विद्यार्थियों के लिए (kahani)

August 1993

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

पेरिस से 80 मील दूर एक देहात में जन्में थे पेन्थिस। उनका पारिवारिक धंधा भेड़ पालन और ऊन कातना था। तनिक बड़े होते ही पेन्थिस को भी उसी धंधे में लगना पड़ा। पढ़ने का उनका मन था, पर साधन न थे। वे भेड़ चराते हुए अपने आप पढ़ने का प्रयत्न करते। एक दिन उनके मामा आये और इस अभिरुचि को देखकर उन्हें पढ़ाने के लिए साथ ले गये। बेपढ़े। छात्रवृत्ति पायी। उच्च शिक्षा संपन्न की और एक हतासर की नौकरी पर लग गये। विवाह प्रस्ताव आने लगे। उनने स्पष्ट इनकार कर दिया ओर कहा व्यर्थ का जंजाल सिर पर लादने की अपेक्षा मैं अपने श्रम और ज्ञान का उपयोग अपने जैसे निर्धन विद्यार्थियों के लिए करूंगा।

उनने निर्धन छात्रों के लिए एक प्राइवेट विद्यालय की स्थापना की। 100 में अपना खर्च चलाते ओर 200 रुपये उस विद्यालय को देते। छात्रों की प्रगति और विद्यालय की व्यवस्था देखकर अनेक लोग देखने आये और अत्यधिक प्रभावित हुए। कुछ संपन्न लोगों ने अच्छी सहायता दी। पेन्थिस ने नौकरी छोड़ दी और उसी वालय को संभालने लगे। आरंभ में केवल 20 छात्र थे, अब उस विद्यालय में 2000 निर्धन छात्र पढ़ते हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles