वाँछित हो प्रभु मिलन अगर, तो बैठ जा उसके पास। अंतःकरण चतुष्टय में, भर ले उसकी ही स्नेह सुवास ॥
यही साधना, यह उपासना, यह ही सच्ची पूजा है। उसके गुण धारण करने से, हटकर मार्ग न दजा है॥ उसकी कला ओर लीला में, भी रखें पूरा विश्वास॥
नित्य नियम से यह सामीप्य करें, हम यदि निर्मल मन से। वह हम में आयेगा जैसे, बिजली लिपटी है घन से॥ बस उसकी ही मिलन लालसा, लेकर बहे हमारी साँस॥
एक टेक हो वह मिल जाये, अपनापन तक भूले प्राण। जम जाये अंतर में भाव, कि उसके बिना नहीं त्राण॥ और हमारी हृदय गुहा, बन जाये उसका चिर आभास॥
यही मुक्ति है मिट जायेगी, सांसारिकता से आसक्ति। यही स्वर्ग है रोम रोम में, बस जाये उसकी ही भक्ति॥ और हमारी हृदय गुहा, बन जाये उसका चिर आवास॥
बन जाये यह सबसे बड़ी जरूरत अपने जीवन की। पास गये बिन चैन न आये- यह गति जाये मन की॥ यह स्थिति अगर बना लो जीवन, लगने लगे मृदुल मधुमास॥
मानव जन्म हमें मिलता हैं- सिर्फ इसी आराधना को। कण कण में देखे उसको ही -पुष्ट करें इस चिंतन को॥ आस पास सद्गंध बखरे, अपने मन का वतास॥
अंतर का तम मिट जायेगा, दृष्प्रवृत्तियां भागेंगी। परहित ही मंगलमय, सुखद भावनायें ही जागेंगी॥ तव मुख मण्डल पर ही दमकेगा, उस विभु का दिव्य उजास॥