला है। “


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